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मोरू भाई पांवणा

Rao GumanSingh Guman singh

आया आया रे
मोरू भाई पांवणा
कांई आगे धोरा वाळो देश

बीरो बणजारो रे
कांई आया म्‍हारा देवर जेठ
बीरो बणजारो रे
सासू रांध्‍या रे मोरू भाई बांकळा

म्‍हारी नणद बिलोवे खाटी छा
बीरो बणजारो रे
मंगरिया उंछाळू रे
मोरू भाई बांकळा
नदिया में लिमोऊं खाटी छाछ
बीरो बणजारो रे
माथा धोऊं रे

मोरू भाई मेट सूं
कांई घालूं चमेली रो तेल
बीरो बणजारो रे

चेतक की टापें गूंजी है

Rao GumanSingh Guman singh

राणा प्रताप इस भरत भूमि के, मुक्ति मंत्र का गायक है। 
राणा प्रताप आजादी का, अपराजित काल विधायक है।। 
वह अजर अमरता का गौरव, वह मानवता का विजय तूर्य। 
आदर्शों के दुर्गम पथ को, आलोकित करता हुआ सूर्य।। 
राणा प्रताप की खुद्दारी, भारत माता की पूंजी है। 
ये वो धरती है जहां कभी, चेतक की टापें गूंजी है।। 
पत्थर-पत्थर में जागा था, विक्रमी तेज बलिदानी का। 
जय एकलिंग का ज्वार जगा, जागा था खड्ग भवानी का।। 
लासानी वतन परस्ती का, वह वीर धधकता शोला था। 
हल्दीघाटी का महासमर, मजहब से बढकर बोला था।। 
राणा प्रताप की कर्मशक्ति, गंगा का पावन नीर हुई। 
राणा प्रताप की देशभक्ति, पत्थर की अमिट लकीर हुई। 
समराँगण में अरियों तक से, इस योद्धा ने छल नहीं किया। 
सम्मान बेचकर जीवन का, कोई सपना हल नहीं किया।। 
मिट्टी पर मिटने वालों ने, अब तक जिसका अनुगमन किया। 
राणा प्रताप के भाले को, हिमगिरि ने झुककर नमन किया।। 
प्रण की गरिमा का सूत्रधार, आसिन्धु धरा सत्कार हुआ। 
राणा प्रताप का भारत की, धरती पर जयजयकार हुआ।

पातळ'र पीथळ

Rao GumanSingh Guman singh

अरै घास री रोटी ही जद बन बिलावड़ो ले भाग्यो।
नान्हो सो अमरयो चीख पड़्यो राणा रो सोयो दुख जाग्यो।
हूं लड़्यो घणो हूं सह्यो घणो
मेवाड़ी मान बचावण नै
हूं पाछ नहीं राखी रण में
बैरयाँ री खात खिंडावण में,
जद याद करूं हळदी घाटी नैणां में रगत उतर आवै,
सुख दुख रो साथी चेतकड़ो सूती सी हूक जगा ज्यावै,
पण आज बिलखतो देखूं हूं
जद राज कंवर नै रोटी नै,
तो क्षात्र-धरम नै भूलूं हूं
भूलूं हिंदवाणी चोटी नै
मै'लां में छप्पन भोग जका मनवार बिनां करता कोनी,
सोनै री थाळ्यां नीलम रै बाजोट बिनां धरता कोनी,
 हाय जका करता पगल्या
फूलां री कंवळी सेजां पर,
बै आज रुळै भूखा तिसिया
हिंदवाणै सूरज रा टाबर,
आ सोच हुई दो टूक तड़क राणा री भीम बजर छाती,
आंख्यां में आंसू भर बोल्या मैं लिखस्यूं अकबर नै पाती,
पण लिखूं कियां जद देखै है आडावळ ऊंचो हियो लियां,
चितौड़ खड़्यो है मगरां में विकराळ भूत सी लियां छियां,
मैं झुकूं कियां? है आण मनैं
कुळ रा केसरिया बानां री,
मैं बुझूं कियां हूं सेस लपट
आजादी रै परवानां री,
पण फेर अमर री सुण बुसक्यां राणा रो हिवड़ो भर आयो,
मैं मानूं हूं दिल्लीस तनैं समराट् सनेशो कैवायो।
राणा रो कागद बांच हुयो अकबर रो' सपनूं सो सांचो,
पण नैण करयो बिसवास नहीं जद बांच बांच नै फिर बांच्यो,
कै आज हिंमाळो पिघळ बह्यो
कै आज हुयो सूरज सीतळ,
कै आज सेस रो सिर डोल्यो
आ सोच हुयो समराट् विकळ,
बस दूत इसारो पा भाज्यो पीथळ नै तुरत बुलावण नै,
किरणां रो पीथळ आ पूग्यो ओ सांचो भरम मिटावण नै,
बीं वीर बांकुड़ै पीथळ नै
रजपूती गौरव भारी हो,
बो क्षात्र धरम रो नेमी हो
राणा रो प्रेम पुजारी हो,
बैरयाँ रै मन रो कांटो हो बीकाणूं पूत खरारो हो,
राठौड़ रणां में रातो हो बस सागी तेज दुधारो हो,
आ बात पातस्या जाणै हो
घावां पर लूण लगावण नै,
पीथळ नै तुरत बुलायो हो
राणा री हार बंचावण नै,
म्हे बांध लियो है पीथळ सुण पिंजरै में जंगळी शेर पकड़,
ओ देख हाथ रो कागद है तूं देखां फिरसी कियां अकड़?
मर डूब चळू भर पाणी में
बस झूठा गाल बजावै हो,
पण टूट गयो बीं राणा रो
तूं भाट बण्यो बिड़दावै हो,
मैं आज पातस्या धरती रो मेवाड़ी पाग पगां में है,
अब बता मनै किण रजवट रै रजपूती खून रगां में है?
जद पीथळ कागद ले देखी
राणा री सागी सैनाणी,
नीचै स्यूं धरती खसक गई
आंख्यां में आयो भर पाणी,
पण फेर कही ततकाल संभळ आ बात सफा ही झूठी है,
राणा री पाघ सदा ऊंची राणा री आण अटूटी है।
ल्यो हुकम हुवै तो लिख पूछूं
राणा नै कागद रै खातर,
लै पूछ भलांई पीथळ तूं
आ बात सही, बोल्यो अकबर,

म्हे आज सुणी है नाहरियो
स्याळां रै सागै सोवैलो,
म्हे आज सुणी है सूरजड़ो
बादळ री ओटां खोवैलो,

म्हे आज सुणी है चातगड़ो
धरती रो पाणी पीवैलो,
म्हे आज सुणी है हाथीड़ो
कूकर री जूणां जीवैलो,

म्हे आज सुणी है थकां खसम
अब रांड हुवैली रजपूती,
म्हे आज सुणी है म्यानां में
तरवार रवैली अब सूती,
तो म्हांरो हिवड़ो कांपै है मूंछ्यां री मोड़ मरोड़ गई,
पीथळ राणा नै लिख भेज्यो, आ बात कठै तक गिणां सही?

पीथळ रा आखर पढ़तां ही
राणा री आंख्यां लाल हुई,
धिक्कार मनै हूं कायर हूं
नाहर री एक दकाल हुई,

हूं भूख मरूं हूं प्यास मरूं
मेवाड़ धरा आजाद रवै
हूं घोर उजाड़ां में भटकूं
पण मन में मां री याद रवै,
हूं रजपूतण रो जायो हूं रजपूती करज चुकाऊंला,
ओ सीस पड़ै पण पाघ नहीं दिल्ली रो मान झुकाऊंला,
पीथळ के खिमता बादळ री
जो रोकै सूर उगाळी नै,
सिंघां री हाथळ सह लेवै
बा कूख मिली कद स्याळी नै?

धरती रो पाणी पिवै इसी
चातग री चूंच बणी कोनी,
कूकर री जूणां जिवै इसी
हाथी री बात सुणी कोनी,

आं हाथां में तरवार थकां
कुण रांड कवै है रजपूती?
म्यानां रै बदळै बैरयाँ री
छात्यां में रैवैली सूती,
मेवाड़ धधकतो अंगारो आंध्यां में चमचम चमकैलो,
कड़खै री उठती तानां पर पग पग पर खांडो खड़कैलो,
राखो थे मूंछ्यां ऐंठ्योड़ी
लोही री नदी बहा द्यूंला,
हूं अथक लड़ूंला अकबर स्यूं
उजड़्यो मेवाड़ बसा द्यूंला,
जद राणा रो संदेश गयो पीथळ री छाती दूणी ही,
हिंदवाणों सूरज चमकै हो अकबर री दुनियां सूनी ही।


राजस्थानी कू-कु पत्री (Rajasthani marriage invitation)

Rao GumanSingh Guman singh

राजस्थानी हु प्रेम करणीया चावे तो, ब्याव-शादी री कूकू पत्री राजस्थानी मा छीपा सके |
इऊ आपणो अर् आपणी भासा रो मान बधसी| घणी मेनत हु इक कू-कू पत्री लाधी,
बीरो नमूणौ देऊ हु ।

< ईष्ट देब रो मंतर >
श्री ****** री घणी किरपा हु
<बींद रो नाम >
<बाप-दादा रो नाम अर् ठिकाणौ>

<बधू रो नाम >
<बधू रा बाप-दादा रो नाम अर् ठिकाणौ >

रो शुभ-ब्याव
<मास बार तारीख > न होवाणों तय हुयो हे ।
म्हे हाथ जोढर घणेमाण हु आपणे अरज करा के ब्याव रे इण
मांगलिक ठाणे माथे राज रे पधारिया ही म्हारी शोभा व्हेलासा ।

*ब्याव रा नेगचार *
बान <तारीख > <समय >
भात <> <>
सामेळो <**> <**>
<बच्योडा कार्य-करम >

ठाणो : <कालोनी , शहर >
<जान रो ढूकबा रो समय >

पधारण री बाट जोवता
<बींद रे बडा रो नाम >
दर्शाणा रा कोडारू
<बींद रे बिराओ रो नाम >
दर्शाणा न उडिकता
<बींद रे ठेठू आला रो नाम >



Rajasthani Vaata

मेहा बरसे.......

Rao GumanSingh Guman singh

रिमझिम-रिमझिम मेहा बरसे, काळा बादळ छाया रे।
पिया सूं मलबां गांव चली, म्हारे पग में पड ग्या छाला रे।
रिमझिम........

भरी ज्वानी म्हांने छोड गया क्यूं, जोबन का रखवाला रे।
सोलह बरस की रही कुंवारी, अब तो कर मुकलावां रे।
रिमझिम...........

घणी र दूर सूं आई सजनवां, थांसू मिलवा रातां रे।
हाथ पकड म्हांने निकां बिठाया, कान में कर गया बातां रे।

रिमझिम.......