बोलो-बोलो रे भायला, अठै की नीं आणी-जाणी छै।
व्है छै कीं उठै, जठै खीरा भळ-भळता व्है।
भर काळजे बारूद, घूमतो हरेक जोध व्है।
बात साटै सिर देवण नैं तातो कुंचो-कुंचो व्है।
जठै अन्याव रै सांमी लड़-भिड़णो ही धर्म व्है।
इसड़ै जोधां रै सांमी लुळ्यो, जमानो छै।
पण तूं बोलो-बोलो रे भायला, अठै की नीं आणी-जाणी छै।
विनोद सारस्वत
Father day
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-*शंभु चौधरी*-
पिता, पिता ही रहे ,
माँ न बन वो सके,
कठोर बन, दीखते रहे
चिकनी माटी की तरह।
चाँद को वो खिलौना बना
खिलाते थे हमें,
हम खेलते ही रहे,...
5 हफ़्ते पहले