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बलिदानी चित्तोड़........

Rao GumanSingh Guman singh


मांणक सूं मूंगी घणी जुडै़ न हीरां जोड़।
पन्नौं न पावै पांतने रज थारी चित्तौड़॥
आवै न सोनौं ऒळ म्हं हुवे न चांदी होड़।
रगत धाप मूंघी रही माटी गढ़ चित्तोड़॥
दान जगन तप तेज हूं बाजिया तीर्थ बहोड़।
तूं तीरथ तेगां तणौ बलिदानी चित्तोड़॥
बड़तां पाड़ळ पोळ में मम् झुकियौ माथोह।
चित्रांगद रा चित्रगढ़ नम् नम् करुं नमोह॥
जठै झड़या जयमल कला छतरी छतरां मोड़।
कमधज कट बणिया कमंध गढ थारै चित्तोड़॥
गढला भारत देस रा जुडै़ न थारी जोड़।
इक चित्तोड़ थां उपरां गढळा वारुं क्रोड़॥


संकलित काव्य