आखी दुनिया मानै कै राजस्थानी भासा इण धरती री सबसूं विशाळ साहित्यक भासा है. तमिल अर राजस्थानी दो भासा एड़ी है जिणनै अगर भारत मांय राष्ट्रभासा रौ दरजौ देरीजै तौ ईं कम है.राजस्थान रै तीन विद्यापिठां (Universities) जोधाणा, बिकाणा अर उदैपर मांय इणनै भणावै अर साथै साथै प्राईवेट इंस्टिट्यूट वाळा ईं भणावै.
राजस्थानी री भणाई आप अमेरीका, ब्रिटेन या रुस मांय कर सकौ.राजस्थानी भासा नै अमेरीका मांय ओफिसियल भासा (राजभासा) रौ दरजौ मिळ्यौड़ौ है साथै साथै संयुक्त राष्ट्र मांय ई इण भासा नै मानता है.
आप अमेरीका मांय राजस्थानी मांय अरजी दे सकौ या कोई काम काज करवा सकौ, पण राजस्थान सरकार या आपणी भारत सरकार एड़ौ करणीया नै देसद्रोही (हिंदी विरोधी) मानै अर एड़ा मिनख री अरजी ना मंजुर करिजै इण तर्क रै माथै कै इण भासा नै सांवैधानीक मान्यता कोनीं
आप संयुक्त राष्ट्रसंघ (United Nations) मांय राजस्थानी मांय बोल सकौ पण राजस्थान री विधान सभा मांय राजस्थानी बोलण सूं रोकीजै.कित्तौ बरदास्त करांला.. आपणां खुद रा नेता आपणी भासा बोलता संकौ करै.विरभुमी राजस्थान, जठै मरणै नै तैवार मानीजै उण धरती रै लोगां नै औ कांई व्है ग्यौ ??
क्यूं अठै रा लोगां रौ रगत पाणी बण ग्यौ ?
क्यूं राजस्थान रा विर सुरमा हिजड़ा बण ग्या ?
सोचो, कांई आपणौ भविष्य है... सब जागा अंधारौ इज अंधारौ देखीजै.
जै राजस्थान! जै राजस्थांनी!!
Hanvant Rajpurohit
Bhaskar News
जयपुर. राजस्थानी भाषा के गौरव और समृद्धि की अहमियत को सोवियत रूस जैसे बड़े देश तक ने समझा लेकिन हम नहीं समझ पाए। तत्कालीन सोवियत रूस के लेखक बोरिस आई क्लूयेव सहित कई विद्वानों ने 70 के दशक में राजस्थानी भाषा पर शोध कर इसके समग्र स्वरूप को मान्यता देने की वकालत की थी।
बोरिस ने राजस्थानी की विभिन्न बोलियों पर अपने शोध में कहा था कि राजस्थान में भाषा स्थिति इतनी जटिल नहीं है जितनी पहली बार में दिखाई देती है। इसके अलावा राजस्थानी भाषा की आंचलिक बोलियों के आधार पर राजस्थानी के स्वरूप को बिगाड़ने और इसमें विभेद पैदा करने की कोशिशों को भी गलत बताया है।
क्लूयेव ने स्वतंत्र भारत
जातीय तथा भाषाई समस्या विषय पर शोध शुरू किया तो राजस्थानी ने उन्हें बेहद प्रभावित किया। उन्होंने राजस्थान में संजाति—भाषायी प्रक्रियाएं शोध में साफ लिखा, राजस्थानी की विभिन्न बोलियों में से ज्यादातर एक ही बोली समूह की हैं। इन बोलियों की पुरानी साहित्यिक परंपराएं हैं। प्राचीन मरू भाषा से डिंगल के साहित्य और से अब तक राजस्थानी ने साहित्यिक भाषा के प्रमुख पड़ाव तय किए हैं।
1961 की भाषाई जनगणना के अनुसार राजस्थानी को अपनी मातृभाषा बताने वालों की संख्या 1.50 करोड़ थी। राजस्थानी बोलने वालों की राजस्थान के बाहर भी अच्छी खासी तादाद है। संख्या के हिसाब से राजस्थानी देश की 12वीं प्रमुख भाषा है और 1961 की जनगणना में भाषाई गणना के हिसाब से भारत की प्रमुख भाषाओं के कम में इसे 12वें पायदान पर रखा गया। इसमें राजस्थान में रहने वाले 80 प्रतिशत लोगों की मातृभाषा राजस्थानी बताई गई है।
रूसी शोध में भी प्रमुख था मान्यता का मुद्दा
राजस्थानी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग का जिक्र रूसी विद्वान के शोध में भी था। राजस्थानी को 60 के दशक से राजभाषा की मान्यता देने की मांग उठाई जा रही है।
करणीसिंह ने लोकसभा में रखा था विधेयक
बीकानेर सांसद और पूर्व राजा करणीसिंह ने 1980 में राजस्थानी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए एक विधेयक लोकसभा में विचारार्थ रखा था। उस समय इस विधेयक पर बहस हुई और लोकसभा में यह 92 के विरुद्ध 38 मतों से गिर गया। तब से लेकर राजस्थानी को मान्यता का मुद्दा अभी अनिर्णीत ही है।
राजस्थानी ने लुभाया इन रूसी विद्वानों को
एल.वी. खोखोव : राजस्थान में प्रयुक्त हिंदी और राजस्थानी भाषाएं- सामाजिक तथा वैज्ञानिक अनुसंधान का अनुभव (शोध प्रबंध 1974, मास्को)।
लुई एसेले : भारत के चित्र 1977 (मास्को)