ऊंट मरुखेतर रो अगनबोट कैईजै अर इण सारू राजस्थानी साहित, इतिहास अर बातां में इतरा बखाण लाधै कै इचरज सूं बाको फाड़णो पड़ै. दूजी भासावां में तो 'ऊंट' अर 'कैमल' सूं आगै काळी-पीळी भींत. मादा ऊंट सारू 'ऊंटनी' अर 'सी कैमल' या 'कैमलैस' सूं धाको धिकाणो पड़ै. पण आपणी भासा में इण जीव रा कितरा-कितरा नांव! कीं तो म्हे अंवेरनै लाया हां. बांच्यां ई ठा पड़ै -
जाखोड़ो, जकसेस, रातळो, रवण, जमाद, जमीकरवत, वैत, मईयो, मरुद्विप, बारगीर, मय, बेहटो, मदधर, भूरो, विडंगक, माकड़ाझाड़, भूमिगम, पींडाढाळ, धैंधीगर, अणियाळ, रवणक, फीणनांखतो, करसलो, अलहैरी, डाचाळ, पटाल, मयंद, पाकेट, कंठाळक, ओठारू, पांगळ, कछो, आखरातंबर, टोरड़ो, कंटकअसण, करसो, घघ, संडो, करहो, कुळनारू, सरढो, सरडो, हड़बचियो, हड़बचाळो, सरसैयो, गघराव, करेलड़ो, करह, सरभ, करसलियो, गय, जूंग, नेहटू, समाज, कुळनास, गिडंग, तोड़, दुरंतक, भुणकमलो, वरहास, दरक, वासंत, लंबोस्ट, सिंधु, ओठो, विडंग, कंठाळ, करहलो, टोड, भूणमत्थो, सढ़ढो, दासेरक, सळ, सांढियो, सुतर, लोहतड़ो, फफिंडाळो, हाथीमोलो, सुपंथ, जोडरो, नसलंबड़, मोलघण, भोळि, दुरग, करभ, करवळो, भूतहन, ढागो, गडंक, करहास, दोयककुत, मरुप्रिय, महाअंग, सिसुनामी, क्रमेलक, उस्ट्र, प्रचंड, वक्रग्रीव, महाग्रीव, जंगळतणोजत्ती, पट्टाझर, सींधड़ो, गिड़कंध, गूंघलो, कमाल, भड्डो, महागात, नेसारू, सुतराकस अर हटाळ.
ऊंट रो साव नान्हो बचियो कुरियो कुहावै. कुरियो तर-तर मोटो व्है ज्यूं उणरा नांव ई बदळता जावै. पूरो ऊंट बणण सूं पैलां कुरियो, भरियो, भरगत, करह, कलभ, करियो अर टोडियो या टोरड़ो अर तोरड़ो कहीजै.
राजस्थानी संस्कृति में ऊंट सागे़डो रळियोड़ो, अेकमेक हुयोड़ो. लोक-साहित इणरी साख भरै. ऊंट सूं जुड़ियोडा अलेखूं ओखाणा अर आडियां मिनखां मूंडै याद. लोकगीतां रो लेखो ई कमती नीं.
जगत री बीजी कोई जोरावर सूं जोरावर भासा में ई अेक चीज रा इत्ता नांव नीं लाधै. कोई तूमार लै तो ठा पड़ै कै कठै तो राजस्थानी रै सबदां रो हिमाळै अर कठै बीजी फदाक में डाकीजण जोग टेकरियां. कठै भोज रो पोथीखानो, कठै गंगू री घाणी!
जांन में कुण-कुण आया? कै बीन अर बीन रो भाई, खोड़ियो ऊंट अर कांणियो नाई।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका,
वाया-गोगामे़डी, जिलो- हनुमानगढ़ -335504.
सत्यनारायण सोनी, द्वारा- बरवाळी ज्वेलर्स, जाजू मंदिर, नोहर 335523.
email- aapnibhasha@gmail.com
blog- aapnibhasha.blogspot.com
Father day
-
-*शंभु चौधरी*-
पिता, पिता ही रहे ,
माँ न बन वो सके,
कठोर बन, दीखते रहे
चिकनी माटी की तरह।
चाँद को वो खिलौना बना
खिलाते थे हमें,
हम खेलते ही रहे,...
5 हफ़्ते पहले
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें