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ढूंढ तो करावो थांरै मौबी बेटा री--प्रो. जहूरखां मेहर

Rao GumanSingh Guman singh

बीजी जागां तो सोळा संस्कार पण राजस्थान में होळी सूं जुड़ियो थको सतरवों संस्कार भी मौजूद। ढूंढ संस्कार। ढूंढ होळी नै घणै ई लाडां-कोडां लडाईजण री साख भरै। किणी टाबर रै जलम्यां पछै पैली होळी आवै जद ढूंढ करीजै। इण वेळा टाबर रै झांझरिया घड़ावै। टाबर री मां रै वेस सिड़ावै। ढूंढ करण सारू न्यात-बास रा लोग फागण गावता टाबर रै घरै पूगै। टाबर रो काको क गवाड़ रो कोई मोटियार बारणै बिचाळै बाजोट ढाळै। बाजोट रा दो पागा फिळै रै मांय अर दो बारै राखै। उण माथै खुद बैठै। टाबर नै बो आपरै खोळै में सुवावै। आवण वाळा गैरियां मांय सूं दो जणा आगै आवै। टाबर रै ऊपर आडी लाठी ताण देवै। बाकी रा गैरिया आप-आप री लकड़ियां सूं बीं लाठी पर वार करै। तड़ातड़-तड़ातड़ बाजती जावै। सगळा गावण लागै-
चंग म्हारो गैरो बाजै
खाल बाजै घेटा री
ढूंढ तो करावो थांरै मौबी बेटा री
म्हांनै खाजा दो क हां रे खाजा दो।
ताळ तड़ातड़-भड़ाभड़ करियां पछै गैरियां री अगवाई करतो व्है जको टाबर रो लाड करै। उणनै हजारी उमर री आसीस देवै। इण पछै टाबर रै घर रो बडेरो गैरियां नै आपरी सरधा मुजब गुळ, खाजा, टक्का अर मिठाई देवै। कठैई बामण एकलो घर में जाय अर सगळी रीत सूं एकलो ई निवड़लै। बीजा गैरिया फिळै रै बारै ई ऊभा रैवै। ओ ढूंढ संस्कार। ढूंढ सूं जुड़ियोड़ो एक औखांणो ई चावो। एक होळी रा ढूंढियोड़ा। कोई साईनो अणूंती डींगां हांकै अर हेकड़ी पादै जद कहीजै क भाई क्यूं घसकां धरै, हां तो आपां एक ई होळी रा ढूंढियोड़ा।
आज रो औखांणो
फरड़ियो अर गवूं करड़ियो।

(फागुन का रुख बदला और गेहूं पका।)

मौसम आने पर प्रत्येक वनस्पति फलती है, पकती है। फागुन में गेहूं ही या पुरुषों की उत्तेजना भी पकने लगती है।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी,

परलीका,वाया-गोगामे़डी, जिलो- हनुमानगढ़ -335504.कानांबाती-9602412124, 9829176391
कोरियर री डाक इण ठिकाणै भेजो सा!सत्यनारायण सोनी, द्वारा- बरवाळी ज्वेलर्स, जाजू मंदिर, नोहर-335523


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जैता चीबा री ख्यात

Rao GumanSingh Guman singh


सोमाहर तिळक सींचतो साबळ,
करतो खग दांती कहर।
रिण रोहियो घणो राठोड़ै,
चीबोळ एकलवा वर ।।१।।
भाजै छांळ खरडक़ै भाला,
पड़ै न पिंड देतो पसर।
एकल जैत सलख आहेडी,
सकै न पाड़ै भड़ सिहर।।२।।
ऊपाडिय़ै लूट आधंतर,
जण-जण पूगो लुवो- जुवो।
खींवर हा कलियो खीमावत,
होकर जाड़ विहाड़ हुवो।।३।।

(देवड़ा राजपूतों की चीबा शाखा के जैता के संबंध का यह डींगळ काव्य एक प्रसिद्ध छंद है। भावार्थः- वाराह की भांति सोमा देवडा के वंश में तिलक रुप जैता चीबा को कई राठौडौ ने घेर लिया है। जैता अपने खड़ग से कहर मचाता हुआ व भाले से रक्त सिंचता हुआ युद्घ कर रहा है। जैता की युद कलाऒ पर कवि ने उत्तम काव्य की रचना की है्।) दुरसा आढ़ा रचित्

सेवाड़ा- पातालेश्वर प्रताप

Rao GumanSingh Guman singh

 ऊंचों देवल अजब, झिलमिल दिपे जगत में।

पाहण आरस पाण, विश्वकर्मा री वगत में॥
देवल चिणायों देवता, पातालेश्वर प्रताप।
पत्थर-पत्थर प्रगटीयों, अनंत देवता आप॥
चौसठ जोगणी चहुं दिश, रूद्र सदा रखवाल।
विर बावन चौकी भरे, विनाश्यों किस विधकाल॥
काल तने प्रवाह ने, रोक सके नही कोय।
भव्यता भूमि पड़ी, देख समझ पशताय॥
पहाण-पहाण प्रतिमा, खण्ड़ीत पड़ी अब मौन।
वैभवता बिलख रही, कहो सम्भाले कौन॥
 सेवाड़ा में सदाशिव, पातालेश्वर भगवन्त।
देवल खंडि़त देखता, हीवड़ो रूदन करन्त॥
कुण्डलीयां
शिव पातालेश्वर शंभू, भोले शंकर भूप।
असुर की अरदास पर, साध मौन भयो चुप॥
साध मौन भयो चुप, देवगति जावे न जाणी।
ऊंचों शिखर आभ, भव्यता भूमि आणी॥
प्रतिमा 'मंछाराम पाषाण री, खण्डि़त चुन-चुन किव।
अकूत नुकसान सहे आप, शंभु पातालेश्वर शिव॥
(कवि मंछाराम परिहार रानीवाड़ा)
9414565791

भीत हुवा भड़ भड़भड़ै, रोद्रित कर गज रीत

Rao GumanSingh Guman singh


छायळ फूल विछाय, वीसम तो वरजांगदे।

गैमर गोरी राय, तिण आंमास अड़ाविया।।
इसड़ै सै अहिनांण, चहुवांणो चौथे चलण।
डखडखती दीवांण, सुजड़ी आयो सोभड़ो।।
काला काळ कलास, सरस पलासां सोभड़ो।
वीकम सीहां वास, मांहि मसीतां मांडजै।।
हीमाळाउत हीज, सुजड़ी साही सोभड़े।
ढ़ील पहां रिमहां घड़ी, खखळ-बखळ की खीज।।
सोभड़ा सूअर सीत, दूछर ध्यावै ज्यां दिसी।
भीत हुवा भड़ भड़भड़ै, रोद्रित कर गज रीत।।
चोळ वदन चहुवांण, मिलक अढ़ारे मारिया।
सुजड़ी आयो सोभड़ो, डखडखती दीवांण।।
वणवीरोत वखांण, हीमाळावत मन हुवा।
त्रिजड़ी काढ़ेवा तणी, चलण दियै चहुवांण।।
सोभड़ै कियो सुगाळ, मुंहगौ एकण ताळ में।
खेतल वाहण खडख़ड़ै, चुडख़ै चामरियाळ।।
लोद्रां चीलू आंध, भागी सोह कोई भणै।
सोभ्रमड़ा सरग सात मै, बाबा तोरण बांध।।
(सांचोर मा संवत् १६९५ वात ह, मुगल पातसाह ने सांचोर में परेमखां को आधी जागीर इंणायत करीयोड़ी थी । उण टेम आधी जागीर सोभा चहुवांण रे कनै ही। गढ़ मा गाय ने मारण रे कारण दोयो मा जुद हुयौ। उणमां सोभे चहुवांणे परेमाखां ने मार भगायो। गाय रो आ परेम कविए ड़िंगळ भासा मा लिखर जतायो है।)

रावळ बापा री ख्यात:-

Rao GumanSingh Guman singh


आदि मूळ उतपति, ब्रहम पिण खत्री जांणां,

आणंदपुर सिणगार, नयर आहोर वखांणां।

दळ समूह राव रांण, मिळै मंडळीक महाभड़,

मिळै सबै भूपती, गरू गहलोत नरेसर।

एकल्ल मल्ल धू ज्युॅ अचळ, कहै राज बापै कीयौ,

एकलिंगदेव आहूठमां, राजपाठ इण पर दीयो।।१।।

छपन कोड सोवन्न, रिखी हारीत समप्पै,

सैंदेही श्रग गयौ, राय-रायां उथप्पै।

अंतरीख ले अमरत, सिद पिण आघो कीन्हो,

भयो हाथ दस देह, सस्त्र वजर मई सं दीन्हो।

आवध्ध अंग लगै नहीं, आदि देव इम वर दीयौ,

गुहादित तणै भैरव भणै, मेदपाट इण पर लीयौ।।२।।

हर हारीत पसाय, सात-वीसां वर तरणी,

मंगळवार अनेंक, चैत वद पंचम परणी।

चित्रकोट कैलास, आप वस परगह कीधौ,

मोरी दळ मारेव, राज रायां गुर लीधौ।

बारह लख बोहतर सहस, हय गय दळ पैदळ वणं,

नित मूडो मीठो ऊपडै, भंूजाई बापा तणै।।३।।

खडग़ धार पाहार, नित भॅयसा दुय भंजै,

करै आहार छ वार, ताम भोजन मन रंजै।

पट्टोळो पैतीस हाथ, पेहरण पहरीजै,

पिछोडो सोळे हाथ, तेण तन नहीं ढक़ीजै।

पय तोडर तोल पचास मण, खडग़ बत्तीसा मण तणौ,

सुण बापा सेन सम्मं चलै, जिण भय कांपै गज्जणौ।।४।।

जालन्धर कसमीर, सिंध सोरठ खुंरसांणी,

ओडिसा कनवज्ज, नगरथट्टा मूलतांणी।

कुंकण नै केदार, दीप सिंघळ मालेरी,

द्रावड सावड़ देस, आंण तिलॅंगांणह फेरी।

उतर दिखण पूरब पछिम, कोई पांण न दख्खवै,

सांवत एक एकाणवै, बापा समो न चक्कवै।।५।।

(मूथा नैणसी री ख्यात रै पांने सूं लियो)