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सरदी लागै कोढ
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गरमी लागै सांतरी , सरदी लागै कोढ
छोड सियाळा मरुधरा , जाय हिमाळै पोढ ।।
गूदड़ दोरा सांभणां , सांभण दोरो कंत ।
सरदी थारै कारणैं , जूण डरै बेअंत ।।
घर में बड़ता पावणां , ताती मांगै चाय ।
ठोकै पोढ जमावणां , लुक्खा न आवै दाय ।।
न्हाणां धोणां छूटिया , बाळां धूणीं काठ ।
चेतै कद नित नेमड़ा , रोटी ठोकां आठ ।।
नित रा भावै गुलगला , रत्ती न भावै काम ।
इण सरदी रै मांयनैं , कियां कुटावां चाम ।।
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ओम पुरोहित कागद
24-दुर्गा कोलोनी
हनुमानगढ़ जंक्शन-335513
मळया आय मिथिलापुरी , भूतळरा के भूप !!
गर्व सकळ रा गाळिया , राघव कुळरा रुप !!१!!
धनुष धरण जब तुं धस्यो , लौचन अरूण लिलाट !!
पद चंपत पगनेश , डग दीसा डणणाट !!२!!
डणणणणण दीस दिग्गज सह डणकत भणण खणण ब्रह्मांड भयो :
गणणणणण गहर गुहागिरी गणकत ठणण ठणण टंकार थयो :
कणणण लंक नृपाळ कणंकत गणण गणण शीर मुगट ग्रीयो :
धणणण शैष कोल कच्छ धणकत धनुष हाथ रघुनाथ धर्यो !!१!!
कड़ड़ड़ड़ड़ व्योम गोम पड़ कड़कत अड़ड़ अड़ड़ समुदर उछळं :
थड़ड़ड धाम छोड़ खळ थड़कत धड़ड़ धड़ड़ धर नमत ढळं :
गड़ड़ड़ड़ चंद्र लोक लग गड़गड़ फड़ड़ फड़ड़ हय फांण फर्यो :
धणणण शैष कोल कच्छ धणकत धनुष हाथ रघुनाथ धर्यो !!२!!
कटकटकट सपट झपट फटफट थट खटखट झटपट उलट झटयो :
भटभटभट भटक भटक भय भटभट फटक फटक मनु व्योम फटयो :
घट घट घट अमट अर्यां गभरावट हटहटहट खळदळ हहर्यो :
धणणण शैष कोल कच्छ धणकत धनुष हाथ रघुनाथ धर्यो !!३!!
झक झक झक नमक रमक झणकारव दमक चमक हर ध्यांन खुले :
छकछक मद अछक अछक्के तक तक भटक भटक भट खटक भूले : हकबकहिय सठक गठकटक नाटक फटक फटक थक थक फफर्यो :
धणणण शैष कोल कच्छ धणकत धनुष हाथ रघुनाथ धर्यो !!४!!
खळभळ अळ प्रबळ प्रबळ तळ पातळ खळखळ कळ बळ अकळ खसे :
डळडळडळ डळत ढळत भुदरसर तळतळ थळथळ सभड़ त्रसे :
झळ झळ झळ झळकझळक कर झळकत खळकखळक सुर कुसुम खर्यो :
धणणण शैष कोल कच्छ धणकत धनुष हाथ रघुनाथ धर्यो !!५!!
सगवगनग अडगअडग चगचगचग जगजगजग रणंकार जग्यो :
टगटगटग टगर मगर खगखगखग छगछग रग पग अछग छग्यो :
फगफगफग विलग विलग मगडगडग नगनग भग सुरराज नर्यो : धणणण शैष कोल कच्छ धणकत धनुष हाथ रघुनाथ धर्यो !!६!!
खररर अपर अपरं वरधर पर पर धरधर पर अमर पर्यो :
झररर सरर सरर झट झांझर सुरपर परहर सकर सर्यो:
कर कर कर जयति कौशीककर धर धर हर धनु सधर धर्यो :
धणणण शैष कोल कच्छ धणकत धनुष हाथ रघुनाथ धर्यो !!७!!
सत सत कृत अमत श्रवत दशरथ सत रजत रजत सुर प्रमुद रह्यो :
ध्रत ध्रत ततकाल हारगल सीतरत गत मत रत गुर चरन ग्रह्यो :
क्रत क्रत अत कांन दांन नीज क्रत दत भजत भजत भव पार कर्यो :
धणणण शैष कोल कच्छ धणकत धनुष हाथ रघुनाथ धर्यो !!८!!
कळस छन्द छप्पैया
धर्यो धनुष रणधीर , वीस्मय घणा विदार्या :
धर्यो धनुष रणधीर , ताप मुनि गणरा टाळ्या :
धर्यो धनुष रणधीर लंक रोळण खग लीधो :
धर्यो धनुष रणधीर , काज अमारो वड कीधो :
धर्यो धनुष ब्रह्मांडधर ,धरण भार भूवरो हसी :
चित वृथा कान सुरभिय चहे चण सारूं लेवा असी !!१!!
वढियार धरा के रत्न कवि कान गांगड़ा कृत छन्द रेणकी :- प्रेषित मीठा मीर डभाल