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छायळ फूल विछाय

Rao GumanSingh Guman singh

छायळ फूल विछाय, वीसम तो वरजांगदे।
गैमर गोरी राय, तिण आंमास अड़ाविया।।
इसड़ै सै अहिनांण, चहुवांणो चौथे चलण।
डखडखती दीवांण, सुजड़ी आयो सोभड़ो।।
काला काळ कलास, सरस पलासां सोभड़ो।
वीकम सीहां वास, मांहि मसीतां मांडजै।।
हीमाळाउत हीज, सुजड़ी साही सोभड़े।
ढ़ील पहां रिमहां घड़ी, खखळ-बखळ की खीज।।
सोभड़ा सूअर सीत, दूछर ध्यावै ज्यां दिसी।
भीत हुवा भड़ भड़भड़ै, रोद्रित कर गज रीत।।
चोळ वदन चहुवांण, मिलक अढ़ारे मारिया।
सुजड़ी आयो सोभड़ो, डखडखती दीवांण।।
वणवीरोत वखांण, हीमाळावत मन हुवा।
त्रिजड़ी काढ़ेवा तणी, चलण दियै चहुवांण।।
सोभड़ै कियो सुगाळ, मुंहगौ एकण ताळ में।
खेतल वाहण खडख़ड़ै, चुडख़ै चामरियाळ।।
लोद्रां चीलू आंध, भागी सोह कोई भणै।
सोभ्रमड़ा सरग सात मै, बाबा तोरण बांध।।