'धरती धौरां री...
-शम्भु चौधरी-
कोलकात्ता 15.5.2008 : आज शाम पाँच बजे श्री कन्हैयालाल सेठिया जी के
कोलकात्ता स्थित उनके निवास स्थल 6, आशुतोष मखर्जी रोड जाना था । ‘समाज
विकास’ का अगला अंक श्री सेठिया जी पर देने का मन बना लिया था, सारी
तैयारी चल रही थी, मैं ठीक समय पर उनके निवास स्थल पहुँच गया। उनके
पुत्र श्री जयप्रकाश सेठिया जी से मुलाकत हुई। थोड़ी देर उनसे बातचीत
होने के पश्चात वे, मुझे श्री सेठिया जी के विश्रामकक्ष में ले गये ।
विस्तर पर लेटे श्री सेठिया जी का शरीर काफी कमजोर हो चुका है, उम्र के
साथ-साथ शरीर थक सा गया है, परन्तु बात करने से लगा कि श्री सेठिया जी
में कोई थकान नहीं । उनके जेष्ठ पुत्र भाई जयप्रकाश जी बीच में बोलते
हैं, - ‘‘ थे थक जाओसा....... कमती बोलो ! ’’ परन्तु श्री सेठिया जी
कहाँ थकने वाले, कहीं कोई थकान उनको नहीं महसूस हो रही थी, बिल्कुल
स्वस्थ दिख रहे थे । बहुत सी पुरानी बातें याद करने लगे। स्कूल-कॉलेज,
आजादी की लड़ाई, अपनी पुस्तक ‘‘अग्निवीणा’’ पर किस प्रकार का देशद्रोह का
मुकदमा चला । जयप्रकाश जी को बोले कि- वा किताब दिखा जो सरकार निलाम करी
थी, मैंने तत्काल देवज्योति (फोटोग्रफर) से कहा कि उसकी फोटो ले लेवे ।
जयप्रकाश जी ने ‘‘अग्निवीणा’’ की वह मूल प्रति दिखाई जिस पर मुकदमा चला
था । किताब के बहुत से हिस्से पर सरकारी दाग लगे हुऐ थे, जो इस बात का आज
भी गवाह बन कर सामने खड़ा था । सेठिया जी सोते-सोते बताते हैं - ‘‘ हाँ!
या वाई किताब है जीं पे मुकदमो चालो थो....देश आजाद होने...रे बाद सरकार
वो मुकदमो वापस ले लियो ।’’ थोड़ा रुक कर फिर बताने लगे कि आपने करांची
में भी जन अन्दोलन में भाग लिया था । स्वतंत्रा संग्राम में आपने जिस
सक्रियता के साथ भाग लिया, उसकी सारी बातें बताने लगे, कहने लगे ‘‘भारत
छोड़ो आन्दोलन’’ के समय आपने करांची में स्व.जयरामदास दौलतराम व
डॉ.चैइथराम गिडवानी जो कि सिंध में कांग्रेस बड़े नेताओं में जाने जाते
थे, उनके साथ करांची के खलीकुज्जमा हाल में हुई जनसभा में भाग लिया था,
उस दिन सबने मिलकर स्व.जयरामदास दौलतराम व डॉ.चैइथराम गिडवानी के
नेतृत्व में एक जुलूस निकाला था, जिसे वहाँ की गोरी सरकार ने कुचलने के
लिये लाठियां बरसायी, घोड़े छोड़ दिये, हमलोगों को कोई चोट तो नहीं आयी,
पर अंग्रेजी सरकार के व्यवहार से मन में गोरी सरकार के प्रति नफरत पैदा
हो गई । आपका कवि हृदय काफी विचलित हो उठा, इससे पूर्व आप ‘‘अग्निवीणा’’
लिख चुके थे। बात का क्रम टूट गया, कारण इसी बीच शहर के जाने-माने
समाजसेवी श्री सरदारमल कांकरियाजी आ गये। उनके आने से मानो श्री सेठिया
जी के चेहरे पे रौनक दमकने लगी हो । वे आपस में बातें करने लगे। कोई
शिथिलता नहीं, कोई विश्राम नहीं, बस मन की बात करते थकते ही नहीं, इस
बीच जयप्रकाश जी से परिवार के बारे में बहुत सारी बातें जानने को मिली।
श्री जयप्रकश जी, श्री सेठिया जी के बड़े पुत्र हैं, छोटे पुत्र का नाम
श्री विनय प्रकाश सेठिया है और एक सुपुत्री सम्पतदेवी दूगड़ है । महाकवि
श्री सेठिया जी का विवाह लाडणू के चोरडि़या परिवार में श्रीमती धापूदेवी
सेठिया के साथ सन् 1939 में हुआ । आपके परिवार में दादाश्री स्वनामधन्य
स्व.रूपचन्द सेठिया का तेरापंथी ओसवाल समाज में उनका बहुत ही महत्वपूर्ण
स्थान था। इनको श्रावक श्रेष्ठी के नाम से संबोधित किया जाता है। इनके
सबसे छोटे सुपुत्र स्व.छगनमलजी सेठिया अपने स्व. पिताश्री की भांति
अत्यन्त सरल-चरित्रनिष्ठ-धर्मानुरागी, दार्शनिक व्यक्तित्व के धनी थे ।
समाज सेवा में अग्रणी, आयुर्वेद का उनको विशेष ज्ञान था ।
श्री सेठिया जी का परिवार 100 वर्षों से ज्यादा समय से बंगाल में है ।
पहले इनका परिवार 199/1 हरीसन रोड में रहा करता था । सन् 1973 से
सेठियाजी का परिवार भवानीपुर में 6, आशुतोष मुखर्जी रोड, कोलकात्ता-20
के प्रथम तल्ले में निवास कर रहा है। इनके पुत्र ( श्री सेठियाजी से
पूछकर ) बताते हैं कि आप 11 वर्ष की आयु में सुजानगढ़ कस्बे से कलकत्ता
में शिक्षा ग्रहन हेतु आ गये थे। उन्होंने जैन स्वेताम्बर तेरापंथी
स्कूल एवं माहेश्वरी विद्यालय में प्रारम्भिक शिक्षा ली, बाद में रिपन
कॉलेज एवं विद्यासागर कॉलेज में शिक्षा ली । 1942 में द्वितीय विश्वयुद्ध
के समय शिक्षा अधूरी छोड़कर पुनः राजस्थान चले गये, वहाँ से आप करांची
चले गये । इस बीच हमलोग उनके साहित्य का अवलोकन करने में लग गये। सेठिया
जी और सदारमल जी आपस में मन की बातें करने में मसगूल थे, मानो दो दोस्त
कई वर्षों बाद मिले हों । दोनों अपने मन की बात एक दूसरे से आदान-प्रदान
करने में इतने व्यस्त हो गये कि, हमने उनके इस स्नेह को कैमरे में कैद
करना ही उचित समझा। जयप्रकाश जी ने तब तक उनकी बहुत सारी सामग्री मेरे
सामने रख दी, मैंने उन्हें कहा कि ये सब सामग्री तो राजस्थान की अमानत
है, हमें चाहिये कि श्री सेठिया जी का एक संग्राहलय बनाकर इसे सुरक्षित
कर दिया जाए, बोलने लगे - ‘म्हाणे कांइ आपत्ती’ मेरा समाज के सभी वर्गों
से, सरकार से निवेदन है कि श्री सेठियाजी की समस्त सामग्री का एक
संग्राहल बना दिया जाना चाहिये, ताकि हमारी आनेवाली पीढ़ी उसे देख सके,
कि कौन था वह शख्स जिसने करोड़ों दिलों की धड़कनों में अपना राज जमा लिया
था।
किसने ‘धरती धौरां री...’ एवं अमर लोक गीत ‘पातल और पीथल’ की रचना की
थी!
कुछ देर बाद श्री सेठिया जी को बिस्तर से उठाकर बैठाया गया, तो उनका
ध्यान मेरी तरफ मुखातिफ हुआ, मैंने उनको पुनः अपना परिचय बताने का प्रयास
किया, कि शायद उनको याद आ जाय, याद दिलाने के लिये कहा - शम्भु! -
मारवाड़ी देस का परदेस वालो - शम्भु....! बोलने लगे... ना... अब तने लोग
मेरे नाम से जानगा- बोले... असम की पत्रिका म वो लेख तूं लिखो थो के?,
मेरे बारे में...ओ वो शम्भु है....तूं.. अपना हाथ मेरे माथे पर रख के
अपने पास बैठा लिये। बोलने लगे ... तेरो वो लेख बहुत चोखो थो। वो राजु
खेमको तो पागल हो राखो है। मुझे ऐसा लग रहा था मानो सरस्वती बोल रही हो ।
शब्दों में वह स्नेह, इस पडाव पर भी इतनी बातें याद रखना, आश्चर्य सा
लगता है। फिर अपनी बात बताने लगे- ‘आकाश गंगा’ तो सुबह 6 बजे लिखण
लाग्यो... जो दिन का बारह बजे समाप्त कर दी। हम तो बस उनसे सुनते रहना
चाहते थे, वाणी में सरस्वती का विराजना साक्षात् देखा जा सकता था। मुझे
बार-बार एहसास हो रहा था कि यह एक मंदिर बन चुका है श्री सेठियाजी का घर
। यह तो कोलकाता वासी समाज के लिये सुलभ सुयोग है, आपके साक्षात् दर्शन
के, घर के ठीक सामने 100 गज की दूरी पर सामने वाले रास्ते में नेताजी
सुभाष का वह घर है जिसमें नेताजी रहा करते थे, और ठीक दक्षिण में 300 गज
की दूरी पर माँ काली का दरबार लगा हो, ऐसे स्थल में श्री सेठिया जी का
वास करना महज एक संयोग भले ही हो, परन्तु इसे एक ऐतिहासिक घटना ही कहा जा
सकता है। हमलोग आपस में ये बातें कर रहे थे, परन्तु श्री सेठियाजी इन
बातों से बिलकुल अनजान बोलते हैं कि उनकी एक कविता ‘राजस्थान’ (हिन्दी
में) जो कोलकाता में लिखी थी, यह कविता सर्वप्रथम ‘ओसवाल नवयुवक’ कलकत्ता
में छपी थी, मानो मन में कितना गर्व था कि उनकी कविता ‘ओसवाल नवयुवक’
में छपी थी। एक पल मैं सोचने लगा मैं क्या सच में उसी कन्हैयालाल सेठिया
के बगल में बैठा हूँ जिस पर हमारे समाज को ही नहीं, राजस्थान को ही नहीं,
सारे हिन्दुस्थान को गर्व है।
मैंने सुना है, कि कवि का हृदय बहुत ही मार्मिक व सूक्ष्म होता है, कवि
के भीतर प्रकाश से तेज जगमगता एक अलग संसार होता है, उसकी लेखनी ध्वनि से
भी तेज रफ्तार से चलती है, उसके विचारों में इतने पड़ाव होते हैं कि सहज
ही कोई उसे नाप नहीं सकता, श्री सेठियाजी को देख ये सभी बातें स्वतः
प्रमाणित हो जाती है। सच है जब बंगलावासी रवीन्द्र संगीत सुनकर झूम उठते
हैं, तो राजस्थानी श्री कन्हैयालाल सेठिया के गीतों पर थिरक उठता है,
मयूर की तरह अपने पंख फैला के नाचने लगता है। शायद ही कोई ऐसा राजस्थानी
आपको मिल जाये कि जिसने श्री सेठिया जी की कविता को गाया या सुना न हो ।
इनके काव्यों में सबसे बड़ी खास बात यह है कि जहाँ एक तरफ राजस्थान की
परंपरा, संस्कृति, एतिहासिक विरासत, सामाजिक चित्रण का अनुपम भंडार है,
तो वीररस, श्रृंगाररस का अनूठा संगम भी जो असाधारण काव्यों में ही देखने
को मिलता है। बल्कि नहीं के बराबर ही कहा जा सकता है। हमारे देश में
दरबारी काव्यों की रचना की लम्बी सूची पाई जा सकती है, परन्तु, बाबा
नागार्जुन, महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चैहान, निराला, हरिवंशराय
बच्चन, भूपेन हजारिका जैसे गीतकार हमें कम ही देखने को मिलते हैं। श्री
सेठिया जी के काव्यों में हमेशा नयापन देखने को मिलता है, जो बात अन्य
किसी में भी नहीं पाई जाती, कहीं कोई बात तो जरूर है, जो उनके काव्यों
में हमेशा नयापन बनाये रखने में सक्षम है। इनके गीतों में लय, मात्राओं
का जितना पुट है, उतना ही इनके काव्यों में सिर्फ भावों का ही नहीं,
आकांक्षाओं और कल्पनाओं की अभिनव अभिव्यक्ति के साथ-साथ समूची संस्कृति
का प्रतिबिंब हमें देखने को मिलता है। लगता है कि राजस्थान का सिर गौरव
से ऊँचा हो गया हो। इनके गीतों से हर राजस्थानी इठलाने लगता हैं। देश-
विदेश के कई प्रसिद्ध संगीतकारों-गीतकारों ने, रवींद्र जैन से लेकर
राजेन्द्र जैन तक, सभी ने इनके गीतों को अपने स्वरों में पिरोया है।
‘समाज विकास’ का यह अंक यह प्रयास करेगा कि हम समाज की इस अमानत को
सुरक्षित रख पाएं । श्री कन्हैयालाल सेठिया न सिर्फ राजस्थान की धरोहर
हैं बल्कि राष्ट्र की भी धरोहर हैं। समाज विकास के माध्यम से हम राजस्थान
सरकार से यह निवेदन करना चाहेगें कि श्री सेठियाजी को इनके जीवनकाल तक न
सिर्फ राजकीय सम्मान मिले, इनके समस्त प्रकाशित साहित्य, पाण्डुलिपियों
व अन्य दस्तावेजों को सुरक्षित करने हेतु उचित प्रबन्ध भी करें।
- शम्भु चौधरी
http://samajvikas.blogspot.com/
Father day
-
-*शंभु चौधरी*-
पिता, पिता ही रहे ,
माँ न बन वो सके,
कठोर बन, दीखते रहे
चिकनी माटी की तरह।
चाँद को वो खिलौना बना
खिलाते थे हमें,
हम खेलते ही रहे,...
5 हफ़्ते पहले
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें