सोनै जिसड़ी रेतड़ली पर
जाणै पन्ना जड़िया,
चुरा सुरग स्यूं अठै मेलग्यो
कुण इमरत रा घड़िया?
आं अणमोलां आगै लुकग्या
लाजां मरता हीरा।
मरू मायड़ रा मिसरी मधरा
मीठा गटक मतीरा।
कामधेणु रा थण ही धरती
आं में दूया जाणै,
कलप बिरख रै फळ पर स्यावै
निलजो सुरग धिंगाणै।*
लीलो कापो गिरी गुलाबी
इंद्र धणख सा लीरा।
मरू मायड़ रा मिसरी मधरा
मीठा गटक मतीरा।
कुचर कुचर नै खपरी पीवो
गंगाजळ सो पांणी,
तिस तो कांईं चीज, भूख नै
ईं री घूंट भजाणी,
हरि-रस हूंतो फीको,
ओ रस, जे पी लेती मीरां!
मरू मायड़ रा मिसरी मधरा
मीठा गटक मतीरा।
*कलप वृक्ष के फल पर स्वर्ग तो बेवजह ही गर्व करता है, इससे कहीं बेहतर फल तो मतीरा है जो धोरों में पैदा होता है।
आज रो औखांणो
मतीरा तो मौसम रा ई मीठा लागै।
अवसर के अनुकूल ही बात सुहानी लगती है।
प्रमोद सराफ हमारे बीच नहीं रहें।
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* प्रमोद्ध सराफ एक स्मृति*
*-शम्भु चौधरी, कोलकाता-*
*"युवा शक्ति-राष्ट्र शक्ति" *का उदघोष करने वाले गुवाहाटी शहर के वरिष्ठ
अधिवक्ता और *अखिल भारतीय मारवा...
4 हफ़्ते पहले