उजड़ चाळे उतावळो रोही गिण न रन्न।
जावे धरती धूंसतो धन्न हो घोड़ा धन्न॥
लीला थारे पांव ने सोने की खुरताळ।
पग पूंजूं रैवंत तणां भेंटायो भरतार॥
जंग नगारां जाण रव अणि धगारां अंग।
तंग लियतां तंडियो तोनै रंग तुरंग॥
अस लीलो पिव पीथळो चंपावती ज नार।
ऐ तीनू ही एकठा सिरज्या सिरजणहार॥
कोई घोडो कोई पुरखडो कोई सतसंगी नार।
सरजण हारे सिरजिया तीनू रतन संसार॥
हळ तो धूना धोरियां पन्धज गग्धां पांव।
नरां तुरां अर वनफळां पक्कां पक्कां साव॥
जन्म अकारथ ही गयो भड़ सिर खग्ग न भग्ग।
तीखा तुरी न माणिया गोरी गळे न लग्ग॥
घर घोडो पिव अचपळो बैरी वाड़ै बास।
नितरा बाजै ढोलड़ा कद चुड़लै री आस॥
राव गुमानसिंह
रानीवाड़ा ( मारवाड़ )
Father day
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-*शंभु चौधरी*-
पिता, पिता ही रहे ,
माँ न बन वो सके,
कठोर बन, दीखते रहे
चिकनी माटी की तरह।
चाँद को वो खिलौना बना
खिलाते थे हमें,
हम खेलते ही रहे,...
5 हफ़्ते पहले