गंग विराजत संग तुम्हारे अंग भभूत लगी अति प्यारी
कर तिरशूल नहीं दुकूल बाघम्बर तन पर तुम धारी
पिवत कालकूट सोहे जटाजूट नंदी की करते हैे असवारी
लोचन तव तीन काया अति छीन संग सोहे गिरिजा महतारी
राजावत श्रवण सी कृत
अमृत महोत्सव से अमृतकाल तक की यात्रा
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*अमृत महोत्सव से अमृतकाल तक की यात्रा*
लोगों को अब दंड नहीं बल्कि उनको न्याय दिलाया जाएगा। यह अलग बात है कि दंड
दिए बिना न्याय कैसे मिलेगा? सवाल खड़ा तो ...
8 माह पहले
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