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हथाईबाजा ने ई सरावणा जोईजै

Rao GumanSingh Guman singh


घणी जूनी सभ्यतावां में यूनान री सभ्यता अणूतै ठसकै आळी गिणीजै। पैला रै यूनानियां री घणी सरावण जोग बात आ बताईजै कै वे भांत-भांत रै मुद्दां माथै गळियां में ऊबा बंतळ करता अर आपसरी री बैस सूं बात रै तुण्ड़ै पूग सांच काड़ लेता। आपां रै अठै रै हथाईबाजां ने तौ फुगतरै बराबर ई नी गिणां। ठैट सू ई आपां रै हथाईबाजां री पैठ कच्ची कीकर ही। मिनख इणाने हाडौ-हाडौ क्यूं करता। देसी हथाईबाज बैस करण में अर सूझ में यूनानियां सू मोळा तौ नीज हा। आठूं पोर बातां रा लावा लूटणियां ऎ डोकर उड़ता कागद बांच लेता। मिनख रौ मूण्डौ देख बात बताय देता पछै आपां इणां ने क्यूं भूण्डा कैवा। हथायां तौ आपो-आप में पूरी संस्थावां ही। सो आपां रै हथाईबाजा ने ई सरावणा जोईजै।
दिनऊगैई हथाई माथै आय धसणौ अर सिंज्या तांई सतरंज, चौपड़-पासा, चरर्-भरर् रमता थकां जरदा बीड़ी दाब र पिचरक-पिचरक करबौ करणौ, ठंडायां घोटणी, होका खुडकावणां, चिळमां रा झपेटा दैणा, अम्मळ री डोढो मनवारां अर बैई मस्करियां करणी, खोटां काढ़णी, काचड़ा करणा अर आपसरी में दांतियां करतां थूक उछालवौ करणौ। हथाई-बाजां रा ऎ रंग देख-र कोई लिखारौ इयां ने कीकर सरावतौ।
हथायां कोरी चौथड़ियां तांई बंधियोड़ी नीं ही। भांत-भांत री हथायां में अमलदारां री हथायां निरवाळीज ही। डोडी मनवारां रै सागैई राज-दरबार ठाकर-ठूंकर सूं ले-र ढोली, भांभी, सरगरै-साटियै तांई रै कामां रौ बखाण नीं व्हैतौ जठै तांई तौ अम्मळ ई को उगतौ नीं। अम्मल ऊगियां पूठै ऎ ऎड़ी-ऎड़ी भेद री बातां करता कै सुणतां कानां रा कीड़ा झड़ण लागता। अठा रौ समाज यूं तौ जात-पांत अर ऊंच- नीच रै भाव सूं किड़ियोड़ौ हो पण हथायां माथै इयां बातां नै तुस्यै बराबर ई को गिणता नीं।

दिपावळी परब रा रामा-सामा....

Rao GumanSingh Guman singh


'जैड़ी दीख वैड़ी सीख, जैड़ी खांण वैड़ी बांण
जैडौ वास वैड़ौ अभ्यास, जैड़ौ दीजै वैड़ौ लीजै
जैड़ी रात वैड़ा परभात, जैड़ी करणी वैड़ी भरणी'

राजश्री,
इण सबदों रे साथे दिपावळी परब रौ घणों-घणों रामा-सामा

आपरौ-
राव गुमानसिंघ
रानीवाड़ा(मारवाड़) भारत

चांदड़ळै री निरमळ रात

Rao GumanSingh Guman singh


चांदड़ळै री निरमळ रात
आधी रा सरवर सांचरी ऒ रांम।
रांमजी सांमी धकिया नंदजी रा लाल
म्हांनै गाय दूवाड़ौ छाळरी ऒ रांम।
रांमजी लांबी लांबी दूधड़लै री धार
म्हारी चूंदड़ होयगी चीगटी ऒ रांम।
रांमजी जायोड़ै नै बरज नै राख
म्हनै (गूजरियां) जणी जणी देवै ऒळबा।
बहू ऐ गूजरियां री जात कुजात
सांची री झूठी भेळ दै ऒ रांम।

(चक्की चळावा बां टेम रो लोकगीत)

कापड़ फटै, करज बढै......

Rao GumanSingh Guman singh

कविजन घर रहै, तीन अवगुण होय।
कापड़ फटै, करज बढै, नाम न जाणै कोई।।

भमता भळा जोगीयां, भमता भळा सुपात्र।
भमता भळा पंखीयां, जठै बैठे वठै ही गांव।।

नाम रहंदा ठाकरां, नाणां नहिं रहंत।
कीर्ती हंदा कोटड़ा, पाडयां नहिं पडंत।।

मुसलमान सुव्वर तजें, हिन्दु तजें सो गाय।
दोनुं रस्ता छोड़ के, काफर होय ते खाय।।

नीर थोड़ो नेह घणों, लग्यो परित को बाण।
तुं पी, तुं पी करतां, दोई जणें छोड्या पराण।।

कहत वखत बळवान हे, नहिं नर बळवान।
काबे अरजण लूंटियों, ऐहीं धनुस ऐहीं बांण।।

ऐहीं बांण चौहाण, राम रावण उथप्यों।
ऐहीं बांण चौहाण, करण सिर अरजण कप्यों॥

(संकलित दोहावळी)

कहावतां जातां री..

Rao GumanSingh Guman singh

अग्गम बुद्धि बांणियौ, पिच्छम बुद्धि जाट।
तुरत बुद्धि तुरकड़ो, बांमण सम्पट पाट॥

बातां रीझै बांणियौ, रागां सूं रजपूत।
बांमण रीझै ळाड़वां, बाकळ रीझै भूत॥

जंगळ जाट न छोड़िये, हाटां बिचै किराड़।
रंघड़ कदैयन छोड़िये, जद तद करै बिगाड़॥

बींद मरौ बींदणी मरौ, बांमण रै टक्कौ त्यार।
ठाकर ग्या ठग रिया, रिया मुळक रा चोर॥

बजे तळवार खटाखट...

Rao GumanSingh Guman singh


'बजे तळवार खटाखट, गिर खोपड़ियां कटाकट।

वीर निकळे बच झटपट, मरे कितने ही चटपट॥

मची लड़ाई विकट भयंकर, नदी खून की चाळी।

जोगणियां खप्पर ळे आई, नाच करे कंकाळी॥


'पड़ी नगारां ठोर मच्या दळ सोर

इकट्ठा हो र कटक पर चाळा

कर हनुमान ज्यूं हाक ळंक पर ड़ाक पड़ा छिन मांही

ज्यूं व्रज पर कर्यो चढ़ाव इन्द्र की नांई

केई ळिया खंग कुरसांण धनुष करतांण बांण फँटकारै

केई तबळ तेग त्रिसूळ वज्र के मारे

केई गुप्ती गुर्ज चळावै केई छुरी कटांरा बावै

केई ळे ळे चक्र चढ़ावै केई जादू सा आजमावै।'

चार बांस चोवीस गज..

Rao GumanSingh Guman singh


चार बांस चोवीस गज, अंगुळ अष्ट प्रमाण।

ईते पर सुळतान है, मत चूकैं चौहाण॥


ईहीं बाणं चौहाण, रा रावण उथप्यो।

ईहीं बाणं चौहाण, करण सिर अरजण काप्यौ॥

ईहीं बाणं चौहाण, संकर त्रिपरासुर संध्यो।

ईहीं बाणं चौहाण, भ्रमर ळछमण कर वेध्यो॥


सो बाणं आज तो कर चढयो, चंद विरद सच्चों चवें।

चौवान राण संभर धणी, मत चूकैं मोटे तवे॥

ईसो राज पृथ्वीराज, जिसो गोकुळ में कानह।

ईसो राज पृथ्वीराज, जिसो हथह भीम कर॥

ईसो राज पृथ्वीराज, जिसो राम रावण संतावण।

ईसो राज पृथ्वीराज, जिसो अहंकारी रावण॥


बरसी तीस सह आगरों, लछन बतीस संजुत तन।

ईम जपे चंद वरदाय वर, पृथ्वीराज उति हार ईन॥

याददासत नव कोटां री

Rao GumanSingh Guman singh


(मुंहता नैणसी री ख्यात सुंवत १६६५ सूं १७५५ तांई)
१-बाहड़मेरः- मुदै केराड़ू कहीजै छै। धरणीवाराह री बैसणौ छै। भाखर मांहै ऊंड़ी जायगा छै। देहुरा जिण समै रा छै। गांव ७०० जैड़ा ळागे।

२-आबूः- आल्ह पाल्ह पंवार रौ बैसणौ छै।असळगढ़ नांव छै। जिकौ गढ़ असळेश्वर मादेव रै नांवै छै। पंवारां नै मारनै चहुवांणां लीयौ। गांव ५४० ळागें।

३-पारकरः- हांसू पंवारां रौ बैसणौ। काछ अड़तौ, चवदै वेढ़ी कहीजै।घणी धरती ळागें छै। हमार सोढ़ा राज करै छै। राधणपुर रा हाकम नुं मिळै छै। सूराचन्द परै कोस चाळीस छै। रांणा सोढ़ा कहीजै। बरसाळी रौ देस छै।ऊनाळी ऊहीं(साधारण)।


लेख री विगत चाळु है............wait

सपना तूं सोभागियो

Rao GumanSingh Guman singh


सुपने में प्रीतम मिल्या, हूँ लागी गळ रोय।
डरपत पलक न खोळ ही, मत बिछोहो होय॥

जिण
ने सुपने देखती, प्रगट भया पिव आय।
डरती आंख न मूंदहीं, मत सुपनो हुय जाय॥

सुपना तोहि मरावसूं, हिये दिरावूं छेक।
जद सोवूं तद दो जणां, जद जागूँ तद एक॥

हूंता सखी मौ हीवडै, सायणां हंदा हत्थ।
जो सपनो सांचौ हुवै, सपनो बड़ी वसत्त॥

सुपने प्रियतम मुझ मिल्यां, हूँ ळागी गळ रोय।
डरपत पळक न खोल ही, मत सपनो हो जाय॥

सुपनो आयो फिर गयो, मैं सर भरिया रोय।
आव सुहागण नींदड़ी, वळि पिउ देखूं सोय॥

सपना तूं सो भागियो, उत्तम थारी जात।
सो कोसां साजण वसै, आण मिलावै रात॥

पड़ पड़ बूंद पळंग पै

Rao GumanSingh Guman singh


पड़ पड़ बूंद पळंग पै, कड़ कड़ बीज कड़क्क।

सायधण सेजां एकळी, धड़ धड़ हियो धड़क्क॥

आज धरां दिस ऊनम्यो, काळी धड़ सिखरांह।

वा धण देसी ऒळमा, कर कर लांबी बांह॥

नाळा नदियां सूं मिळै, नदियां सागर जाय।

विरछां सूं बेळां, मिळै, ऐसी सही न जाय॥

आज धरा दिस ऊमग्यो, मोटी छांटां मेह।

भींजी पाग पधारस्यो, जद जाणूंळी नेह॥

सावण आयो सायबा, सब बन पांगरियांह।

आव विदेसी पांवणा, ऐ दिन दूभरियांह॥

सावण आयो सायबा, मोर हुया महमंत।

इण रित पीयर मोकळै, कठण हिया रो कन्त॥

सावण आयो सायबा, बांधो पाग सुरंग।

घर बैठा राजस करो, हरिया चरै तुरंग॥

सावण आयो सायबा, गाढा मांणां रंग।

आणां घर जांणां नहीं, ठाणां बांध तुरंग॥

सजण सिकारां जावसी, नैणां मरसी रोय।

विधणा ऐसी रैण कर, भोर कदे ना होय॥

चाळ सखी उण मंदिरै, प्रियतम रहिया जैण।

कोईक मीठौ बोळड़ो, ळायो होसी तैण॥

सावण आयो सायबा

Rao GumanSingh Guman singh




सावण आयो सायबा, पगां बिळूंबी गार।तरां बिळूंबी बेळड़यां, नरा बिळूंबी नार॥
च्यारुं पासै घण घणो, बिजळ खिवै अकास।हरियाळी रित तो भळी, घर संपत पिव पास॥
ळूमां झड़ नदियां ळहर, बग पगंत भर बाथ।मोरां सोर ममोळियां, सावण ळायो साथ॥
हरणो मन हरियाळियां, उर हाळियां उमंग।तीज परब रंग त्यारियां, सावण लायो संग॥
आभ गड़ै बीजां अडै़, मौरां धरै मळार।कामण धरा धपाड़वां, आयो मैह उदार॥
मोर सिखर ऊंचा मिळै, नाचै हुआ निहाळ।पिक ठहकै झरणा पड़ै, हरियै ड़ूंगर हाळ॥
धन धोरां, जोरां घटा ळोरां बरसत ळाय।बीज न मावै वादळां, रसिया तीज रमाव॥
घर घर चंगी गोरड़ी, गावै मंगळाचार।कंथा मती चुकावज्यो, तीजां तणो तिवार॥
आज ऊवैळा उनमियो, मेड़ी ऊपर मैह।जाऊं तों भींजै कांचळीं, रैवुं तो टूटै नेह॥
भड़कत तड़कत बीजळी, धड़कत गाज।कोप करयां आवे, या कुण ऊपर आज॥
भर पावस सज्जण नहीं, उल्हरियों जसराज।जाणूं छूं ले जावसी, काढ़ कळेजो आज॥
घटा बांध बरसे जसा, छांट लगै खग भाय।इण रित साजण बाहिरा, क्यूँ कर रैण बिहाय॥
घर ळीळी गिरवर धुपै, घन मधरो घहरात।निस सारी खारी ळगै, बिन प्यारी बरसात॥
परनाळा पाणी पड़ै, भींजैं गढ़ री भींत।सूता आवै औजका, राजण आवै चींत॥
अगग्गां सगग्गां नदी बहै, नदी न ळागै नावं।हिरणी हो हेळो देवूं, आवो जी प्रीतम आव॥

राजपुताना रौ पैळड़ौ ख्यात लिखारौ- मुंहता नैणसी

Rao GumanSingh Guman singh


नैणसी री ख्यात अर विगत राजपुताना रै इतिहास री घणी चाईजती पोथियां हैं। राजस्थान साहित में ई इण दोनां पोथियां री जागा ठैट धकळी पांत में है। मुंहता नैणसी रै बडैरां मारवाड़ रै ऊंचै ऒदां माथै काम करियौ, इण सारुं आ गुवाड़ी इज मुइणोतां री गुवाड़ी बाजण लागगी। नैणसी रै बड़ैरां रौ बखांण जाळोर रै महावीर जैन मिन्दर अर नवळखा जैन मिन्दर री भींतां माथै खुदियोड़ै लेखां में करियोड़ौ है। लेखां सूं ठा पडै कै नैणसी रौ पैळड़ौ बडेरौ मोहन राठौड़ हो, जिण आपरै ढळतै बरसां में जैन धरम अंगेज लियौ, उण रै लारै उण रौ भाई सौभागसेन ई जैनी बणग्यौ।इणीज मोहन राठौड़ रौ नवमौं वंसज नैणसी रौ बाप जयमल्ल हो। मुगळ बादसाह जहांगीर जद मारवाड़ रै धणीं गजसिंघ सूं राजी हूय दएनै जाळोर इणायत कीयौ तद उणां जयमल्ल ने जाळोर री हाकमी दी। उणरी चाकरी सूं राजी व्हैय र महाराजा उणनै जौधाणै रो दीवाणं बणाय दियौ। नैणसी १६११ ईस्वी में जलम्यौ हो। मोटियार व्हैता ई उणनै मारवाड़ री फौज में ऒदौ मिलग्यौ। नैणसी सागेडौ सेना-नायक साबित हुयौ।
ठेट सूंई नैणसी इतिहास में रग्योड़ौ हो। वो जठीनै ई जावतौ उठै रा चारण-राव अर बूढै-बडैरां सूं जरुर मिळतौ, बहियां बांचतौ, बड़ैरां सूं बंतळ करतौ। उणा सागै हथाई माथै होका खुड़कावतौ, उण ठौड़ रा लेखां अर साहित सूं वाकब हूवतौ, कीं चोखी बातां हींयै उतारतौ अर कीं नीज डायरी रै पानड़ा में अटकाय लेवतौ। नैणसी राज रै ऊंचै ऒदै माथै होइज सो उणनै अठी-उठी फिर भटक अर बातां निरखण-परखण रौ मोकौ मिळियौ। घूम-फिर, जांणकारी भेळी कर उण आपरी जांणकारी रै पांण दो पोथियां लिखी-ऐक नैणसी री ख्यात अर बीजी मारवाड़ रै परगणां री विगत। महाराजा जसवंतसिंघ मुगळा री हिमायत में दिखणियां सूं जूंझतां थका नैणसी अर सुन्दरदास ने ई आप सागै बुलाय लिया। उठैई महाराजा किणी अणजाणी वजै सं रिसीजग्या अर भाई समैत नैणसी ने अपड़ कर कैद कर लियौ। जिणरी वजै कायस्थ हां, वै महाराजा नै काण भरण लागा। दोनां ने कित्ताई संताया, कूपितां करी पण तोई वै टस-सूं-मस ई को हुया नीं। इण मुजब मारवाड़ में हाळ तांई नैणसी अर सुन्दरदास बाबत कैयोड़ा ऐ दूहा-सोरठा घर-घर चावा है--लाख लखारा नीपजै, बड़ पीपळ री साख।नटियौ मूथौ नैणसी, तांबौ देण तळाक॥लेसौ पीपळ लाख, लाख लखारा लावसी।तांबौ देण तळाक, नटियौ सुन्दर नैणसी॥दोनुंई भायां माथै कानां रा कीड़ा झडै जैड़ी कुपीतां हुवण लागी जद उणां ऐड़ै जीवण सूं छुटकारौ पावण सारु आतमघात कर अर पराण तज दिया। इण मुजब मारवाड़ रै इण पैळड़ै इतिहास लिखारै री ळीळा घणी दोजखी अर दुखदायी तरै सूं खतम हुई। नैणसी री खास कारीगरी आ है कै उण आपरै बखांण ने कोरौ राजावां अर ठाकरां तांई नीं राखियौ-धोबी, चमार, सरगरा अर समाज रै ठेट नीचल्लै मिनखां ने ई को छोड़ियौ नीं। प्रसासक रै रुप में नैणसी खरौ उतरियौ। घणा नीं तोई बीस बरसां तांई उण मारवाड़ रै न्यारै-न्यारै मोटै ऒदां माथै सावळ चुतराई सूं काम करियौ।
(लेख जारी है)

पग पग भम्यां पहाड़

Rao GumanSingh Guman singh


पग पग भम्यां पहाड़, धरा छांड़ राख्यो धरम।
'महाराणा' र 'मेवाड़', हिरदै बसिया हिंद रे॥

सकळ चढावै सीस, दान धरम जिणरो दियो।
सो खिताब बगसीस, लेवण किम लळचावसी॥

दिया सत्रुवां दाह, सांचा भड़ रखिया सदा।
लाखां सीस लियाह, वाज्या धन धन सीसवद॥

उरा थरिंदां आंपणां, सीस घुणिन्दां साह।
रुप रखिन्दा राण रा, वाह गिरिन्दां वाह॥

धर बांकी दिन पाधरा, मरद न मूकै माण।
धणा नरिन्दा घेरियो, रहै गिरंदां राण॥

अकबर जासी आप, दिल्ली पासी दूसरा।
पुनरासी परताप, सुजस न जासी सूरमा॥

गिर पुर देस गमाड़, भमिया पग पग भाखरां।
मह अंजसै मेवाड़, सह अंजसै सीसोदिया॥

समंदर पूछै सफ्फरां, आज रतंबर काह।
भारत तणै उमेदसी, खाग झकोळी आह॥

राहब उटठ कमाणगर, मूंछ मरोड़ न रोय।
मरदां मरणों हक्क है, रोणो हक्क न होय॥

सत री सहनाणी चही, समर सळूंबर घीस।
चूड़ामण मेळी सिया, इण धण मेल्यो सीस॥

सीता ना रावण सको, दोप्रद कीचक देख।
अकबर काम उमीठियो, इण सींसोदण एक॥

अकबर देख अचाणचक, भई न तिल भर जीत।
नीरोजै नर नाहरी, जबर लियो जस गीत॥

दुरगो आसावत रो, नित उठ बागां जाय।
अमळ औरंग रा ऊतरे, दिल्ली धड़का खाय॥

बीज चंद सी बकड़ी, खड़ी खड़ी भ्रह खूंच।
टणकापण री तखतसी, मारै हेळा मूंह॥

उजड़ चाळे उतावळो, रोही गिण न रन्न।
जावे धरती धूंसतो, धन्न हो घोड़ा धन्न॥

(मेवाड़ री महिमा)

समर चढै़ ...

Rao GumanSingh Guman singh


समर चढै़ काठां चढै़, रहै पीव रै साथ।
एक गुणा नर सूरमा, तिगुण गुणा तमय जात॥

चन्द ऊजाळै एक पक, बीजै पख अंधिकार।
बळ दुंहु पाख उजाळिया, चन्द्रमुखी बळिहार॥

खाटी कुळ रो खोयणां, नेपै घर घर नींद।
रसा कंवारी रावतां, वीर तिको ही वींद॥

ऊंघ न आवै त्रण जणां, कामण कहीं किणांह।
उकडू थटां बहुरिणां, बैर खटक्के ज्यांह॥

एक्कर वन वसंतड़ा, एकर अंतर काय।
सिंघ कवड्डी ना लहै, गँवर लक्ख विकाय॥


संकलित काव्य

भाईयां बांधण राखड़ी

Rao GumanSingh Guman singh


देख पूनम सावणीं यूं मेघ उमड़ियां।
हाथां झाली राखँडी ज्यूं उभी धिवड़ियां॥

बहिनां जोवे बाटड़ी हियो घणो अधीर।
ज्यूं सावणीं सरित में कुचळे ऊंचौ नीर॥

तीज तिवारां है घणा सासरियां रां सैंण।
वीरां मिलण राखड़ी राह जोवे सहुं बैन॥

बहिन भाई स्नेह रो राखी तणौ तिवार।
धन विधाता सृजियों कर कर करोड़ विचार॥

आई पूनम सावणीं हियो धरे नहीं धीर।
भाईयां बांधण राखड़ी बैना आज अधीर॥

सावणं वरसण वादली कर रहीं दौड़म दौड़।
(यूं)बहिन मौळावें राखड़ी कर कर मन में कोड़॥

वरसे घटा बावली नदि अथंगा नीर।
(यूं) बहिनां बांधे राखड़ी हरख उमंगे वीर॥

चमकी भलीज सावणीं वूठों भळोज मेंह।
बहिना भळीज राखड़ी तूठों भठोज नेंह॥

छायी आकाशां बादळी, दे संदेसो गाज।
बहिनां बान्धो राखड़ी, भाईयां रक्षण काज॥

रक्षाबन्धन सूत्र में, बध्यों बली हमेश।
तिन देव चौकी भरे, ब्रह्मा विष्णुं महेस॥

सुरग पताळ मरतुळोक में, बहीना घणों अरमान।
बळराजा री राखड़ी, सहं ठौड़ यजमान॥


(संकलन:- मंछाराम परिहार)

वाह बिकांणा वाह..

Rao GumanSingh Guman singh



मोंठ बाजरी मतीरा खेलर काचर खांण।
अन्न-धन्न धीणा धोपटा वरसाळे बिकांण॥
ऊंट मिठाई अस्तरी सोना गेणो शाह।
पांच चीज पृथ्वी सिरे वाह बिकांणा वाह॥
उन्नाळै खाटु भळी सियाळे अजमेर।
नागाणौ नितको भळो सावणं बिकानेर॥
मरु रो पत माळवो नाळी बिकानेर।
कवियाँ ने काठी भळा आँधा ने अजमेर॥
जळ ऊँड़ा थळ उजळा नारि नवळे वेश।
पुरुष पट्टाधर निपजे आई मरुधर देश॥


(संकलन%-मंछाराम परिहार)

बलिदानी चित्तोड़........

Rao GumanSingh Guman singh


मांणक सूं मूंगी घणी जुडै़ न हीरां जोड़।
पन्नौं न पावै पांतने रज थारी चित्तौड़॥
आवै न सोनौं ऒळ म्हं हुवे न चांदी होड़।
रगत धाप मूंघी रही माटी गढ़ चित्तोड़॥
दान जगन तप तेज हूं बाजिया तीर्थ बहोड़।
तूं तीरथ तेगां तणौ बलिदानी चित्तोड़॥
बड़तां पाड़ळ पोळ में मम् झुकियौ माथोह।
चित्रांगद रा चित्रगढ़ नम् नम् करुं नमोह॥
जठै झड़या जयमल कला छतरी छतरां मोड़।
कमधज कट बणिया कमंध गढ थारै चित्तोड़॥
गढला भारत देस रा जुडै़ न थारी जोड़।
इक चित्तोड़ थां उपरां गढळा वारुं क्रोड़॥


संकलित काव्य

डींगल......

Rao GumanSingh Guman singh


"विश्व में तमिल को छोड़कर कोई भी ऐसी भाषा नहीं है जो डींगल के बराबर समृद्ध हो. इसमें श्रृंगार और शौर्य का अदभुत मिश्रण है." राजस्थान में शायद ही कोई ऐसा हो जिसकी प्रशस्तियों में डींगल के गीत ना हों. (कोट खिसै देवल डिगै, वृख इंधण व्हे जाय। जस रा आखर जेहिया, जातां जुगां न जाय॥).... (घायल गत घूमैह, रै भूमी मारवाड़ री। राळो रुं रुं मेह, साहित इमरत सूरमों॥)

धड़ धराति पग पागड़ै....

Rao GumanSingh Guman singh


धड़ धरती पग पागड़ै, आंतां तणो घरट्ट।
तोहि न छांडै साहिबो, मूंछां तणो मरट्ट॥
भड़ बिण माथै जीतियो, लीलो घर ल्यायोह।
सिर भूल्यो भोळो घणो, सासू रो जायोह॥
खाग खणकै सिर फटै, तिल तिल माथै सींब।
आलां घावां ऊठसी, धीमो बोल नकीब॥
कठण पयोधर लग्गतां, कसमसातो तूं कन्त।
सेल घमोड़ा किम सह्या, किम सहिया गजदन्त॥
मैं परणन्ती परखियो, मूंछां भिड़ियो मोड़।
जासी सुरग न एकलो, जासी दळ संजोड़॥
ढोल सुणंतां मंगळी, मूंछां भौंह चढंत।
चंवरी ही पहचाणियो, कंवरी मरणो कन्त॥
हथलेवै री मूठ किण, हाथ विलग्गा माय।
लाखां वातां हेकळो, चूड़ो मो न लजाय॥
करड़ा कुच नूं भाखतो पड़वा हंदी चोळ।
अब फूलां जिम आंगमै, भाळां री घमरोल॥

(संकलित काव्य)

सोरठ रंग री सावळीं

Rao GumanSingh Guman singh


सोरठ रंग री सावळीं, सुपारी रे रंग।
लूंगा जैड़ी चरपरी, उड़ उड़ लागै अंग॥
सोरठ उतरी महल सूं, झांझर रे झणकार।
धूज्या गढ़ रा कांगरा, गाजी गढ़ गिरनार॥
सोरठ साकर री डळी, मुख मेल्यां घुळ जाय।
हिवड़ै आय विलूंबतां, हेमाळो ढुळ जाय॥
ऊंचो गढ गिरनार, आबू पै छाया पड़ै।
सोरठ रो सिणगार, बादळ सूं वातां करै॥
जिण सांचै सोरठ घड़ी, घड़ियो राव खंगार।
वो सांचो तो गळ गयो, लद ही गयो लुहार॥
सुण बींझा सोरठ कहे, नेह केता मण होय।
लाग्यां रो लेखो नहीं, टूटा टांक न होय॥
सोरठ थां में गुण घणां, रतियन ऒगण होय।
गूंदगरी रा पेड़ ज्यूं, कदियन खारो होय॥
सोरठ तूं सुरनार, सिर सोने रो बेहड़ो।
पग थांभो पणिहार, बातां बूझे बींझरो॥
बींझा बीण बजाय के, गायो सोरठ राग।
झोला खावे नाग जूं, जागी सोरठ जाग॥

(संकलित काव्य)

नमिया तिलोकीनाथ...Sachi bante

Rao GumanSingh Guman singh


हित कर जोड़े हाथ,कामण सूं अनमी किसो।
नमिया तिलोकीनाथ, राधा आगळ राजिया॥
जाणै हरिया रुंखड़ा, नीरां हन्दो नेह।
सूका ठूंठ न जाणही, कीं घर बूठा मेह॥
साठी चांवल भैंस दूध, घर सिळवंती नार।
चौथी पीठ तुरंग री, सुरग निसाणी चार॥
दूरां सूं कह देत, सोभा घर संपत तणीं।
हिवड़ा हन्दो हेत, नैणां झलकै नाथिया॥
मगर मकोड़ो मूढ़ नर, तीनूं लाग मरन्त।
भंवर भुजगर सुघड़ नर, डस कर दूर रहन्त॥
पान झड़तां देख के, हंसी जो कूंपळियांह।
मो बीती तो बीतसी, धीरी बापड़ियांह॥
कोयल बोल सुहावणां, बोलै इमरत वैण।
किण कारण काळी भई, किण गुण राता नैण॥
बागां बागां हूँ फिरी, कठै न लाध्या सैण।
तड़फ तड़फ काळी भई, रोय रोय राता नैण॥
आग लगी वन खंड में, दाइया चंदण बस।
हम तो दाइया पंख बिन, तूं क्यूं दाझै हंस॥
पान मरोड़या रस पिया, बैठया एकण डाळ।
तुम जळो हम उड़ चलें, जीणों किताक काळ॥
घर मोरां, वन कुंजरां, आंबा डाळ सूवांह।
सज्जन कुवचण,जलमघर,बीसरसी मूवांह॥

उदियापुर री कामनी

Rao GumanSingh Guman singh


उदियापुर री कामनी,गोए काढे गात्र।
देव तारा मन डगे, मानवीया कुण मात्र॥

चलो व्रज नार चलो ब्रजनार
खेल देखो पनिहारन का
रुमक जुमक चाल चलें,गज छुटा फौजदारन का

तेरे ललाट पे बूंद पर्यो
जाणे हार तुटा लखचारण का
सेंथापुर के आई खड़ी
जाणे घाव लगा तलवारन का

नगर ठठा मुलताण में, ऐसीं नहिं कामनी
गले मोतनकी माल, दमंके जणे दामनी

छुटा मेली केश, अंबोडो छोड़ के
उभी सरोवर पाल, मृगली अंग मरोड़कें

कायरड़ा मंजन करै(kayar manjan kare..)

Rao GumanSingh Guman singh

जीमण पांत जठेह मिल भड़ आवे मोकळा।
तणियां खाग तठेह मांडे पैंड़ न मोतिया॥

मंजन करे सधीर मन सूरां धारां सार।
कायरड़ा मंजन करै आंसू धार मझार॥

मूंछ नाक सिर रो मुकुट ससतर साम सनाह।
साबत लायो समर सूं कै नहं लायो नाह॥

मूंछ केस खंडत नहीं नाक न खंडत कोर।
पड़ी पुळंता पाघड़ी सुकुलीणी तज सोर॥

सेहणी सब री हुँ सखी दो उर उळटी दाह।
दूध लजाणो पूत सम वळय लजाणौ दाह॥

मणिहारी जा री सखी अब न हवेली आव।
पिव मूवा घर आविया विधवा किसा बणाव॥

यो गहणो यो बेस अब कीजै धारण कन्त।
हूं जोगण किण काम री चूड़ा खरच मिटंत॥

बिन मरियां बिन जीतियां धणी आविया धाम।
पग पग चूड़ी पाछटूं जे रावत री जाम॥

कोई घोडो कोई पुरखडो

Rao GumanSingh Guman singh


उजड़ चाळे उतावळो रोही गिण न रन्न।
जावे धरती धूंसतो धन्न हो घोड़ा धन्न॥

लीला थारे पांव ने सोने की खुरताळ।
पग पूंजूं रैवंत तणां भेंटायो भरतार॥

जंग नगारां जाण रव अणि धगारां अंग।
तंग लियतां तंडियो तोनै रंग तुरंग॥

अस लीलो पिव पीथळो चंपावती ज नार।
ऐ तीनू ही एकठा सिरज्या सिरजणहार॥

कोई घोडो कोई पुरखडो कोई सतसंगी नार।
सरजण हारे सिरजिया तीनू रतन संसार॥

हळ तो धूना धोरियां पन्धज गग्धां पांव।
नरां तुरां अर वनफळां पक्कां पक्कां साव॥

जन्म अकारथ ही गयो भड़ सिर खग्ग न भग्ग।
तीखा तुरी न माणिया गोरी गळे न लग्ग॥

घर घोडो पिव अचपळो बैरी वाड़ै बास।
नितरा बाजै ढोलड़ा कद चुड़लै री आस॥

राव गुमानसिंह
रानीवाड़ा ( मारवाड़ )

रण मारियां मां अंजसै, रण भाज्यां लज जात

Rao GumanSingh Guman singh



मात सिखावै गोद में, वाळक सुत नें बात।
रण मारियां मां अंजसै, रण भाज्यां लज जात॥

सुत मरियो हित देस रै, हरख्यो बन्धु समाज।
मां नंह हरखी जनम दे, जतरी हरखी आज॥

चून चूग्यो चढ चूंतरै, कर कर खैंखाराह।
बदळो आज चुकावस्यां, धम अरिअस धारांह॥

टहटहु घुरै त्रमांगळा, हुवै सींधव ललकार।
चित कूंकभ चैवां चहैं, आज मरण त्यूंहार॥

किताक राखै काळजो, किताक नर झूंझार।
आमन्त्रण आयो अठै, आज मरण त्यूंहार॥

मतवाळा घूमैं नहीं, नंहु घायल घरणाय।
बाळ सखी सो द्रंगड़ो, जिण भड़ बपड़ कहाय॥

घर घोड़ा ढ़ालां पटळ, भालां थंभ बणाय।
वे सूरा भोगे जमीं, अवर न भोगे काय॥

मंड़ती हाटाँ मौत री, मुरधर रे मैदान।
मूंड़ कटे लड़ता मरद, अनम वीर कुळ जाण॥

दूजा ज्यूं भागो नहीं, दाग न लागो देस।
बागां खागां बांकड़ो, महि बांको महेस॥
वीररस

म्हारी माय़ड धरती

Rao GumanSingh Guman singh




आपस में सब सळ मिळ रहणो, आ है अठारी परिपाटी
ए वतन है एक रगत है, दिल्ली हो या गोहाटी
म्हानें है जीव सू प्यारी, भारत री पावन माटी
इणरे खातिर लड़या सूरमा, झड़पड़िया मेजर भाटी
हंसता-हंसता शीश दे दियों, इणरों मोल चुकावांला
इण धरती रा लाडेसर, म्हे गीत जीतरा गांवा ला
हिमाले री चोटी माथे, तिरंगा फहरावांला
गांवाला म्हे गीत जीत रा घर घर ढोल घूरावांला
इण धरती रा लाडेसर, म्हे गीत जीतरा गांवांला॥१॥

सुणलो सबही कान खोल कर, नी देस्या प्यारों कसमीर
जो कोई करसी कुचमादी तो, म्हें देस्या उकी छाती चीर
आ हे म्हारी माय़ड धरती, म्हें ईरां हां पूजारी
याद कराळा कुरबानी म्हें, अमर शहीद आहुजा री
सीमा खातिर लड़या सूरमा, इणरो मोल चुकावांला
इण धरती रा लाडेसर म्हें गीत जीतरां गांवांला ॥२॥

निरमल जल री नदियां बह रहीं, गंगा जमुना रो पाणी
राम-किशन री जलम भोम आं, गुर गोविंद सा बलिदानी
जौहर री ज्वचाला में भभकी, पत राखण पदमण रानी
गांव-गांव में गूंज रहीं है, नानक री इमरत वाणी
इण धरती ने नमन निरन्तर, शतशत शीश झुकावांला
इण धरती रा लाड़र म्हें गीत जीतरा गांवांला
हिमाळे री चोटी माथे, तिरंगो फहरावांला
इण धरती रा लाडेर म्हें गीत जीतरां गांवांला ॥३॥

ॐमॉ भवानी री अराधना

Rao GumanSingh Guman singh




बड़कै डाढ वराह कड़कै पीठ कमट्ठ री।

धड़कै नाग धराह बाघ चढै जद वीसहत्थ॥


थरहर अंबर थाय धरहती धूजै धरा।

पहरतां तब पाय वागा नेवर वीसहत्थ॥


पग डूलै दिगपाळ हाथ फाळ भूलै हसत।

पीड़ै नाग पताळ बाघ चढै जद वीसहत्थ॥


वाढाळी वहतांह राढाळी तरम्मक रड़ै।

साढाळी सहतांह डाढाळी ऊपर करै॥

वीररस री वाणी

Rao GumanSingh Guman singh


खांडे मारे तेज है स जी सदा पागडै जीत।
मोड़ां मुवाणी फौज की स म्हे कदै न छोडां रीत॥
धरती धूजे पग धरयां स रे खांडे आग झडन्त।
मदमाता गज धूजता स रे ज्यांरा तुरत उखाडां दंत॥
चिमटी सूं चूरा करां स जी रपया रा सब अंक।
केहरि मारां कांकरी स कोई सामां पगां निसंक॥

मादक योवन की छटा

Rao GumanSingh Guman singh


भरी जवानी भई दिवानी जोबन लहरा लेवे जी।
रेन रंगीली छैल छबीली नहीं पिया बिन रेवे जी॥

इस्क करो तो सुणो काकीजी इतरो करौ करार।
करना तो डरना नहीं स रे है खांडा की धार॥
इस्क मांयने केई डूबग्या करलो खूब विचार॥

मन में उठे हवडका पिडन बिना अब व्याकुल नारी।
खारा जैर लागै मोंहे सब हीं झाल अंग में उठे।
खाली सब ही महल माळिया देख भिड़कणी छूटे॥

मायॅङ भोम

Rao GumanSingh Guman singh

आडां ऊमरकोट रां जाडां थळां जुहार।
वड दाता वैरौ वसै सोढा कुळ सिणगार॥
आठ पहर पौहरा रहै कसिया रहै तुरंग।
मारवाड कांकड सिंध सिर ऊमरकोट दुरंग॥

राव
गुमानसिंह
रानीवाडा(मारवाड)