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सरदी लागै कोढ
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गरमी लागै सांतरी , सरदी लागै कोढ
छोड सियाळा मरुधरा , जाय हिमाळै पोढ ।।
गूदड़ दोरा सांभणां , सांभण दोरो कंत ।
सरदी थारै कारणैं , जूण डरै बेअंत ।।
घर में बड़ता पावणां , ताती मांगै चाय ।
ठोकै पोढ जमावणां , लुक्खा न आवै दाय ।।
न्हाणां धोणां छूटिया , बाळां धूणीं काठ ।
चेतै कद नित नेमड़ा , रोटी ठोकां आठ ।।
नित रा भावै गुलगला , रत्ती न भावै काम ।
इण सरदी रै मांयनैं , कियां कुटावां चाम ।।
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ओम पुरोहित कागद
24-दुर्गा कोलोनी
हनुमानगढ़ जंक्शन-335513
Father day
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-*शंभु चौधरी*-
पिता, पिता ही रहे ,
माँ न बन वो सके,
कठोर बन, दीखते रहे
चिकनी माटी की तरह।
चाँद को वो खिलौना बना
खिलाते थे हमें,
हम खेलते ही रहे,...
5 हफ़्ते पहले
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