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म्हारीं इण पोथी

Rao GumanSingh Guman singh


म्हारीं इण पोथी रै ऎकुकै चितराम ने मैं सावळ नेठाव सूं परखियौ है। राजस्थानी संस्कृति सूं सराबोर आ पोथी रालस्थानी काव्य री धकळी पांत री टाळकी पोथी है। मठार-मठार अर मांड़ियोडा चितराम हत्तूका सामा ऊबा, मूंडै बोलता लखावै। ऎकूकौ टाळमौ आखर आपरी ठावकी ठोड़ बीड़ीजियोड़ौ दीसै। लिखारै उण्डी-उण्ड़ी मरम री बातां रै ठेट मांय बड़ ने सावळ टंटोळ ने पछै लिखी है। राजस्थानी भासा री जाणकारी रै सागैई सूझ आळी दीठ, खरी परख, अचुकरी उपज, इतिहास री पूरी पकड़ अर राजस्थानी संस्कृति ने रुं-रु में रमायां टाळ इत्ती सांतरी पोथी लिखीजै इज कौ-यनी।
चितराम सामी है, रेखावां रां, रंगा रा चितराम नीं है। ऎ चितराम है सबदां रा। केई सबदां रा चितराम ऎड़ा हुया करै जका सबद री सींव में रिया करै, अर कीं चितराम सबद री सींव री ने तोड़ै, सबदां ने नवा अरथां सू भरै, नवा मरम दैवे।सबद खुदौखुद चितराम रा उणियारा ने उजागर करै।अर चितराम सबद री आतमा ने।

राजस्थानी भासा

Rao GumanSingh Guman singh


भासा राजस्थान री, रहियां राजस्थान।
राजस्थानी रै बिना, थोथो मान 'गुमान'॥
आढो दुरसौ अखौ, ठाढ़ा कवि टणकेल।
भासा बिना न पांगरै, साहित वाळी बेल॥
पीथल बीकाणै पुर्णा, जाणै सकल जिहान।
पातल नै पत्री पठा, गहर करायौ ग्यान॥
सबद बाण पीथल लगै, मन महाराणा मोद।
अकबर दल आयो अड़ण, हलदी घाट सीसोद॥
धर बांकी बांका अनड़, वांका नर अर नार।
इण धरती रा ऊपना, प्रिथमी रा सिंणगार॥
धन धरती धन ध्रंगड़ो, धन धन धणी धिणाप।
धन मारु धर धींगड़ा, जपै जगत ज्यां जाप॥
रचदे मेहंदी राचणी, नायण रण मुख नाह।
जीतां जंग बधावस्यां, ढहियां तन संग दाह॥
नरपुर लग निभवै नहीं, आज काल री प्रीत।
सुरपुर तक पाळी सखी, प्रेम तणी प्रतीत॥
मायड़ भासा मान सूं, प्रांत तणी पहिचांण।
भासा में ईज मिलैह, आण काण ऒळखांण॥
मायड़ भासा जाण बिण, गूंगो ग्यान 'गुमान'।
तीजा गवरा होळीका, हुवै प्रांत पहिचांन॥
भाइ बीज राखी बंधण, गीत भात अर बान।
बनौ विन्याक कामण्या, विण भासा न बखान॥