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आखर रा उमराव- नपसा वैतालिक

Rao GumanSingh Guman singh

आखर रा उमराव रे, नित मन बजै नगाड।
कवित लोग उणने कहै, धींगड धींगड धाड॥1
आखर रा उमराव रे, मन कोलाहल होय।
जिण ने कुछ कहता कवित, ध्वनि प्रदूषण कोय॥2
आखर रा उमराव रे, मन मे नाचै मोर।
मलजी नाठौ मेल ने, गजबण आबू  और॥3
आखर रा उमरावजी, तेज  आपरा तीर।
बिन बिंध्यां घायल किया, मारो मोटा मीर॥4
आखर भाखर सम तथा, आखर साकर होय।
आखर टांकर सांतरा, कवि बणै हर कोय॥5
पेला होवै आदमी, फेरूं कवि हर कोय।
आखर सूं भाखर बणै, आखर साकर होय॥6
आखर रा उमराव हो, सूंपौ थें सिरपाव।
बडा बडा कविराव ने, बांटौ लाख पसाव॥7
आखर रा उमराव थे, म्है छोटकियौ साव।
नरपत नेह निभाव जो, हुं  किंकर कविराव॥8
आखर रा उमरावजी, रात जमी है जोर।
घर जावा दो साह्यबा, आखर लिखसां और॥9
आज उनींदी आंखडी, पांपण झपकै जोर।
नीदं आवती नाथजी, आखर लिखसां और॥10
आवो निंदर अब बणै, मत तरसावौ मीत।
मन भावौ मिळ  सुपन मे, तोड न जावौ प्रीत॥11
घणी रात गाढी हुई, अंधारो अणपार।
दो जावण दिलदार अब,मिळसां काल सवार॥12

नरपत आवडदान आशिया"वैतालिक"