हूँ बळिहारी राणियां ,
जाया वंस छतीस ।
सेर सलूणो चूण ले ,
सीस करै बगसीस ।।
हूँ बळिहारी राणियां ,
थाळ वजाणौ दीह ।
वींद जमी'रा जे जणै ,
सांकळ ढीटा सीह।।
हूँ बळिहारी राणियां ,
भ्रूण सिखावण भाव ।
नाळो वाढण री छुरी ,
झपटै जणियो साव।।
थाळ वजतां हे सखी ,
दिठो नैणा फुळाय ।
वाजां'रै सिर चेतणो ,
भ्रूणां कवण सिखाय?।
इळा न देणी आपणी ,
रण खेतां भिङ जाय ।
पूत सिखावे पालणै ,
मरण वडाई माय।।
Father day
-
-*शंभु चौधरी*-
पिता, पिता ही रहे ,
माँ न बन वो सके,
कठोर बन, दीखते रहे
चिकनी माटी की तरह।
चाँद को वो खिलौना बना
खिलाते थे हमें,
हम खेलते ही रहे,...
5 हफ़्ते पहले