पीथल री वीरवाणी
पातळ जो पतसाह, बोलै मुख हुंतां बयण।
मिहर पछम दिसमाहं, ऊगे कासप राव उत॥
पटकूं मूंछां पाण, के पटकूं निजतन करद।
दीजे लिख दीवाण, इणदो महली बात इक॥
परताप रौ उतर
तुरक कहासी मुख पतौ, इण तन सूं इकलिंग।
ऊगे जांही उगसी, प्राची बीच पतंग॥
खुशी हूंत पीथल कमध, पटको मूंछं पाण।
पछटण है जे तौ पतौ, कलमां सिर के बाण॥
Father day
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-*शंभु चौधरी*-
पिता, पिता ही रहे ,
माँ न बन वो सके,
कठोर बन, दीखते रहे
चिकनी माटी की तरह।
चाँद को वो खिलौना बना
खिलाते थे हमें,
हम खेलते ही रहे,...
5 हफ़्ते पहले