ऊंचों देवल अजब, झिलमिल दिपे जगत में।
पाहण आरस पाण, विश्वकर्मा री वगत में॥
देवल चिणायों देवता, पातालेश्वर प्रताप।
पत्थर-पत्थर प्रगटीयों, अनंत देवता आप॥
चौसठ जोगणी चहुं दिश, रूद्र सदा रखवाल।
विर बावन चौकी भरे, विनाश्यों किस विधकाल॥
काल तने प्रवाह ने, रोक सके नही कोय।
भव्यता भूमि पड़ी, देख समझ पशताय॥
पहाण-पहाण प्रतिमा, खण्ड़ीत पड़ी अब मौन।
वैभवता बिलख रही, कहो सम्भाले कौन॥
सेवाड़ा में सदाशिव, पातालेश्वर भगवन्त।
देवल खंडि़त देखता, हीवड़ो रूदन करन्त॥
कुण्डलीयां
शिव पातालेश्वर शंभू, भोले शंकर भूप।
असुर की अरदास पर, साध मौन भयो चुप॥
साध मौन भयो चुप, देवगति जावे न जाणी।
ऊंचों शिखर आभ, भव्यता भूमि आणी॥
प्रतिमा 'मंछाराम पाषाण री, खण्डि़त चुन-चुन किव।
अकूत नुकसान सहे आप, शंभु पातालेश्वर शिव॥
(कवि मंछाराम परिहार रानीवाड़ा)
9414565791