बोलो-बोलो रे भायला, अठै की नीं आणी-जाणी छै।
व्है छै कीं उठै, जठै खीरा भळ-भळता व्है।
भर काळजे बारूद, घूमतो हरेक जोध व्है।
बात साटै सिर देवण नैं तातो कुंचो-कुंचो व्है।
जठै अन्याव रै सांमी लड़-भिड़णो ही धर्म व्है।
इसड़ै जोधां रै सांमी लुळ्यो, जमानो छै।
पण तूं बोलो-बोलो रे भायला, अठै की नीं आणी-जाणी छै।
विनोद सारस्वत
अमृत महोत्सव से अमृतकाल तक की यात्रा
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*अमृत महोत्सव से अमृतकाल तक की यात्रा*
लोगों को अब दंड नहीं बल्कि उनको न्याय दिलाया जाएगा। यह अलग बात है कि दंड
दिए बिना न्याय कैसे मिलेगा? सवाल खड़ा तो ...
8 माह पहले
बढ़िया सा .जबर निजरियो है .