उदियापुर री कामनी,गोए काढे गात्र।
देव तारा मन डगे, मानवीया कुण मात्र॥
चलो व्रज नार चलो ब्रजनार
खेल देखो पनिहारन का
रुमक जुमक चाल चलें,गज छुटा फौजदारन का
तेरे ललाट पे बूंद पर्यो
जाणे हार तुटा लखचारण का
सेंथापुर के आई खड़ी
जाणे घाव लगा तलवारन का
नगर ठठा मुलताण में, ऐसीं नहिं कामनी
गले मोतनकी माल, दमंके जणे दामनी
छुटा मेली केश, अंबोडो छोड़ के
उभी सरोवर पाल, मृगली अंग मरोड़कें
Father day
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-*शंभु चौधरी*-
पिता, पिता ही रहे ,
माँ न बन वो सके,
कठोर बन, दीखते रहे
चिकनी माटी की तरह।
चाँद को वो खिलौना बना
खिलाते थे हमें,
हम खेलते ही रहे,...
5 हफ़्ते पहले