रिमझिम-रिमझिम मेहा बरसे, काळा बादळ छाया रे।
पिया सूं मलबां गांव चली, म्हारे पग में पड ग्या छाला रे।
रिमझिम........
भरी ज्वानी म्हांने छोड गया क्यूं, जोबन का रखवाला रे।
सोलह बरस की रही कुंवारी, अब तो कर मुकलावां रे।
रिमझिम...........
घणी र दूर सूं आई सजनवां, थांसू मिलवा रातां रे।
हाथ पकड म्हांने निकां बिठाया, कान में कर गया बातां रे।
रिमझिम.......
अमृत महोत्सव से अमृतकाल तक की यात्रा
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*अमृत महोत्सव से अमृतकाल तक की यात्रा*
लोगों को अब दंड नहीं बल्कि उनको न्याय दिलाया जाएगा। यह अलग बात है कि दंड
दिए बिना न्याय कैसे मिलेगा? सवाल खड़ा तो ...
8 माह पहले
बोत आछी लागी आ मायड़ भाषा में विरह री अभिव्यक्ति. आंख्यां में मेव रो जीतो-जागतो चित्र उभरग्यो ! साधुवाद !!
PecockEsa me hi national brids nahi thanx sir