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रानाबाई के पद

Rao GumanSingh Guman singh


वारी वारी वारी वारी वारी वारी म्हारा परम गुरूजी ।
आज म्हारो जनम सफल भयो , मैं गुरुदेवजी न देख्या । टेक ।

भाग हमारा हे सखी, गुरुदेवजी पधारया ।
काम, क्रोध, मद, लोभ, ने ये, म्हारा दूर निवारया ।।1।।

सोव्हन कलश सामेलसा ये, मोतीड़ा बधास्यां ।
पग मंद पधरावस्यां ये, मिल मंगल गास्यां ।।2।।

बंदन वार घलावस्यां ये, मोत्यां चौक पुरावस्यां ।
पर दिखानां परनाम स्यूं ये, चरनां शीश निवास्यां ।।3।।

ढोल्यो रतन जड़ावरो ये, रेशम गिदरो बिछावस्यां ।
सतगुरु ऊंचा बिराजसी ये, दूधा चरण पखास्यां ।।4।।

भोजन बहुत परकार का ये, कंचन थाल परोसां ।
सतगुरु जीमे आंगणे ये, पंखा बाय ढुलास्यां ।।5।।

चरण खोल चिरणामृत ये, सतगुरुजी का लेस्यां ।
तन मन री हेली बातड़ली ये, म्हारा गुरूजी ने कह्स्यां ।।6।।

आज सुफल म्हारा नेणज ये, गुरुदेवजी ने निरखूं ।
कान सुफल सुन बेणज ये, दूरी नहीं सरकूं ।।7।।

आज म्हारे आनंद बधावणा ये, बायां मन भाया ।
'राना' रे घरां बधावणा ये, गुरु खोजीजी आया ।।8।।


रसना बाण पड़ी रटबा की ।

बिसरत नहीं घड़ी पल छिन-छिन, स्वांस स्वांस गाबा की ।।1।।

मनड़ो मरम धरम ओही जाण्यो, गुरु किरपा बल पा की ।।2।।

लख चौरासी जूण भटकती, मोह माया सूं थाकी ।।3।।

समरथ खोजी 'राना' पाया, जद यूँ काया झांकी ।।4।।


म्हारो म्हारो करतांई जावै ।

मिनख जमारो ओ हे अमोलक, कोडी मोल फिंकावै ।।1।।

गरभ वास में कौल कियो तूं, जिणनै क्यों बिसरावै ।।2।।

पालनहार, करतार,विसंभर, तिरलोकी जस छावै ।।3।।

जिणने थां छिटकाय दियो जद, कुण थांने अपनावै ।।4।।

वाल्मकि सुक व्यास पुराणां, बेद भेद समझावै ।।5।।

कैं म्हारो तू थारो करतां, मिनख जमारो गमावै ।।6।।

'राना' सतगुरु खोजी सरणै, आवागमन मिटावै ।।7।।


ऐ तो जाबाला ऐ बाई थारा, मन में निरख निरधार ।
कुण थारा साथी कुण थारा बैरी, कुण थारा गोती नाती ।।1।।

कुण थारा भाई बाप ये मायड़, किस्या जनम की जाती ।
सुरतां सूरत पिछाणी नाही, भाभी भरम में गेली ।।2।।

कुण रोवे कुण हँसे बावळी, कुण किण रो भरतार ।
गया सू आवणा का है नांही, रया सू जावाण हार ।।3।।

दस दरवाजा इण पिंजरा के, पलक पंखेरू जैले ।
चेतन नौबत बजे जठा तक, अंत पछै कुण बौलै ।।4।।

हर सूं हेत चेत मन करलै, मिनख जमारो आयो ।
गुरु खोजी 'राना' रंग रीझी, भरम भूत बिसरायो ।।5।।


करसण होरयो रे बीरा, भूल्यो जग जंजाळ
काया खेत में रे बीरा, पाप पुण्य री नाळ ।।टेक।।

खाद खुटे नहीं रे बीरा, बीज तणी पैछाण ।
जोड़ सागै बणी रे बीरा, हलधर जोय निनाण ।।1।।

भावणी बीजणी रे बीरा, पाणी पाल परमाण ।
रूंखड़ी रोपणी रे बीरा, धरणीधर री छांण ।।2।।

गाज गरजै घणी रे बीरा, बरसै कठेक जाय ।
साख सूखै नहीं रे बीरा, जल जमना रो पाय ।।3।।

चतुर खोजी मिल्या रे पाकी, साख सराई लोग ।
जतन 'राना' करे रे बीरा, स्याम अरोगे भोग ।।4।।


चूंदड़ मैली न होय म्हारी बाया, चूंदड़ मैली न होय ।

नौ दस मास रही आ ऊंडी, अब सिणगार करण लागी ।
चूंदड़ चिमक चतुर साजन री, निजरया में गौरी आगी ।।1।।

कर मनुहार बुलाई पिवजी, चूंदड़ घणी सराई ए ।
मन की बात करी हित चित सूं, हिवडे घणी लगाई ए ।।2।।

जुग जुग चूंदड़ करे झिलामिल, जतन रतन अनमोल ए ।
'राना' सतगुरु खोजी सरणै, निरभै निसदिन बोला ए ।।3।।


जह हरि-भक्त चरण पधरावै ।
तीरथ एक कहा कहिये, तहां भुवन चतुर्दश धावै ।।टेक।।

भृगुजी क्रोध विवश जायो तज, हरि के लात लगावै ।
प्रभु की प्रभुताई का बरणो, जाकै चरण पुजावै ।।1।।

चतरो बिप्र साथ संगत रहे, बीरा बैर करावै ।
पितृ फूल दे जबरन ताको, हर पेड़ी पठवावै ।।2।।

जहाँ तिरथन को गुरु पुष्कर, सतगुरु धून रमावै
डेरा की धणयाप करता, छत्री मद चकरावै ।।3।।

कथा कीर्तन भंग पड़ता, काम्बल आग बंधावै ।
गठड़ी बंधी देखकर जोड्या, अब तो सकलां नावै ।।4।।

भगवत भक्त निराली लीला, पार कोई न पावै
'राना' सतगुरु तीरथ खोजी, अमरापुर चली आवै ।।5।।


कोई दिन साथनियाँ संग रमती
रमती रमती हीजे रहती, चिरम्या ज्यूं ही गमती ।।टेक।।

म्हारो राम संदेशो भेज्यो, सतगुरु नूत बुलाया ।
हरजी सत सनेह सूं पोखी, नहीं तो काया गमती ।।1।।

मानव पास उदार में राखी, बाबल लाड लडाया ।
जनम जनम रो वर संवरियो, मिनख धार क्यों टलती ।।2।।

काची काया मन मनसौबा, रमती मोह संग माया ।
काहन कुंवर ही मोही 'राना', परम्परा सूं चलती ।।3।।

आज्यो म्हारे देस

Rao GumanSingh Guman singh


बंसीवारा आज्यो म्हारे देस। सांवरी सुरत वारी बेस।।
ॐ-ॐ कर गया जी, कर गया कौल अनेक।
गिणता-गिणता घस गई म्हारी आंगलिया री रेख।।
मैं बैरागिण आदिकी जी थांरे म्हारे कदको सनेस।
बिन पाणी बिन साबुण जी, होय गई धोय सफेद।।
जोगण होय जंगल सब हेरूं छोड़ा ना कुछ सैस।
तेरी सुरत के कारणे जी म्हे धर लिया भगवां भेस।।
मोर-मुकुट पीताम्बर सोहै घूंघरवाला केस।
मीरा के प्रभु गिरधर मिलियां दूनो बढ़ै सनेस।

म्हारां री गिरधर गोपाल
म्हारां री गिरधर गोपाल दूसरां णा कूयां।
दूसरां णां कूयां साधां सकल लोक जूयां।
भाया छांणयां, वन्धा छांड्यां सगां भूयां।
साधां ढिग बैठ बैठ, लोक लाज सूयां।
भगत देख्यां राजी ह्यां, ह्यां जगत देख्यां रूयां
दूध मथ घृत काढ लयां डार दया छूयां।
राणा विषरो प्याला भेज्यां, पीय मगण हूयां।
मीरा री लगण लग्यां होणा हो जो हूयां॥

दरद न जाण्यां कोय
हेरी म्हां दरदे दिवाणी म्हारां दरद न जाण्यां कोय।
घायल री गत घाइल जाण्यां, हिवडो अगण संजोय।
जौहर की गत जौहरी जाणै, क्या जाण्यां जिण खोय।
दरद की मार्यां दर दर डोल्यां बैद मिल्या नहिं कोय।
मीरा री प्रभु पीर मिटांगां जब बैद सांवरो होय॥

नित उठ दरसण जास्यां
माई म्हां गोविन्द, गुण गास्यां।
चरणम्रति रो नेम सकारे, नित उठ दरसण जास्यां।
हरि मन्दिर मां निरत करावां घूंघर्यां छमकास्यां।
स्याम नाम रो झांझ चलास्यां, भोसागर तर जास्यां।
यो संसार बीडरो कांटो, गेल प्रीतम अटकास्यां।
मीरा रे प्रभु गिरधरनागर, गुन गावां सुख पास्यां॥

भजणा बिना नर फीका
आली म्हाणो लागां बृन्दावण नीकां।
घर-घर तुलती ठाकर पूजां, दरसण गोविन्द जी कां।
निरमल नीर बह्या जमणां मां, भोजण दूध दहीं कां।
रतण सिंघासण आप बिराज्यां, मुगट धर्या तुलसी कां।
कुंजन-कुंजन फिर्या सांवरा, सबद सुण्या मुरली कां।
मीरा रे प्रभु गिरधरनागर, भजण बिना नर फीकां॥

म्हारे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई॥
जाके सिर मोर मुगट मेरो पति सोई।
तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई॥
छाँडि दई कुद्दकि कानि कहा करिहै कोई॥
संतन ढिग बैठि बैठि लोकलाज खोई॥
चुनरीके किये टूक ओढ लीन्हीं लोई।
मोती मूँगे उतार बनमाला पोई॥
अंसुवन ज8 सींचि सींचि प्रेम बेलि बोई।
अब तो बेल फैल गई आणँद फल होई॥
भगति देखि राजी हुई जगत देखि रोई।
दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही॥
मीराबाई के भजन संग्रह से यह पद उद्धृत है।
परसि हरि के चरण
मन रे परसि हरि के चरण।
सुभग सीतल कँवल कोमल, त्रिविध, ज्वाला हरण।
जिण चरण प्रह्लाद परसे, इंद्र पदवी धरण॥
जिण चरण ध्रुव अटल कीन्हें, राख अपनी सरण।
जिण चरण ब्रह्मांड भेटयो, नखसिखाँ सिरी धरण॥
जिण चरण प्रभु परसि लीने, तरी गोतम-घरण।
जिण चरण काद्दीनाग नाथ्यो, गोप लीला-करण॥
जिण चरण गोबरधन धारयो, गर्व मघवा हरण।