हूँ बळिहारी राणियां ,
जाया वंस छतीस ।
सेर सलूणो चूण ले ,
सीस करै बगसीस ।।
हूँ बळिहारी राणियां ,
थाळ वजाणौ दीह ।
वींद जमी'रा जे जणै ,
सांकळ ढीटा सीह।।
हूँ बळिहारी राणियां ,
भ्रूण सिखावण भाव ।
नाळो वाढण री छुरी ,
झपटै जणियो साव।।
थाळ वजतां हे सखी ,
दिठो नैणा फुळाय ।
वाजां'रै सिर चेतणो ,
भ्रूणां कवण सिखाय?।
इळा न देणी आपणी ,
रण खेतां भिङ जाय ।
पूत सिखावे पालणै ,
मरण वडाई माय।।
अमृत महोत्सव से अमृतकाल तक की यात्रा
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*अमृत महोत्सव से अमृतकाल तक की यात्रा*
लोगों को अब दंड नहीं बल्कि उनको न्याय दिलाया जाएगा। यह अलग बात है कि दंड
दिए बिना न्याय कैसे मिलेगा? सवाल खड़ा तो ...
7 माह पहले