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त्रिपुर सुंदरी त्र्यंबका

Rao GumanSingh Guman singh

अधिनायक नवलाख औ, वरदायक विख्यात।
सुखदायक दुःख दालणी,वड आवड विख्यात॥1
यशदायी वरदायिनी, अभय दायनी आइ।
अखिल जगत अनपायनी, जयदायी जगराइ॥2
शंकरनी शाकंभरी, त्रिपुरा अरजी तोय।
वंदनीय विश्वंभरी, किंकर कीजौ मोय॥3
खडग नेत्रिका खडगिनी, खडग वाहती खास।
खड खड खड हंस वा करै ,वैरी दळां विनास॥4
मात कपूतां महर कर, शिव अवधूता संग।
जगत प्रसूता जोगणी, जमदूतां भय भंग॥5

त्रिपुर सुंदरी त्र्यंबका, अंब आवडा आइ।
महर करौ ममतामयी, रखौ चरण शरणाइ॥6
कहर महर दोनूं करै , आप मती अनुसार।
इण सूं छोडर और सब, वड आवड चित धार॥7
सरस नाम संजीवनी, अवनी आवड आइ।
भाखर वाळी भूप मां, तखत तेमडा राइ॥8
सुखदा वरदा सौख्यदा, जयदा  हयदा अंब।
अभयप्रदा यशदायिनी, आवड कर अवलंब॥9
वीरा धीरा मतिमयी, गंभीरा गतिवान।
हर पीरा हर जन तणी, हर वामा शिव-मान।10
गोदायी गजदायिनी, हयदायी है अंब।
अन्नपुरण अनदायिनी, आवड रो अवलंब॥11
पृथी ऊपरां माहरी, बीसहथी वरदाइ।
रथी म्हारथी सारथी, अंबा आवड आइ॥12
पाप तणी प्रज्वालिका, अवनि पालिका आइ।
सचर अचर संचालिका, वीसहथी वरदाइ॥13
कमल नयन ,कर जिण कमल, कमल पुहप आसीन।
रहौ सदा ह्रिदय कमल, राय स्वांग मे लीन ॥14
जोगण झाझै झूलरै, संग बहन ले सात।
तखत तेमडै जो रमें,नमन करुं नितप्रात॥15
हय देनी भय हारिणी, अभय करण अविलंब।
जय देनी जगदंबिका, आवड इळ वड अंब॥16
शरणागत मागत सदा, जागत  जोगण अंब।
चरणां रत राखौ मनें, आवड वड भुजलंब॥17
जैसाणै जोगण बसे, सातूं बेनां साथ।
वा  आवड वड राखसी, नरपत रे सिर हाथ॥18
मन रॅग थळ आलोकिनी,महिमा मय महमाय।
आवड जोगण आद है, मन रॅग थळ री राय॥19
आवड मावड आप हो, करणी तनय जतन्न।
भूल बिसारै हे भवा,मारै बसजौ मन्न॥20
गळधर नरमुंडावली, कर में वळै कृपाण।
काली मात कृपालिनी, बसणी नमो मसाण॥21

नरपत आवडदान आशिया"वैतालिक"

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हिंगलाज

Rao GumanSingh Guman singh

ये छन्द जुझारदान जी देथा, मिठङिया का कहा हुआ है सा....इस छन्द के आखिरी अन्तरे की तीसरी पंक्ति इस तरह है.....
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हमरे हिंगळाज हजुर हिंगोलज, जे पद रज वंदे जुझियो।
(हे) अजोनी अंबा हिंगलाज आशापुर, आप चंडी मुझ स्हाय आयो।।

अनुपम छबी ओपणी अवनी

Rao GumanSingh Guman singh

बसंत में हर तरफ एक नई उमंग दृष्टीगोचर होती है। पेड़ पौधो में नव पल्लव विकसित होते है।नव जीवन का संचार होता है। इस समय रतिपति की मार सर्वाधिक होती है। इस बारे मे चार लाईन आप की नजर कर रहा हूं, अन्यथा न लें।

अनुपम छबी ओपणी अवनी, उमड़ी अंतस सहज उमंग।
चैत चांनणी सान चढाई, अणहद चाह ऊपनी अंग।।(१)
ऊतर अनंग डील में आयो, आळस रंभ मरोड़े अंग।
देह अलौकिक जोती दीपै, रूपाळी झीली सतरंग।।(२)
ऊभी ठिठक चांदणी आछी, रात झकौळी रूपे रंग।
ठाढो पवन निलज ठिठकारो, आद इचपळो उतन अनंग।।(३)
हिचकै,सिहरे,लाजै,हालै, धण भौळी डूबी धव ध्यांन।
बादीलै वश झूम बावळी, गाफल बिसरी गाभा ग्यान।।(४)
इन्द्रलोक कर आय ऊतरी, सुरबाला साजै सिणगार।
मदभीना मारू दिस मलफै, होय रही वालौ गळहार।।(५)
ऊठी उमस अबोली अंतस, परतख प्रगटी चैहरे पूर।
चमक लिलाड़, देह चंचळता, नैह प्रकट दमकंतै नूर।।(६)
चित्त अचंचळ चाळै चड़ियौ, वेध काळजो घाली वाट।
उरड़ डील आगे हुय अड़ियौ, खुल्यौ राज रलियावण खाट।।(७)
अधरां निवतो दियो अचांचक, आद विसरै धण आचार।
समपै सुघड़ शरीर सलूणो, लाज छोड़ सुन्दर लाचार।।(८)
प्रणय मनोरथ कीना पूरा, पिव पायौ सत प्रीत प्रमांण।
विखमी वैळ महर लिखमीवर, धण री अरजी दीधो ध्यांन।।(९)