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हूं रे हूं-विजयदांन देथा री बातां

Rao GumanSingh Guman singh

हूं रे हूं
 
 
अे जाडी गवाड़ी रो धणी चालतो रह्‌यौ तो उणरी घरवाळी केई दिनां तांई रोवती नीं ढबी। न्यात अर कड़ूंबा रा जाट भेळा होय उणनै समझावण लागा। तद वा रोवती-रोवती ई कैवण लागी- धणी रै लारै मरणा सूं तो रीवी। आ दाझ तो जीवूंला जित्तै बुझैला नीं। अबै रोवणो तो इण बात रो है कै लारै घर में कोई मोट्यार कोनीं। म्हारी आ छह सौ बीघा जमीं कुण जोतैला, बोवैला?
हाथ में गेडी अर खांधै पटू़डो* लियां अेक जाट पाखती ई ऊभो हो। वो जोर सूं बोल्यो- हूं रे हूं।
पछै वा जाटणी वळै रोवती-रोवती बोली- म्हारै तीन सौ गायां री छांग अर पांच सौ लरड़ियां रो ऐवड़ है। उणरो धणी-धोरी कुण व्हैला?
वो सागी ई जाट वळै कह्यो- हूं रे हूं।
वा जाटणी वळै रोवती-रोवती बोली- म्हारै च्यार पचावा*, तीन ढूंगरियां* अर पांच बाड़ा है, वां री सार-संभाळ कुण करैला?
वो जाट तो किणी दूजा नै बोलण रो मौको ई नीं दियो। तुरंत बोल्यो- हूं रे हूं।
जाटणी तो रोवती नीं ढबी। डुस्कियां भरती-भरती बोली- म्हारो धणी बीस हजार रो माथै लेहणो छोड़नै गियो, उणनै कुण चुकावैला?
अबकी वो जाट कीं नीं बोल्यो। पण थोड़ी ताळ तांईं किणी दूजा नै इणरो हूंकारो नीं भरतां देख्यो तो जोस खाय कह्यो- भला मिनखां, इत्ती बातां रा म्हैं अेकलो हूंकारा भरिया। थैं इत्ता जणा ऊभा हो, इण अेक बात रो तो कोई हूंकारो भरो। यूं पाछा-पाछा कांईं सिरको!
(विजयदांन देथा री बातां री फुलवाड़ी सूं साभार।) 
पटू़डो- ओढण रो ऊनी गाभो।
 पचावा-ज्वार- बाजरी रै पूळां रो ढिग।
ढूंगरियां- सूकै घास रो ढिग।
 

मरूधर रो अगनबोट ऊंट

Rao GumanSingh Guman singh

प्रो. जहूरखां मेहर
सन 1941 मांय जोधपुर मांय जाया-जलम्या प्रो. जहूरखां मेहर राजस्थानी रा विरला लिखारां मांय सूं अे. जिणां री भासा में ठेठ राजस्थानी रो ठाठ देखणनै मिळै. राजस्थान रै इतिहास, संस्कृति अर भासा-साहित पेटै आपरा निबंध लगोलग छपता रैवै. मोकळा पुरस्कार-सनमान मिल्या है. आज बांचो आं रौ औ खास लेख 
रेगिस्तानी बातां सारू राजस्थानी री मरोड़ अर ठरको ई न्यारो. सबदां सूं लड़ालूंब घणी राती-माती भासा है राजस्थानी. इण लेख में मरुखेतर रै अेक जीव ऊंट सूं जुड़ियोड़े रो लेखो करता थकां आ बात जतावण री खप्पत करी है कै थळी रै जीवां अर बातां सारू राजस्थानी भासा री मरोड़ अर ठरको ई न्यारो.
ऊंट मरुखेतर रो अगनबोट कैईजै अर इण सारू राजस्थानी साहित, इतिहास अर बातां में इतरा बखाण लाधै कै इचरज सूं बाको फाड़णो पड़ै. दूजी भासावां में तो 'ऊंट' अर 'कैमल' सूं आगै काळी-पीळी भींत. मादा ऊंट सारू 'ऊंटनी' अर 'सी कैमल' या 'कैमलैस' सूं धाको धिकाणो पड़ै. पण आपणी भासा में इण जीव रा कितरा-कितरा नांव! कीं तो म्हे अंवेरनै लाया हां. बांच्यां ई ठा पड़ै -
जाखोड़ो, जकसेस, रातळो, रवण, जमाद, जमीकरवत, वैत, मईयो, मरुद्विप, बारगीर, मय, बेहटो, मदधर, भूरो, विडंगक, माकड़ाझाड़, भूमिगम, पींडाढाळ, धैंधीगर, अणियाळ, रवणक, फीणनांखतो, करसलो, अलहैरी, डाचाळ, पटाल, मयंद, पाकेट, कंठाळक, ओठारू, पांगळ, कछो, आखरातंबर, टोरड़ो, कंटकअसण, करसो, घघ, संडो, करहो, कुळनारू, सरढो, सरडो, हड़बचियो, हड़बचाळो, सरसैयो, गघराव, करेलड़ो, करह, सरभ, करसलियो, गय, जूंग, नेहटू, समाज, कुळनास, गिडंग, तोड़, दुरंतक, भुणकमलो, वरहास, दरक, वासंत, लंबोस्ट, सिंधु, ओठो, विडंग, कंठाळ, करहलो, टोड, भूणमत्थो, सढ़ढो, दासेरक, सळ, सांढियो, सुतर, लोहतड़ो, फफिंडाळो, हाथीमोलो, सुपंथ, जोडरो, नसलंबड़, मोलघण, भोळि, दुरग, करभ, करवळो, भूतहन, ढागो, गडंक, करहास, दोयककुत, मरुप्रिय, महाअंग, सिसुनामी, क्रमेलक, उस्ट्र, प्रचंड, वक्रग्रीव, महाग्रीव, जंगळतणोजत्ती, पट्टाझर, सींधड़ो, गिड़कंध, गूंघलो, कमाल, भड्डो, महागात, नेसारू, सुतराकस अर हटाळ.
मादा ऊंट रा ई मोकळा नांव. बूढी, ग्याबण, जापायती, बांझड़ी, कागबांझड़ी अर भळै के ठा कित्ती भांत री सांढां सारू न्यारा-न्यारा नांव. मादा ऊंट नै सांढ, टोडड़ी, सांयड, सारहली, टोडकी, सांड, सांईड, क्रमाळी, सरढी, ऊंटड़ी, रातळ, करसोड़ी, रातल, करहेलड़ी, कछी अर जैसलमेर में डाची कैवै. सांढ जे ढळती उमर री व्है तो डाग, रोर, डागी, रोड़ो, खोर, डागड़ जै़डै नांवां सूं ओळखीजै. सांढ जे बांझ व्है तो ठांठी, फिरड़ी, फांडर अर ठांठर कहीजै. लुगायां ज्यूं कागबांझड़ी व्है अर अेकर जणियां पछै पाछी कदैई आंख पड़ै इज कोयनी. ज्यूं सांढ ई अेकर ब्यायां पछै दोजीवायती नीं व्है तो बांवड़ कहीजै. बांवड़ नै कठैई-कठैई खांखर अर खांखी ई कैवै. पेट में बचियो व्है जकी सांढ सुबर कहीजै. जिण सांढ रै साथै साव चिन्योक कुरियो व्है वा सलवार रै नांव सूं ओळखीजै. कदैई जे कुरियो हूवतां ई मर जावै तो बिना कुरियै री आ सांढ हतवार कुहावै.

ऊंट रो साव नान्हो बचियो कुरियो कुहावै. कुरियो तर-तर मोटो व्है ज्यूं उणरा नांव ई बदळता जावै. पूरो ऊंट बणण सूं पैलां कुरियो, भरियो, भरगत, करह, कलभ, करियो अर टोडियो या टोरड़ो अर तोरड़ो कहीजै.

राजस्थानी संस्कृति में ऊंट सागे़डो रळियोड़ो, अेकमेक हु
योड़ो. लोक-साहित इणरी साख भरै. ऊंट सूं जुड़ियोडा अलेखूं ओखाणा अर आडियां मिनखां मूंडै याद. लोकगीतां रो लेखो ई कमती नीं.

जगत री बीजी कोई जोरावर सूं जोरावर भासा में ई अेक चीज रा इत्ता नांव नीं लाधै. कोई तूमार लै तो ठा पड़ै कै कठै तो राजस्थानी रै सबदां रो हिमाळै अर कठै बीजी फदाक में डाकीजण जोग टेकरियां. कठै भोज रो पोथीखानो, कठै गंगू री घाणी!
 
(आ हिंदी भासा तौ राजस्थांनी रै आगे पाणी कम चा है, इण हिंदी रौ राजस्थांनी अर दूजी प्रादेसिक भासावां रा घणा सबद चोरी कर्‌या है तौ ई इणमांय इत्ता प्रयायवाची सबद नीं लाधै. हिंदी रौ अर इज राजस्थांनी री रक्षा कर सकै है - हनवंतसिंघ).

आज रौ औखांणौ

जांन में कुण-कुण आया? कै बीन अर बीन रो भाई, खोड़ियो ऊंट अर कांणियो नाई।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका,
वाया-गोगामे़डी, जिलो- हनुमानगढ़ -335504.
 
राजस्थानी रा लिखारां सूं अरज- आप भी आपरा आलेख इण स्तम्भ सारू भेजो सा!
कोरियर री डाक इण ठिकाणै भेजो सा!
सत्यनारायण सोनी, द्वारा- बरवाळी ज्वेलर्स, जाजू मंदिर, नोहर 335523.
email- aapnibhasha@gmail.com
blog- aapnibhasha.blogspot.com

रंगीलो राजस्थान

Rao GumanSingh Guman singh

राजस्थान रंगीलो प्रदेस. राजस्थान नै परम्परागत रूप सूं रंगां रै प्रति अणूंतो लगाव. सगळी दुनिया रो मन मोवै राजस्थानी रंग.
बरसां पैली नेहरू रै बगत नागौर में पंचायत राज रो पैलड़ो टणकौ मेळौ लाग्यौ। 2 अक्टूबर, 1959 रौ दिन हौ. राजस्थान रा सगळा सिरैपंच भेळा हुया। नेहरूजी मंच माथै पधारिया तो निजरां साम्हीं रंग-बिरंगा साफा रो समंदर लहरावतो देख'र मगन हुयग्या। रंगां री आ छटा देख वां री आंख्यां तिरपत हुयगी। मन सतरंगी छटा में डूबग्यो। रंगां रै इण समंदर में डूबता-उतरता गद्-गद् वाणी में बोल्या- ''राजस्थान वासियां! थै म्हारी एक बात मानज्यो, आ म्हारै अंतस री अरदास है। वगत रा बहाव में आय'र रंगां री इण अनूठी छटा नै मत छोड़ज्यो। राजस्थानी जनजीवण री आ एक अमर औळखांण है। इण धरती री आ आपरी न्यारी पिछाण है। इण वास्तै राजस्थान रो ओ रंगीलो स्वरूप कायम रैवणो चाइजै।''
राजस्थानी जनजीवण रा सांस्कृतिक पख नै उजागर करता पंडतजी रा अे  बोल घणा महताऊ है। 'रंग' राजस्थानी लोक-संस्कृति री अेक खासियत है। अठै कोई बिड़दावै, स्याबासी दिरीजै तो उणनै 'रंग देवणो' कहीजै- 'घणा रंग है थनै अर थारा माईतां नै कै थे इस्यो सुगणो काम करियो।' अमल लेवती-देवती वगत ई जिको 'रंग' दिरीजै उणमें सगळा सतपुरुषां नै बिड़दाइजै।
राजस्थान री धरती माथै
ठोड़-ठोड़ मेळा भरीजै। आप कोई मेळै में पधार जावो- आपनै रंगां रो समंदर लहरावतो निगै आसी। लुगायां रौ रंग-बिरंगा परिधान आपरो मन मोह लेसी। खासकर विदेसी सैलाणियां नै ओ दरसाव घणो ई चोखो लागै। इण रंगां री छटा नै वै आपरै कैमरां में कैद करनै जीवण लग अंवेर नै राखै।
राजस्थानी पैरवास कु़डती-कांचळी अर लहंगो-ओढणी संसार में आपरी न्यारी मठोठ राखै। लैरियो, चूंनड़ी, धनक अर पोमचो आपरी सतरंगी छटा बिखेरै। ओ सगळो रंगां रो प्रताप।
इणीज भांत राजस्थानी होळी अेक रंगीलो महोच्छब। इण मौकै मानखै रो तन अर मन दोन्यूं रंगीज जावै। उड़तोड़ी गुलाल अर छितरता रंग अेक मनमोवणो वातावरण पैदा करै। रंगां रो जिको मेळ होळी रै दिनां राजस्थान में देखण नै मिलै, संसार में दूजी
ठोड़ स्यात ई निजरां आवै।
मानवीय दुरबळतावां रै कारण साल भर में पैदा हुयोड़ा टंटा-झगड़ा, मन-मुटाव अर ईर्ष्या-द्वेष सगळा इण रंगीलै वातावरण में धुप नै साफ होय जावै, मन रो मैल मिट जावै।
इण रंगीलै प्रदेस री रंगीली होळी रै मंगळ मौकै आपां नै आ बात चेतै राखणी कै वगत रै बहाव में आय'र भलां ई सो कीं छूट जावै पण आपणी रंग-बिरंगी संस्कृति री अनूठी छटा बणायां राखणी।

कंवल उणियार रो लिखियोड़ौ दूहो बांचो सा!

चिपग्या कंचन देह रै, कपड़ा रंग में भीज।
सदा सुरंगी कामणी, खिली और, रंगीज।।


आज रौ औखांणौ

फूहड़ रो मैल फागण में उतरै।
जे मिनख आपणै डिल री साफ-सफाई माथै ध्यांन नीं उण माथै कटाक्ष स्वरूप आ केवत कह्‌विजै।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका,
वाया-गोगामे़डी, जिलो- हनुमानगढ़-335504
कोरियर री डाक इण ठिकाणै भेजो सा!
सत्यनारायण सोनी, द्वारा- बरवाळी ज्वेलर्स, जाजू मंदिर, नोहर-335523
राजस्थानी रा लिखारां सूं अरज- आप भी आपरा आलेख इण स्तम्भ सारू भेजो सा! 

blog- aapnibhasha.blogspot.com