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राजस्थानी को बचाना जरूरी

Rao GumanSingh Guman singh

Bhaskar News
जयपुर. प्रदेश में प्राथमिक कक्षाओं में राजस्थानी को सरल भाषा के रूप में अपनाए जाने पर राज्य के मंत्री और पूर्व मंत्री सहमत हैं, लेकिन इससे पहले उनका जोर इस बात पर है कि पहले राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता मिले।
इन राजनेताओं का यह भी कहना है कि अलग-अलग क्षेत्र में राजस्थानी भाषा अलग-अलग लहजे में बोली जाएगी, इसलिए सरकार या राजनीतिक स्तर पर इस बात का निर्धारण हो कि राजस्थानी भाषा का स्वरूप क्या होगा। इसे संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए राज्य सरकार केंद्र सरकार को संकल्प पारित कर भेज चुकी है।

कोटा संभाग से आने वाले ग्रामीण विकास मंत्री भरतसिंह की चिंता यह है कि उनके क्षेत्र के लोग मातृभाषा को ही भूलने लगे हैं और सामान्य बोलचाल में अंग्रेजी ने घर कर लिया है। पूर्व शिक्षा मंत्री कालीचरण सराफ राजस्थानी का पक्ष तो लेते हैं, लेकिन वे यह भी जोड़ते है कि वैश्वीकरण के दौर में सिर्फ राजस्थानी तक ही सिमटे रहना नहीं चाहते।

राजस्थानी को इसका असली मुकाम दिलाने के लिए सामूहिक प्रयास की जरूरत है। केंद्र से मान्यता मिलने के बाद स्कूलों में इसे मातृभाषा के रूप में शामिल करने जैसी योजनाएं स्वत: ही पूरी हो जाएंगी।
- वासुदेव देवनानी, पूर्व शिक्षा राज्यमंत्री

राजस्थानी का विकास हो और मातृभाषा के रूप में इसको सम्मान मिले, लेकिन शिक्षा के माध्यम के रूप में इसे लागू कर पाना संभव नहीं है। वैश्विकरण के इस दौर में हमारे बच्चे पीछे रह जाएंगे, शिक्षा का माध्यम हिंदी ही सही है, जो हमारी राष्ट्रभाषा है।
- कालीचरण सराफ, पूर्व शिक्षा मंत्री

प्रदेश में हाड़ौती, मेवाड़ी, मारवाड़ी, ढूंढ़ाड़, वागड़ी, शेखावाटी, मेवाती और ब्रज बोली का क्षेत्र के अनुसार प्रचलन है। ऐसे में किसे राजस्थानी भाषा कहा जाएगा और इसके निर्धारण का क्या मापदंड होगा, यह तय हुए बिना इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। हिंदी और अंग्रेजी भाषा ऐसी है जिसे हर क्षेत्र का व्यक्ति सहजता से समझता है। मुझे तो इस बात का दुख है कि हाड़ौती के लोग ही हाड़ौती में बात करने के स्थान पर हिंदी या अंग्रेजी का इस्तेमाल करते हैं।
- भरतसिंह, ग्रामीण विकास एवं पंचायतीराज मंत्री

हमारी भाषा को मान्यता दो

हम राजस्थानी को आगे बढ़ाने के पक्षधर हैं। यह संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल हो जाए तो सारे काम अपने आप हो जाएंगे।
-बी.डी. कल्ला, पूर्व शिक्षा मंत्री

बच्च मातृभाषा में ज्यादा सीखता है और पढ़ाई का माध्यम भी यही होना चाहिए। मेरे शिक्षा मंत्री रहते हुए प्रारंभिक शिक्षा में राजस्थानी को शामिल करने की मांग को लेकर एक बार प्रतिनिधिमंडल मिला था, इसके बाद कोई नहीं आया।
- घनश्याम तिवाड़ी, पूर्व शिक्षा मंत्री

अभी यह तय नहीं हो पाया है कि राजस्थानी भाषा किसे कहा जाए, क्योंकि हर क्षेत्र में अलग—अलग बोलियां हैं। मुख्यमंत्री और सरकार इस बारे में कोई निर्णय ले तो इसके बाद स्कूलों में लागू करने की बात आएगी।
- हेमाराम चौधरी, राजस्व मंत्री