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सेवाड़ा- पातालेश्वर प्रताप

Rao GumanSingh Guman singh

 ऊंचों देवल अजब, झिलमिल दिपे जगत में।

पाहण आरस पाण, विश्वकर्मा री वगत में॥
देवल चिणायों देवता, पातालेश्वर प्रताप।
पत्थर-पत्थर प्रगटीयों, अनंत देवता आप॥
चौसठ जोगणी चहुं दिश, रूद्र सदा रखवाल।
विर बावन चौकी भरे, विनाश्यों किस विधकाल॥
काल तने प्रवाह ने, रोक सके नही कोय।
भव्यता भूमि पड़ी, देख समझ पशताय॥
पहाण-पहाण प्रतिमा, खण्ड़ीत पड़ी अब मौन।
वैभवता बिलख रही, कहो सम्भाले कौन॥
 सेवाड़ा में सदाशिव, पातालेश्वर भगवन्त।
देवल खंडि़त देखता, हीवड़ो रूदन करन्त॥
कुण्डलीयां
शिव पातालेश्वर शंभू, भोले शंकर भूप।
असुर की अरदास पर, साध मौन भयो चुप॥
साध मौन भयो चुप, देवगति जावे न जाणी।
ऊंचों शिखर आभ, भव्यता भूमि आणी॥
प्रतिमा 'मंछाराम पाषाण री, खण्डि़त चुन-चुन किव।
अकूत नुकसान सहे आप, शंभु पातालेश्वर शिव॥
(कवि मंछाराम परिहार रानीवाड़ा)
9414565791

भीत हुवा भड़ भड़भड़ै, रोद्रित कर गज रीत

Rao GumanSingh Guman singh


छायळ फूल विछाय, वीसम तो वरजांगदे।

गैमर गोरी राय, तिण आंमास अड़ाविया।।
इसड़ै सै अहिनांण, चहुवांणो चौथे चलण।
डखडखती दीवांण, सुजड़ी आयो सोभड़ो।।
काला काळ कलास, सरस पलासां सोभड़ो।
वीकम सीहां वास, मांहि मसीतां मांडजै।।
हीमाळाउत हीज, सुजड़ी साही सोभड़े।
ढ़ील पहां रिमहां घड़ी, खखळ-बखळ की खीज।।
सोभड़ा सूअर सीत, दूछर ध्यावै ज्यां दिसी।
भीत हुवा भड़ भड़भड़ै, रोद्रित कर गज रीत।।
चोळ वदन चहुवांण, मिलक अढ़ारे मारिया।
सुजड़ी आयो सोभड़ो, डखडखती दीवांण।।
वणवीरोत वखांण, हीमाळावत मन हुवा।
त्रिजड़ी काढ़ेवा तणी, चलण दियै चहुवांण।।
सोभड़ै कियो सुगाळ, मुंहगौ एकण ताळ में।
खेतल वाहण खडख़ड़ै, चुडख़ै चामरियाळ।।
लोद्रां चीलू आंध, भागी सोह कोई भणै।
सोभ्रमड़ा सरग सात मै, बाबा तोरण बांध।।
(सांचोर मा संवत् १६९५ वात ह, मुगल पातसाह ने सांचोर में परेमखां को आधी जागीर इंणायत करीयोड़ी थी । उण टेम आधी जागीर सोभा चहुवांण रे कनै ही। गढ़ मा गाय ने मारण रे कारण दोयो मा जुद हुयौ। उणमां सोभे चहुवांणे परेमाखां ने मार भगायो। गाय रो आ परेम कविए ड़िंगळ भासा मा लिखर जतायो है।)