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हथाईबाजा ने ई सरावणा जोईजै

Rao GumanSingh Guman singh


घणी जूनी सभ्यतावां में यूनान री सभ्यता अणूतै ठसकै आळी गिणीजै। पैला रै यूनानियां री घणी सरावण जोग बात आ बताईजै कै वे भांत-भांत रै मुद्दां माथै गळियां में ऊबा बंतळ करता अर आपसरी री बैस सूं बात रै तुण्ड़ै पूग सांच काड़ लेता। आपां रै अठै रै हथाईबाजां ने तौ फुगतरै बराबर ई नी गिणां। ठैट सू ई आपां रै हथाईबाजां री पैठ कच्ची कीकर ही। मिनख इणाने हाडौ-हाडौ क्यूं करता। देसी हथाईबाज बैस करण में अर सूझ में यूनानियां सू मोळा तौ नीज हा। आठूं पोर बातां रा लावा लूटणियां ऎ डोकर उड़ता कागद बांच लेता। मिनख रौ मूण्डौ देख बात बताय देता पछै आपां इणां ने क्यूं भूण्डा कैवा। हथायां तौ आपो-आप में पूरी संस्थावां ही। सो आपां रै हथाईबाजा ने ई सरावणा जोईजै।
दिनऊगैई हथाई माथै आय धसणौ अर सिंज्या तांई सतरंज, चौपड़-पासा, चरर्-भरर् रमता थकां जरदा बीड़ी दाब र पिचरक-पिचरक करबौ करणौ, ठंडायां घोटणी, होका खुडकावणां, चिळमां रा झपेटा दैणा, अम्मळ री डोढो मनवारां अर बैई मस्करियां करणी, खोटां काढ़णी, काचड़ा करणा अर आपसरी में दांतियां करतां थूक उछालवौ करणौ। हथाई-बाजां रा ऎ रंग देख-र कोई लिखारौ इयां ने कीकर सरावतौ।
हथायां कोरी चौथड़ियां तांई बंधियोड़ी नीं ही। भांत-भांत री हथायां में अमलदारां री हथायां निरवाळीज ही। डोडी मनवारां रै सागैई राज-दरबार ठाकर-ठूंकर सूं ले-र ढोली, भांभी, सरगरै-साटियै तांई रै कामां रौ बखाण नीं व्हैतौ जठै तांई तौ अम्मळ ई को उगतौ नीं। अम्मल ऊगियां पूठै ऎ ऎड़ी-ऎड़ी भेद री बातां करता कै सुणतां कानां रा कीड़ा झड़ण लागता। अठा रौ समाज यूं तौ जात-पांत अर ऊंच- नीच रै भाव सूं किड़ियोड़ौ हो पण हथायां माथै इयां बातां नै तुस्यै बराबर ई को गिणता नीं।

दिपावळी परब रा रामा-सामा....

Rao GumanSingh Guman singh


'जैड़ी दीख वैड़ी सीख, जैड़ी खांण वैड़ी बांण
जैडौ वास वैड़ौ अभ्यास, जैड़ौ दीजै वैड़ौ लीजै
जैड़ी रात वैड़ा परभात, जैड़ी करणी वैड़ी भरणी'

राजश्री,
इण सबदों रे साथे दिपावळी परब रौ घणों-घणों रामा-सामा

आपरौ-
राव गुमानसिंघ
रानीवाड़ा(मारवाड़) भारत

चांदड़ळै री निरमळ रात

Rao GumanSingh Guman singh


चांदड़ळै री निरमळ रात
आधी रा सरवर सांचरी ऒ रांम।
रांमजी सांमी धकिया नंदजी रा लाल
म्हांनै गाय दूवाड़ौ छाळरी ऒ रांम।
रांमजी लांबी लांबी दूधड़लै री धार
म्हारी चूंदड़ होयगी चीगटी ऒ रांम।
रांमजी जायोड़ै नै बरज नै राख
म्हनै (गूजरियां) जणी जणी देवै ऒळबा।
बहू ऐ गूजरियां री जात कुजात
सांची री झूठी भेळ दै ऒ रांम।

(चक्की चळावा बां टेम रो लोकगीत)