अग्गम बुद्धि बांणियौ, पिच्छम बुद्धि जाट।
तुरत बुद्धि तुरकड़ो, बांमण सम्पट पाट॥
बातां रीझै बांणियौ, रागां सूं रजपूत।
बांमण रीझै ळाड़वां, बाकळ रीझै भूत॥
जंगळ जाट न छोड़िये, हाटां बिचै किराड़।
रंघड़ कदैयन छोड़िये, जद तद करै बिगाड़॥
बींद मरौ बींदणी मरौ, बांमण रै टक्कौ त्यार।
ठाकर ग्या ठग रिया, रिया मुळक रा चोर॥
Father day
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-*शंभु चौधरी*-
पिता, पिता ही रहे ,
माँ न बन वो सके,
कठोर बन, दीखते रहे
चिकनी माटी की तरह।
चाँद को वो खिलौना बना
खिलाते थे हमें,
हम खेलते ही रहे,...
5 हफ़्ते पहले