पड़ पड़ बूंद पळंग पै, कड़ कड़ बीज कड़क्क।
सायधण सेजां एकळी, धड़ धड़ हियो धड़क्क॥
आज धरां दिस ऊनम्यो, काळी धड़ सिखरांह।
आज धरां दिस ऊनम्यो, काळी धड़ सिखरांह।
वा धण देसी ऒळमा, कर कर लांबी बांह॥
नाळा नदियां सूं मिळै, नदियां सागर जाय।
विरछां सूं बेळां, मिळै, ऐसी सही न जाय॥
आज धरा दिस ऊमग्यो, मोटी छांटां मेह।
भींजी पाग पधारस्यो, जद जाणूंळी नेह॥
सावण आयो सायबा, सब बन पांगरियांह।
आव विदेसी पांवणा, ऐ दिन दूभरियांह॥
सावण आयो सायबा, मोर हुया महमंत।
इण रित पीयर मोकळै, कठण हिया रो कन्त॥
सावण आयो सायबा, बांधो पाग सुरंग।
घर बैठा राजस करो, हरिया चरै तुरंग॥
सावण आयो सायबा, गाढा मांणां रंग।
आणां घर जांणां नहीं, ठाणां बांध तुरंग॥
सजण सिकारां जावसी, नैणां मरसी रोय।
विधणा ऐसी रैण कर, भोर कदे ना होय॥
चाळ सखी उण मंदिरै, प्रियतम रहिया जैण।
कोईक मीठौ बोळड़ो, ळायो होसी तैण॥