आँख्या-गीड़, उमड़ती भीड़हवेली री पीड़
सूनी छोड़ग्या बेटी रा बाप !
बुझाग्या चुल्है रो ताप
कुण कमावै, कुण खावै
कुण चिणावै, कुण रेवै !
जंगी ढोलां पर चाल्योड़ी तराड़
बोदी भींता रा खिंडता लेवड़ा
भुजणता चितराम
चारूंमेर लाग्योड़ी लेदरी
बतावै भूत-भविस अ’र वरतमान
री कहाणी ! कीं आणी न जाणी !
आदमखोर मिनख
बैंसग्या पड्योड़ा सांसर ज्यूं
भाखर मांय टांडै
जबरी जूण’र जमारो मांडै !
काकोसा आपरै जींवतै थकां
ई भींत पर
एक कीड़ी नी चढ़णै देवतां
पण टैम रै आगै कीं रो जोर ?
काकोसा खुद कांच री फ्रेम में
ऊपर टंगग्या
पेट भराई रै जुगाड़ मैं
सगळो कडुमो छोड्यो देस
बसग्या परदेस,
ठांवा रै ताळा, पोळ्यां में बैठग्या
ठाकर रूखाळा।
टूट्योड़ी सी खाट
ठाकरां रा ठाट
बीड्यां रो बंडल, चिलम’र सिगड़ी
कुणै में उतर्योड़ो घड़ो
गण्डक अ’र ससांर घेरणै तांई
एक लाठी
अरड़ावै पांगली पीड़ स्यूं गैली
बापड़ी सूनी हवेली !-डॉ. एस.आर.टेलर
जोधपुर. प्राचीन काल से ही पाग और साफों को आन, बान और शान का प्रतीक माना जाता है। यही नहीं स्वास्थ्य के लिहाज से भी पाग की उपयोगिता साबित हो गई है। एक शोध में वैज्ञानिकों ने मारवाड़ी पाग को स्वास्थ्य के लिहाज से उपयुक्त पाया है।
उदयपुर के कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (सीटीएई) के वैज्ञानिक अब मारवाड़ी पाग की तर्ज पर ऐसी पगड़ी डिजाइन करने में जुटे हैं, जो तेज गर्मी में खेतों में काम कर रहे किसान और मजदूरों का बचाव करेगी। सीटीएई के वैज्ञानिकों ने इस शोध में विभिन्न क्षेत्रों की पगड़ियों और साफों के विवरण, उनकी कार्यक्षमता, पगड़ी या साफा पहनने से काम पर असर, काम के प्रकार, क्षेत्रवार तापमान आदि का भी सर्वे किया।
सीटीएई के डॉ. अशोक मेहता के नेतृत्व में शुभकरणसिंह द्वारा किए जा रहे शोध में प्रारंभिक अध्ययन के बाद पाया गया कि मारवाड़ी साफे (बंटदार गुंथे हुए) किसानों के लिए सर्वाधिक उपयुक्त हैं। इनमें भी सफेद पगड़ी स्वास्थ्य की दृष्टि से सबसे बेहतर है। ये खासकर बाड़मेर, नागौर व जैसलमेर जिले के ग्रामीण इलाकों में बांधे जाते हैं।
बनाई जाएगी नई पगड़ी: डॉ. मेहता ने बताया कि फील्ड वर्क के बाद कॉलेज में मारवाड़ी पाग की तर्ज पर एक विशेष प्रकार की पगड़ी डिजाइन की जाएगी, जो किसानों की कार्य क्षमता बढ़ाएगी। साल भर में यह पगड़ी किसानों को मुहैया करा दी जाएगी।
खिड़किया पाग: जोधपुर की प्रचलित खिड़किया पाग बांधने के लिए पीतल व तांबे के तारों का एक सांचा बनाया जाता है। रुई की तहें और सिलाई के जरिये उसको आकार दिया जाता है। कपड़ा चाहे बंधेज या खीनखाब हो, उस पर लपेटने के बाद मोतियों से उसकी सजावट की जाती है। खिड़किया पाग के सामने का सिरा ऊंचा होता हैं और पीछे से नीचा।