आदि मूळ उतपति, ब्रहम पिण खत्री जांणां,
आणंदपुर सिणगार, नयर आहोर वखांणां।
दळ समूह राव रांण, मिळै मंडळीक महाभड़,
मिळै सबै भूपती, गरू गहलोत नरेसर।
एकल्ल मल्ल धू ज्युॅ अचळ, कहै राज बापै कीयौ,
एकलिंगदेव आहूठमां, राजपाठ इण पर दीयो।।१।।
छपन कोड सोवन्न, रिखी हारीत समप्पै,
सैंदेही श्रग गयौ, राय-रायां उथप्पै।
अंतरीख ले अमरत, सिद पिण आघो कीन्हो,
भयो हाथ दस देह, सस्त्र वजर मई सं दीन्हो।
आवध्ध अंग लगै नहीं, आदि देव इम वर दीयौ,
गुहादित तणै भैरव भणै, मेदपाट इण पर लीयौ।।२।।
हर हारीत पसाय, सात-वीसां वर तरणी,
मंगळवार अनेंक, चैत वद पंचम परणी।
चित्रकोट कैलास, आप वस परगह कीधौ,
मोरी दळ मारेव, राज रायां गुर लीधौ।
बारह लख बोहतर सहस, हय गय दळ पैदळ वणं,
नित मूडो मीठो ऊपडै, भंूजाई बापा तणै।।३।।
खडग़ धार पाहार, नित भॅयसा दुय भंजै,
करै आहार छ वार, ताम भोजन मन रंजै।
पट्टोळो पैतीस हाथ, पेहरण पहरीजै,
पिछोडो सोळे हाथ, तेण तन नहीं ढक़ीजै।
पय तोडर तोल पचास मण, खडग़ बत्तीसा मण तणौ,
सुण बापा सेन सम्मं चलै, जिण भय कांपै गज्जणौ।।४।।
जालन्धर कसमीर, सिंध सोरठ खुंरसांणी,
ओडिसा कनवज्ज, नगरथट्टा मूलतांणी।
कुंकण नै केदार, दीप सिंघळ मालेरी,
द्रावड सावड़ देस, आंण तिलॅंगांणह फेरी।
उतर दिखण पूरब पछिम, कोई पांण न दख्खवै,
सांवत एक एकाणवै, बापा समो न चक्कवै।।५।।
(मूथा नैणसी री ख्यात रै पांने सूं लियो)
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