धड़ धरती पग पागड़ै, आंतां तणो घरट्ट।
तोहि न छांडै साहिबो, मूंछां तणो मरट्ट॥
भड़ बिण माथै जीतियो, लीलो घर ल्यायोह।
सिर भूल्यो भोळो घणो, सासू रो जायोह॥
खाग खणकै सिर फटै, तिल तिल माथै सींब।
आलां घावां ऊठसी, धीमो बोल नकीब॥
कठण पयोधर लग्गतां, कसमसातो तूं कन्त।
सेल घमोड़ा किम सह्या, किम सहिया गजदन्त॥
मैं परणन्ती परखियो, मूंछां भिड़ियो मोड़।
जासी सुरग न एकलो, जासी दळ संजोड़॥
ढोल सुणंतां मंगळी, मूंछां भौंह चढंत।
चंवरी ही पहचाणियो, कंवरी मरणो कन्त॥
हथलेवै री मूठ किण, हाथ विलग्गा माय।
लाखां वातां हेकळो, चूड़ो मो न लजाय॥
करड़ा कुच नूं भाखतो पड़वा हंदी चोळ।
अब फूलां जिम आंगमै, भाळां री घमरोल॥
(संकलित काव्य)
Father day
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-*शंभु चौधरी*-
पिता, पिता ही रहे ,
माँ न बन वो सके,
कठोर बन, दीखते रहे
चिकनी माटी की तरह।
चाँद को वो खिलौना बना
खिलाते थे हमें,
हम खेलते ही रहे,...
5 हफ़्ते पहले