जिण रुति बग पावस लियइ,धरणि न मेल्हइं पाइ।
तिण रुति साहिब वल्लहा, कोइ दिसावर जाइ॥
प्रीतम कामणगारियॉं, थळ थळ बादळियाँह।
धण बरसंतइ सूकियाँ, लू सूँ पाँगुरियाँह॥
कप्पड़, जीण, कमाण गुण भीजइ सब हथियार।
इण रूति साहिब ना चलइ, चालइ तिके गिमार॥
बाजरियाँ हरियाळियाँ, बिचि बिचि बेलाँ फूल।
जउ भरि बूठउ भाद्रवउ, मारु देस अमूल॥
धर नीली, धण पुंडरी, घरि गहगहइ गमार।
मारु देस सुहामणउ, साँवणि साँझी वार॥