कीडी नगरो सहर है मोटर बंगला कार ।
जठै जमारो बेच कै मिनख करै रूजगार ॥
अजब रीत परदेस री एक सांच सौ झूँठ ।
हँस बतळावै सामनै घात करै पर पूठ ॥
खेत खळा अर रूंखडा बै धोरा बै ऊंट ।
बाँ खातर परदेस के तज देवूँ बैकूँट ॥
देह मशीना मै गळै आयो मौसम जेठ ।
बिरथा खोयी जूण म्हे परदेसा मँ बैठ ।।
ऊमस महीना जेठ रो बो पीपळ रो गांव ।
संगळियाँ संग खेलता चोपङ ठंडी छाव ॥
गाता गीत न गा सक्या करता करया न कार ।
जीतै जी ना जी सक्या मरिया पडसी पार ॥
ठीडै ठाकर ठेस रा ठीडै ही ठुकरेस ।
बिना ठौड अर ठाईचै क्यूँ भटकै परदेस ॥
समरथ जाणु लेखणी सांचो जाणू रोग ।
गावैला जद चाव सूँ दरद दिसावर लोग ।।
सूना सा दिन रात है सूनी सूनी सांझ ।
बंस बध्यो है पीर रो खुशिया रै गी बांझ ।।
हिरण्याँ हर ले नीन्द नै किरत्याँ कैदे बात ।
तारा गिणता काटदे नित परदेसी रात ॥
रिमझिम बरसै भादवो झरणा री झणकार ।
परदेसी रै आन्गणै रूत लागी बेकार ॥
साखीणो संसार है कद तक राखा साख ।
साख राखताँ गांव मँ मिटगी खुद री साख ॥
तन री मौज मजूर हा मन री मौज फकीर ।
दोनूँ बाताँ रो कठै परदेसाँ मँ सीर ॥
ऊंचा ऊंचा माळिया ऊची ऊंची छांव ।
महला सूँ चोखो सदा झूंपडियाँ रो गांव ॥
बाट जोंवता जोंवता मन हुग्यो बैसाख ।
छोड प्रीत री आस नै प्रीत रमाली राख ॥
जद सूँ छोड्यो गांव नै हिवडै पडी कुबाण ।
गीत प्रीत री याद मँ आवै नित मौकाण ॥
प्रीत आपरी सायनी होगी म्हारै गैल ।
भारी पडज्या गांव नै जिया कंगलौ छैल॥
प्रीत करी नादान सूँ हुयो घणो नुकसान ।
आप डूबतो पांडियो ले डूब्यो जुजमान ॥
हेत कामयो देश मँ परदेसा मँ दाम ।
किण री पूजा मै करू गूगो बडो क राम ॥
बाबो मरगो काळ मै करग्यो बारा बाट ।
घर मँ टाबर मौकळा कै करजै रो ठाठ ॥
मारै आह गरीब री करदे मटिया मेट ।
पण कंजूसी सेठ रो रति ना सूकै पेट ॥
किण नै देवाँ ओळमाँ किण नै कैँवा बात ।
टाबरियाँ रै पेट पर राम मार दी लात ॥
भगीरथ सिंह भाग्य
Father day
-
-*शंभु चौधरी*-
पिता, पिता ही रहे ,
माँ न बन वो सके,
कठोर बन, दीखते रहे
चिकनी माटी की तरह।
चाँद को वो खिलौना बना
खिलाते थे हमें,
हम खेलते ही रहे,...
5 हफ़्ते पहले
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