बरसों पहले महादेव की कृपा से लिखी हूइ स्तूति आज शिवरात्री के पावन पर्व पर प्रस्तुत करता हूं..........
।।दोहा।।
।।आशुतोष अजर अमर, वपु वेश विकराल।
भवपातक भंजन भला,जयजय शिव जट्टाल।।
।।छन्द: पद्धरी।।
जय जय महेश, जय जय जट्टाल।
हर हरहू दुख, मम प्रणत पाल।
विकराल वेश, आजान भुज।
गहे गंग नाद, गहरीय गुंज।।
कैलाश वास, प्रेतां सुपास।
रचै रंग रजी रंभा सुरास।
गावत गंधर्व, किन्नर गान।
वधै व्योम अपसर, सुर विमान।
बजै ताल ताक, तिहू लोक बाक।
हर-हर अथाक,नभमंडल हाक।
रुदै राम रट्ट, करी घट्ट नाद।
उलट्ट पट्ट, झट्ट जोग जाद।
फर फेर हेर, फरंगट्ट फट्ट।
तांडव नाच, निरमै सुनट्ट।
सजाय जाय, शंखा सुणाय।
बेधक बुलाय, वीणा बजाय।
वजै विविधी रंगी, सारंगी शुर।
नटराज आज, पहनें नुपुर।
कसी कटिबंधी, बांधत बेर।
फनि जटाजुट, संभाल फेर।
भरी चलम भांग, बनी चकचुर।
करी नयन लाल कुदे करुर।
उछरंग अंग, करी दंग देव।
तांडव सकाज सजै सजेव।
अवनी आकम्प, दिगपाल डोल।
बमबम नाद, बहू मुख बोल।
छुटी डाकहाक बजी भ्रमत भोम।
सुझे न बात, स-सोच सोम।
भवभुत भमे, रमे नवी रीत।
लगे पाय लळी, वळी जगजीत।
होंकार खार, धरी करी क्रोध।
धधकत शिरे, गंगा रा धोध।
त्रिचख लख, लहे अगन ज्वाल।
रमेभमे रखे,सजी खखीड खाल।
अवधुत दुत, कृत करे केक।
अदभुत नृत, सरजे अनेक।
वंदे विशेष, मुनिवर समाज।
गणचारण गहे,जयजयति गाज।
दहे देव दुख, अरु अंगरोग।
कटे कष्ट कैक, मेटे जरा जोग।
हटे हानी ध्यानी, जो ध्यावु धीर।
प्रभु प्राण नाथ, परजाळे पीर।
करे सुंदर मंदर, इन्द्र धाम।
त्रिया संगे सुख, लहे तमाम।
पामे जश किर्ति, खुख अपार।
यह स्तुति पढे, नीत ध्यान धार।
जुगल हाथ जोडी, जपै "जयेश"।
जय जय महेश, जयजय महेश।
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।। हर हर महादेव।।
।।महाशिवरात्री के पर्व की बधाई हो।।
-कवि: जय
- जयेशदान गढवी।