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कठै गमग्या है वै इतरा आखर

Rao GumanSingh Guman singh

कठै गमग्या है वै इतरा आखर
गुनहगार गजला रा आखर हैं कुचमादी, श्रीमाली सुरगां सूं म्हारो गांव वालो है।
सळवटा मीटणी हैं, मूंडे जो समाज रे है, हाडी राणी वालों देश जग सूं रूखाळो है।
साहित्य सूरज बण, मेटणो है जड़ा मूल, जन मन व्यापो जो भी अंधकार काळो है।
साहित्य सूरज रामेश्वर री उड़ान देख, साचाणी लागै अबै बावनो हिमालो है।


-साहित्यकार रामेश्वरदयाल श्रीमाली को श्रद्धाजंलि स्वरूप भीनमाल में व्याखाता अरूण दवे ने ये पक्तियां लिखी। जिनमें श्रीमाली की सभी पुस्तकों के नाम शामिल हैं।
साहित्यकार रामेश्वर दयाल श्रीमाली के निधन पर साहित्य जगत और अन्य लोगों ने जताया शोक। कहा- श्रीमाली ने शुरू की थी राजस्थानी भाषा के लिए संघर्ष की यात्रा। अपने साहित्य की बदौलत दिलाया राजस्थानी को मान सम्मान। अंतिम संस्कार में उमड़े लोग।

कठीनै गमग्या है वै बावळा आखर
मूडां मायं सूं एक हरफ नीकलतो हो- देस
अर मूडां री माळा गूंथीजती ही च्यारूमेर
थमती ई कोनी हो माथा देवणिया रो रेळो
मां कैवतां ई जागतो हो नेह अर बलिदान
मुलक सारू मिटता ही माथा
लूळा साटै बिकता हा माथा
कठै गमग्या है वे आखर
असल उन्मादी अरथावाळा आखर।


अपनी राजस्थानी कविता कुचमादी आखर में ही लाईनों के माध्यम से समाज में आ रहे बदलाव, खत्म होते रिश्ते और भावनओं समेत अन्य समाप्त होती परंपराओं पर तीखी चोट करने वाले साहित्यकार रामेश्वर दयाल श्रीमाली बुधवार को पंचतत्व में विलीन हो गए। उनका मंगलवार शाम को निधन हो गया था। कुचमादी आखर नामक इस कविता संग्रह में उन्होंने बताया था कि अपनापन भरे और भावनाओं से ओतप्रोत आखर आज मिट गए हैं। श्रीमाली के निधन का समाचार सवेरे जैसे ही लोगों तक पहुंचा किसी को विश्वास ही नहीं हुआ क्योंकि एक दिन पहले तक ही लोगों ने उन्हें हमेशा की तरह उत्साह के साथ बात करते हुए देखा था।
सरलता और सादगी
सरलता और सादगी ही श्रीमाली की पहचान थी। उन्होंने लगभग तीन साल तक साहित्य की साधना की, लेकिन कभी भी निराशा और घमंड को अपने पर हावी नहीं होने दिया। साहित्य के क्षेत्र में भी राजस्थानी भाषा के लिए उनका योगदान सदैव स्मरणीय रहेगा। ७६ वर्ष की आयु में भी वे अक्सर बाहर होने वाले साहित्य सम्मेलनों में भाग लेते और शेष समय घर पर बच्चों के साथ खेलकर और नवीन साहित्य सृजन में बिताते थे। साहित्य के माध्यम से उनका व्यंग्य तीखी चोट करता था।
साहित्यकार ही नहीं प्रेरक भी

जालोर में उनकी पहचान एक साहित्यकार के रूप में ही नहीं बल्कि वे कई युवा साहित्यकारों के लिए प्रेरणास्रोत भी रहे। उन्होंने कई युवाओं को साहित्य सृजन के लिए तैयार किया और मार्गदर्शन भी दिया।

-उनका साहित्य मन पर चोट करता था। कविताओं की पक्तियां नया जोश भर देती थी। वे खुद ही साहित्य की साधना नहीं करते थे बल्कि अपने छोटे कई युवाओं को उन्होंने प्रेरित किया। जिनमें मैं भी शामिल हूं। उनकी प्रेरणा से ही मै साहित्य सृजन कर पाया। निराशा को उन्होंने कभी स्वयं पर हावी नहीं होने दिया। यही कारण था कि जब भी उनके पास जाते वे सदैव नए जोश से भरे हुए रहते थे।
-पुरुषोत्तम पोमल, साहित्यकार, जालोर
-उन्होंने साहित्य का जो सृजन शुरू किया वह उनके निधन तक अनवरत जारी रहा। पिछले तीन दशकों में मंैने उन्हें कभी ठहरा हुआ नहीं देखा। हमेशा वे चिंतन करते और कुछ ना कुछ लिखते रहते। समाज में व्याप्त बुराइयों के प्रति उनका दृष्टिïकोण व्यापक था। जिसे उन्होंने अपने साहित्य में भी उतारा। व्यंग्य भी किया तो इतना सटीक कि सीधा मन पर चोट करता।
-अचलेश्वर आनंद, साहित्यकार, जालोर
-राजस्थानी भाषा के लिए उनका योगदान सदैव याद किया जाएगा। इस भाषा में लिखी उनकी कई पुस्तकों का हिंदी और बंगाली में अनुवाद हुआ। राजस्थानी शब्दों का उन्होंने जिस प्रकार से उपयोग किया है उसके बाद उनका साहित्य लगातार पढऩे का मन करता है। साथ ही राजस्थान दिवस के दिन ही उनका मौन हो जाना एक संयोग ही है।
-अशोक दवे, जनसम्पर्ककर्मी, जालोर
-जीवन के सरोकारों से जुड़ी रचनाएं जुड़ी हुई थी। मानवीय संवेदनाओं से ओतप्रोत थी। कविता और कहानी दोनों क्षेत्रों में आम व्यक्ति को पीड़ा और भावनाओं की अभिव्यक्ति प्रदान की थी।
-अरूण दवे, व्याख्याता, जालोर
नम आंखो से किया विदा
श्रीमाली का अंतिम संस्कार सवेरे करीब साढ़े नौ बजे समाज के श्मशान घाट में किया गया। इससे पूर्व चामुंडा मंदिर के समीप स्थित उनके निवास से अंतिम यात्रा शुरू हुई। जो अस्पताल चौराहा, सूरजपोल होते हुए श्मशान घाट पहुंची। वहां उनके ज्येष्ठï पुत्र विश्वनाथ श्रीमाली ने उन्हें मुखाग्नि दी। इस दौरान वरिष्ठï लेखाकार ईश्वरलाल शर्मा, साहित्यकार पुरूषोत्तम पोमल, बाबूभाई व्यास, अचलेश्वर आनंद, मधुसूदन व्यास, ऋषिकुमार दवे, भीनमाल से व्याखाता अरूण दवे और अशोक दवे समेत कई लोग मौजूद थे।