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Rao GumanSingh Guman singh

पीथल री वीरवाणी
पातळ जो पतसाह, बोलै मुख हुंतां बयण।
मिहर पछम दिसमाहं, ऊगे कासप राव उत॥
पटकूं मूंछां पाण, के पटकूं निजतन करद।
दीजे लिख दीवाण, इणदो महली बात इक॥
परताप रौ उतर
तुरक कहासी मुख पतौ, इण तन सूं इकलिंग।
ऊगे जांही उगसी, प्राची बीच पतंग॥
खुशी हूंत पीथल कमध, पटको मूंछं पाण।
पछटण है जे तौ पतौ, कलमां सिर के बाण॥

2 comments:

  1. Gyan Darpan ने कहा…

    पीथल और पाथल पर कन्हेया लाल सेठिया की कविता सुनने के लिए यहाँ क्लिक करेंhttp://rajputworkd.blogspot.com

  2. हरिराम ने कहा…

    थारो काव्य घणो आनन्द देव।