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मारवाड़ का साफा यानी ‘डॉक्टरी पगड़ी’

Rao GumanSingh Guman singh

जोधपुर. प्राचीन काल से ही पाग और साफों को आन, बान और शान का प्रतीक माना जाता है। यही नहीं स्वास्थ्य के लिहाज से भी पाग की उपयोगिता साबित हो गई है। एक शोध में वैज्ञानिकों ने मारवाड़ी पाग को स्वास्थ्य के लिहाज से उपयुक्त पाया है।

उदयपुर के कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (सीटीएई) के वैज्ञानिक अब मारवाड़ी पाग की तर्ज पर ऐसी पगड़ी डिजाइन करने में जुटे हैं, जो तेज गर्मी में खेतों में काम कर रहे किसान और मजदूरों का बचाव करेगी। सीटीएई के वैज्ञानिकों ने इस शोध में विभिन्न क्षेत्रों की पगड़ियों और साफों के विवरण, उनकी कार्यक्षमता, पगड़ी या साफा पहनने से काम पर असर, काम के प्रकार, क्षेत्रवार तापमान आदि का भी सर्वे किया।

सीटीएई के डॉ. अशोक मेहता के नेतृत्व में शुभकरणसिंह द्वारा किए जा रहे शोध में प्रारंभिक अध्ययन के बाद पाया गया कि मारवाड़ी साफे (बंटदार गुंथे हुए) किसानों के लिए सर्वाधिक उपयुक्त हैं। इनमें भी सफेद पगड़ी स्वास्थ्य की दृष्टि से सबसे बेहतर है। ये खासकर बाड़मेर, नागौर व जैसलमेर जिले के ग्रामीण इलाकों में बांधे जाते हैं।

बनाई जाएगी नई पगड़ी: डॉ. मेहता ने बताया कि फील्ड वर्क के बाद कॉलेज में मारवाड़ी पाग की तर्ज पर एक विशेष प्रकार की पगड़ी डिजाइन की जाएगी, जो किसानों की कार्य क्षमता बढ़ाएगी। साल भर में यह पगड़ी किसानों को मुहैया करा दी जाएगी।

खिड़किया पाग: जोधपुर की प्रचलित खिड़किया पाग बांधने के लिए पीतल व तांबे के तारों का एक सांचा बनाया जाता है। रुई की तहें और सिलाई के जरिये उसको आकार दिया जाता है। कपड़ा चाहे बंधेज या खीनखाब हो, उस पर लपेटने के बाद मोतियों से उसकी सजावट की जाती है। खिड़किया पाग के सामने का सिरा ऊंचा होता हैं और पीछे से नीचा।