बोलैनीं हेमाणी.....
जिण हाथां सूं
थें आ रेत रची है,
वां हाथां ई
म्हारै ऐड़ै उळझ्योड़ै उजाड़ में
कीं तो बीज देंवती!
थकी न थाकै
मांडै आखर,
ढाय-ढायती ई उगटावै
नूंवा अबोट,
कद सूं म्हारो
साव उघाड़ो औ तन
ईं माथै थूं
अ आ ई तो रेख देवती!
सांभ्या अतरा साज,
बिना साजिंदां
रागोळ्यां रंभावै,
वै गूंजां-अनुगूंजां
सूत्योड़ै अंतस नै जा झणकारै
सातूं नीं तो
एक सुरो
एकतारो ई तो थमा देंवती!
जिकै झरोखै
जा-जा झांकूं
दीखै सांप्रत नीलक
पण चारूं दिस
झलमल-झलमल
एकै सागै सात-सात रंग
इकरंगी कूंची ई
म्हारै मन तो फेर देंवती!
जिंयां घड़यो थेंघड़ीज्यो,
नीं आयो रच-रचणो
पण बूझण जोगो तो
राख्यो ई थें
भलै ई मत टीप
ओळियो म्हारो,
रै अणबोली
पण म्हारी रचणारी!
सैन-सैन में
इतरो ई समझादै-
कुण सै अणदीठै री बणी मारफत
राच्योड़ो राखै थूं
म्हारो जग ऐड़ो? [‘जिण हाथां आ रेत रचीजै’ से ]
जद तू मिलसी बेलिया करस्यूँ मन री बात ।
बध बध देस्यू ओळमा भर भर रोस्यूँ बाँथ ॥
पैली तारिख लागताँ जागै घर ओ भाग ।
मनियाडर री बाट मँ बाप उडावै काग ॥
फागण राच्यो फोगला रागाँ रची धमाल ।
चाल सपन तूँ गाँव री गळीयाँ मँ ले चाल ॥
घर, गळियारा, सायना, सेजाँ सुख री छाँव् ।
दो रोट्या रै कारणै पेट छुडावै गाँव ॥
चैत चुरावै चित्त नै चित्त आयो चित्तचोर ।
गौर बणाती गौरडी खुद बणगी गणगौर ॥
चपडासी है सा’ब रो बूढो ठेरो बाप ।
बडै घराणै भोगरयो गेल जनम रा पाप॥
बेली तरसै गांव मँ मन मँ तरसै हेत ।
घिर घिर तरसै एकली सेजाँ मँ परणेत ॥
भाँत भाँत री बात है बात बात दुभाँत ।
परदेशाँ रा लोगडा ज्यूँ हाथी रा दांत ॥
गळै मशीनाँ मँ सदा गांवा री सै मौज ।
परदेसाँ मै गांगलो घर रो राजा भोज ॥
बैठ भलाईँ डागळै मत कर कागा कांव ।
चित चैते अर नैण मँ गूमण लागै गांव ।।
बडा बडेरा कैंवता पंडित और पिरोत।
बडै भाग और पुन्न सूँ मिलै गांव री मौत ।|
लोग चौकसी राखता खुद बांका सिरदार ।
बांकडला परदेस मँ बणग्या चौकीदार ॥
मरती बेळ्या आदमी रटै राम र्रो नांव ।
म्हारी सांसा साथ ही चित्त सू जासी गांव ॥
मै परदेशी दरद हूँ तू गांवा री मौज ।
मै हू सूरज जेठ रो तूँ धरती आसोज॥
बेमाता रा आंकङा मेट्या मिटे नै एक ।
गूंगै री ज्यू गांव रा दिन भर सुपना देख ॥
दादोसा पुचकारता दादा करता लाड ।
पीसाँ खातर आपजी दियो दिसावर काढ ।।
मायड रोयी रात भर रह्यो खांसतो बाप ।
जिण घर रो बारणो मै छोड्यो चुपचाप ॥
जद सूँ परदेसी हुयो भूल्यो सगळा काम ।
गांवा रो हंस बोलणौ कीया भूलू राम ॥
गरजै बरसै गांव मै चौमासै रो मेह ।
सेजा बरसै सायनी परदेसी रो नेह ॥
कुण चुपकै सी कान मै कग्यो मन री बात ।
रात हमेशा आवती रात नै आयी रात ॥
आंगण मांड्या मांडणा कंवलै मांड्या गीत ।
मन री मैडी मांडदी मरवण थारी प्रीत ॥
दोरा सोराँ दिन ढल्यो जपताँ थारो नाम ।
च्यार पहर री रात आ कीयाँ ढळसी राम ॥
सांपा री गत जी उठी पुरवाई मँ याद ।
प्रीत पुराणै दरद रै घांवा पडी मवाद ॥
नैण बिछायाँ मारगाँ मन रा खोल कपाट ।
चढ चौबारै सायनी जोती हुसी बाट ॥
प्रीत करी गैला हुया लाजाँ तोङी पाळ ।
दिन भर चुगिया चिरडा रात्यु काढी गाळ ॥
पाती लिखदे डाकिया लिखदे सात सलाम ।
उपर लिख दे पीव रो नीचै म्हारो नांम ॥
दीप जळास्यु हेत रा दीवाळी रो नाम ।
इण कातिक तो आ घराँ ओ ! परदेसी राम ॥
जोबण घेर घुमेर है निरखै सारो गांव ।
म्हारै होठाँ आयग्यो परदेसी रो नांव ॥
जीव जळावै डाकियो बांटै घर घर डाक ।
म्हारै घर रै आंगणै कदै न देख झांक ॥
मैडी उभी कामणी कामणगारो फाग ।
उडतो सो मन प्रीत रो रोज उडावै काग ॥
बागाँ कोयल गांवती खेता गाता मोर ।
जब अम्बर मँ बादळी घिरता लोराँ लोर ॥
बाबल रै घर खेलती दरद न जाण्यो कोय ।
साजन थारै आंगणै उमर बिताई रोय ॥
बाबल सूंपी गाय ज्यूँ परदेसी रै लार ।
मार एक बर ज्यान सूँ तडपाके मत मार ॥
नणद,जिठाणी,जेठसा दयोराणी अर सास ।
सगलाँ रै रैताँ थका थाँ बिन घणी उदास ॥
सुस्ताले मन पावणा गांव प्रीत री पाळ ।
मिनख पणै रै नांव पर सहर सूगली गाळ ॥
सहर डूंगरी दूर री दीखै घणी सरूप ।
सहर बस्याँ बेरो पडै किण रो कैडो रूप ॥
खाणो पीणो बैठणो घडी नही बिसराम ।
बो जावै परदेस मँ जिण रो रूसै राम ||
भगीरथ सिंह भाग्य
कीडी नगरो सहर है मोटर बंगला कार ।
जठै जमारो बेच कै मिनख करै रूजगार ॥
अजब रीत परदेस री एक सांच सौ झूँठ ।
हँस बतळावै सामनै घात करै पर पूठ ॥
खेत खळा अर रूंखडा बै धोरा बै ऊंट ।
बाँ खातर परदेस के तज देवूँ बैकूँट ॥
देह मशीना मै गळै आयो मौसम जेठ ।
बिरथा खोयी जूण म्हे परदेसा मँ बैठ ।।
ऊमस महीना जेठ रो बो पीपळ रो गांव ।
संगळियाँ संग खेलता चोपङ ठंडी छाव ॥
गाता गीत न गा सक्या करता करया न कार ।
जीतै जी ना जी सक्या मरिया पडसी पार ॥
ठीडै ठाकर ठेस रा ठीडै ही ठुकरेस ।
बिना ठौड अर ठाईचै क्यूँ भटकै परदेस ॥
समरथ जाणु लेखणी सांचो जाणू रोग ।
गावैला जद चाव सूँ दरद दिसावर लोग ।।
सूना सा दिन रात है सूनी सूनी सांझ ।
बंस बध्यो है पीर रो खुशिया रै गी बांझ ।।
हिरण्याँ हर ले नीन्द नै किरत्याँ कैदे बात ।
तारा गिणता काटदे नित परदेसी रात ॥
रिमझिम बरसै भादवो झरणा री झणकार ।
परदेसी रै आन्गणै रूत लागी बेकार ॥
साखीणो संसार है कद तक राखा साख ।
साख राखताँ गांव मँ मिटगी खुद री साख ॥
तन री मौज मजूर हा मन री मौज फकीर ।
दोनूँ बाताँ रो कठै परदेसाँ मँ सीर ॥
ऊंचा ऊंचा माळिया ऊची ऊंची छांव ।
महला सूँ चोखो सदा झूंपडियाँ रो गांव ॥
बाट जोंवता जोंवता मन हुग्यो बैसाख ।
छोड प्रीत री आस नै प्रीत रमाली राख ॥
जद सूँ छोड्यो गांव नै हिवडै पडी कुबाण ।
गीत प्रीत री याद मँ आवै नित मौकाण ॥
प्रीत आपरी सायनी होगी म्हारै गैल ।
भारी पडज्या गांव नै जिया कंगलौ छैल॥
प्रीत करी नादान सूँ हुयो घणो नुकसान ।
आप डूबतो पांडियो ले डूब्यो जुजमान ॥
हेत कामयो देश मँ परदेसा मँ दाम ।
किण री पूजा मै करू गूगो बडो क राम ॥
बाबो मरगो काळ मै करग्यो बारा बाट ।
घर मँ टाबर मौकळा कै करजै रो ठाठ ॥
मारै आह गरीब री करदे मटिया मेट ।
पण कंजूसी सेठ रो रति ना सूकै पेट ॥
किण नै देवाँ ओळमाँ किण नै कैँवा बात ।
टाबरियाँ रै पेट पर राम मार दी लात ॥
भगीरथ सिंह भाग्य
सूका सूका खेतडा पण नैणा मै बाढ ।
घर मँ कोनी बाजरी ऊपर सूँ दो साढ ॥
जद सूँ पाकी बाजरी काचर मोठ समेत ।
दिन भर नापै चाव सूँ पटवारी जी खेत ॥
फिर फिर आवै बादळी घिर घिर आवै मेह ।
सर सर करती पून मँ थर थर कांपै देह ॥
होगी सोळा साल री बेटी करै बणाव ।
कद निपजैली टीबडी कद मांडूला ब्याव ॥
टूटी फूटी झूँपडी बरसै गरजै गाज ।
इण चौमासै रामजी दोराँ रहसी लाज ॥
टाबर टीकर मोकळाँ करजै री भरमार ।
राम रूखाळी राखजै थाँ सरणै घरबार ॥
निरधनियाँ नै धन मिल्यो रोजणख्याँ नै राग ।
राम बता कद जागसी परदेसी रा भाग ॥
उगतो पिणघट ऊपराँ सुणतो मिठी बात ।
गळी गुवाडी घूमतो चान्दो सारी रात ॥
ना पिणघट ना बावडी ना कोयल ना छाँव ।
तो भी चोखो सहर सूँ म्हारो आधो गांव ॥
सांझ ढळ्याँ नित जांवता देखै सारो गांव ।
पिरमा थारी लाडली पटवारी रै ठांव ॥
पैली उठती गौरडी पाछै उठती भोर ।
झांझर कै ही नीरती सगळा डांगर ढोर ॥
छैल सहर सूँ बावडै खरचै धोबा धोब ।
पडै गांव मै रात दिन पटवारी सा रोब ॥
जद मन तरस्यो गांव नै जद जद हुयो अधीर ।
दूहा रै मिस मांडदी परदेसी री पीर ॥
प्रीत आपरी अचपळी घणी करै कुचमाद ।
सुपना मै सामी रवै जाग्या आवै याद ॥
पाती लिख रियो गांव नै अपरंच ओ समचार ।
दुख पावुँ परदेस मँ जीवूँ हूँ मन मार ॥
राग रंग नी आवडै कींकर उपजै तान ।
घर मै कोनी बाजरी अर टूट्योडी छान ॥
घर दे घर रूजगार दे घर घर री दे साख ।
ना देवै तो सांवरा जीवण पाछो राख ॥
बिन हरियाळी रूंखडा घरघूल्या सा ठांव ।
’राही’ दीखै दूर सूँ थारो आधो गांव ॥
लेग्या तो हा गांव सूँ कंचन देही राज ।
पाछी ल्याया सहर सूँ खांसी कब्जी खाज ॥
गाय चराती छोरडयाँ जोबन सूँ अणजाण ।
देख ओपरा जा लूकै कर जांटी री आण ।।
जोध जुवानी बेलड्याँ मिलसी करयाँ बणाव ।
आखडजै मत पावणा पगडंड्या रै गांव ॥
के तडपासी बादळी के कोयल री कूक ।
पैली ही सूँ काळजो हुयो पड्यो दो टूक ॥
अजब पीर परदेस री म मर जीवै जीव ।
घर मै तरसै गोरडी परदेसाँ मै पीव ।।
ना आंचळ ना घूंघटो ना हीवडै मै लाज ।
घिरसत पाळै गोरडी रोटी पोवै राज ॥
घाटै रो घर दे दिये दुख दीजै अणचींत ।
मतना दीजे सांवरा परदेसी री प्रीत ॥
धान महाजन रै घराँ ढोर बिक्या बे दाम ।
करज पुराणो बाप रो कीयाँ चुकै राम ॥
बेटो तो परदेस मै घर बूढा मा बाप ।
दोनो पीढी दो जघाँ दुख भोगै चुपचाप ॥
ठाला बिन रूजगार कै ताना देता लोग ।
भरी न अब तक गांव सूँ मनस्या बळण जोग ॥
जद जासी परदेस तूँ हुसी जद बरबाद ।
दरद दिसावर ई कडया रोज करैलो याद ॥
कितरा ही दुहा लिखूँ अकथ रहीज्या भाव ।
परदेसी रो दरद तो है गूंगै रो भाव ॥
सुख को कनको उड़तो कीया काण राख दी काणै में |
खोयो ऊँट घडै मै ढूडै कसर नहीं है स्याणै में ||
भूल चूक सब लेणी देणी ठग विद्या व्यापार करयो |
एक काठ की हांडी पर ही दळियो सौ बर त्यार करयो ||
बस पङता तो एक न छोड्यो च्यारू मेर सिवाणै मै |
खोयो ऊँट घडै में ढूँढे कसर नहीं है स्याणै मै
डाकण बेटा दे या ले , आ भी बात बताणी के |
तेल बड़ा सू पैली पीज्या बां की कथा कहाणी के ||
भोळा पंडित के ले ले भागोत बांच कर थाणै मे |
खोयो ऊंट घडै मे ढूंढै क़सर नहीं है स्याणै में |
जका चालता बेटा बांटै ,बै नितकी प्रसिद्ध रैया |
बिगड़ी तो बस चेली बिगड़ी संत सिद्ध का सिद्ध रैया ||
नै भी सिद्ध रैया तो कुण सो कटगो नाक ठिकाणै मे ||
खोयो ऊंट घडै मे ढूंढै क़सर नहीं है स्याणै में |
बडै चाव सूँ नाम निकाल्यो , होगो घर हाळा भागी |
लगा नाम कै बट्टो खुद कै लखणा बणरयो निर भागी |
तूं उखडन सूँ नहीं आपक्यो थकग्यो गाँव जमाणै में |
खोयो ऊंट घडै मे ढूंढै क़सर नहीं है स्याणै में |