हाथ में गेडी अर खांधै पटू़डो* लियां अेक जाट पाखती ई ऊभो हो। वो जोर सूं बोल्यो- हूं रे हूं।
पछै वा जाटणी वळै रोवती-रोवती बोली- म्हारै तीन सौ गायां री छांग अर पांच सौ लरड़ियां रो ऐवड़ है। उणरो धणी-धोरी कुण व्हैला?
वो सागी ई जाट वळै कह्यो- हूं रे हूं।
वा जाटणी वळै रोवती-रोवती बोली- म्हारै च्यार पचावा*, तीन ढूंगरियां* अर पांच बाड़ा है, वां री सार-संभाळ कुण करैला?
वो जाट तो किणी दूजा नै बोलण रो मौको ई नीं दियो। तुरंत बोल्यो- हूं रे हूं।
जाटणी तो रोवती नीं ढबी। डुस्कियां भरती-भरती बोली- म्हारो धणी बीस हजार रो माथै लेहणो छोड़नै गियो, उणनै कुण चुकावैला?
अबकी वो जाट कीं नीं बोल्यो। पण थोड़ी ताळ तांईं किणी दूजा नै इणरो हूंकारो नीं भरतां देख्यो तो जोस खाय कह्यो- भला मिनखां, इत्ती बातां रा म्हैं अेकलो हूंकारा भरिया। थैं इत्ता जणा ऊभा हो, इण अेक बात रो तो कोई हूंकारो भरो। यूं पाछा-पाछा कांईं सिरको!
अमृत महोत्सव से अमृतकाल तक की यात्रा
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*अमृत महोत्सव से अमृतकाल तक की यात्रा*
लोगों को अब दंड नहीं बल्कि उनको न्याय दिलाया जाएगा। यह अलग बात है कि दंड
दिए बिना न्याय कैसे मिलेगा? सवाल खड़ा तो ...
8 माह पहले
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