छायळ फूल विछाय, वीसम तो वरजांगदे।
गैमर गोरी राय, तिण आंमास अड़ाविया।।
इसड़ै सै अहिनांण, चहुवांणो चौथे चलण।
डखडखती दीवांण, सुजड़ी आयो सोभड़ो।।
काला काळ कलास, सरस पलासां सोभड़ो।
वीकम सीहां वास, मांहि मसीतां मांडजै।।
हीमाळाउत हीज, सुजड़ी साही सोभड़े।
ढ़ील पहां रिमहां घड़ी, खखळ-बखळ की खीज।।
सोभड़ा सूअर सीत, दूछर ध्यावै ज्यां दिसी।
भीत हुवा भड़ भड़भड़ै, रोद्रित कर गज रीत।।
चोळ वदन चहुवांण, मिलक अढ़ारे मारिया।
सुजड़ी आयो सोभड़ो, डखडखती दीवांण।।
वणवीरोत वखांण, हीमाळावत मन हुवा।
त्रिजड़ी काढ़ेवा तणी, चलण दियै चहुवांण।।
सोभड़ै कियो सुगाळ, मुंहगौ एकण ताळ में।
खेतल वाहण खडख़ड़ै, चुडख़ै चामरियाळ।।
लोद्रां चीलू आंध, भागी सोह कोई भणै।
सोभ्रमड़ा सरग सात मै, बाबा तोरण बांध।।
राजस्थान रंगीलो प्रदेस। राजस्थान नै परम्परागत रूप सूं रंगां रै प्रति अणूंतो लगाव। सगळी दुनिया रो मन मोवै राजस्थान रा ऐ रंग। बरसां पैली नेहरूजी रै बगत नागौर में पंचायत राज रो पैलड़ो टणको मेळो लाग्यो। 2 अक्टूबर, 1959 रो दिन हो। राजस्थान रा सगळा सिरैपंच भेळा हुया। नेहरूजी मंच माथै पधार्या तो निजरां साम्हीं रंग-बिरंगा साफां रो समंदर लहरावतो देख'र मगन हुयग्या। रंगां री आ छटा देख वां री आंख्यां तिरपत हुयगी। मन सतरंगी छटा में डूबग्यो। रंगां रै इण समंदर में डूबता-उतरता गदगद वाणी में बोल्या- ''राजस्थान वासियां! थै म्हारी एक बात मानज्यो, आ म्हारै अंतस री अरदास है। वगत रा बहाव में आय'र रंगां री इण अनूठी छटा नै मत छोड़ज्यो। राजस्थानी जनजीवण री आ एक अमर औळखांण है। इण धरती री आ आपरी न्यारी पिछाण है। इण वास्तै राजस्थान रो ओ रंगीलो स्वरूप कायम रैवणो चाइजै।''
राजस्थानी जनजीवण रा सांस्कृतिक पख नै उजागर करता पंडतजी रा ऐ बोल घणा महताऊ है। 'रंग' राजस्थानी लोक-संस्कृति री एक खासियत है। अठै कोई बिड़दावै, स्याबासी दिरीजै तो उणनै 'रंग देवणो' कहीजै- 'घणा रंग है थनै अर थारा माईतां नै कै थे इस्यो सुगणो काम कर्यो।' अमल लेवती-देवती वगत ई जिको 'रंग' दिरीजै उणमें सगळा सतपुरुषां नै बिड़दाइजै।
राजस्थान री धरती माथै ठौड़-ठौड़ मेळा भरीजै। आप कोई मेळै में पधार जावो- आपनै रंगां रो समंदर लहरावतो निगै आसी। लुगायां रो रंग-बिरंगो परिधान आपरो मन मोह लेसी। खासकर विदेसी सैलाणियां नै ओ दरसाव घणो ई चोखो लागै। इण रंगां री छटा नै वै आपरै कैमरां में कैद करनै जीवण लग अंवेर नै राखै।
राजस्थानी पैरवास कुड़ती-कांचळी अर लहंगो-ओढणी संसार में आपरी न्यारी मठोठ राखै। लैरियो, चूंनड़ी, धनक अर पोमचो आपरी सतरंगी छटा बिखेरै। ओ सगळो रंगां रो प्रताप।
इणीज भांत राजस्थानी होळी एक रंगीलो महोच्छब। इण मौकै मानखै रो तन अर मन दोन्यूं रंगीज जावै। उड़तोड़ी गुलाल अर छितरता रंग एक मनमोवणो वातावरण पैदा करै। रंगां रो जिको मेळ होळी रै दिनां राजस्थान में देखण नै मिलै, संसार में दूजी ठौड़ स्यात ई निजरां आवै।
मानवीय दुरबळतावां रै कारण साल भर में पैदा हुयोड़ा टंटा-झगड़ा, मन-मुटाव अर ईर्ष्या-द्वेष सगळा इण रंगीलै वातावरण में धुप नै साफ होय जावै, मन रो मैल मिट जावै।
इण रंगीलै प्रदेस री रंगीली होळी रै मंगळ मौकै आपां नै आ बात चेतै राखणी कै वगत रै बहाव में आय'र भलां ई सो कीं छूट जावै पण आपणी रंग-बिरंगी संस्कृति री अनूठी छटा बणायां राखणी।
कंवल उणियार रो लिख्योड़ो ओ दूहो बांचो सा!
चिपग्या कंचन देह रै, कपड़ा रंग में भीज।
सदा सुरंगी कामणी, खिली और, रंगीज॥
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