कविजन घर रहै, तीन अवगुण होय।
कापड़ फटै, करज बढै, नाम न जाणै कोई।।
भमता भळा जोगीयां, भमता भळा सुपात्र।
भमता भळा पंखीयां, जठै बैठे वठै ही गांव।।
नाम रहंदा ठाकरां, नाणां नहिं रहंत।
कीर्ती हंदा कोटड़ा, पाडयां नहिं पडंत।।
मुसलमान सुव्वर तजें, हिन्दु तजें सो गाय।
दोनुं रस्ता छोड़ के, काफर होय ते खाय।।
नीर थोड़ो नेह घणों, लग्यो परित को बाण।
तुं पी, तुं पी करतां, दोई जणें छोड्या पराण।।
कहत वखत बळवान हे, नहिं नर बळवान।
काबे अरजण लूंटियों, ऐहीं धनुस ऐहीं बांण।।
ऐहीं बांण चौहाण, राम रावण उथप्यों।
ऐहीं बांण चौहाण, करण सिर अरजण कप्यों॥
(संकलित दोहावळी)
अमृत महोत्सव से अमृतकाल तक की यात्रा
-
*अमृत महोत्सव से अमृतकाल तक की यात्रा*
लोगों को अब दंड नहीं बल्कि उनको न्याय दिलाया जाएगा। यह अलग बात है कि दंड
दिए बिना न्याय कैसे मिलेगा? सवाल खड़ा तो ...
7 माह पहले