कन्हैयालाल सेठिया की आत्मा से सम्वाद की प्रक्रिया में मैं गूंगा हो जाता हूं। शब्द नहीं जुड पाते। ब्राह् का परब्राह् रू प मेरा शब्द देवता विस्मित सा मुझे देखता रह जाता है। सन् 1919 के सितम्बर की 11 तारीख को वे जन्मे और सन 2008 के नवम्बर की 11 तारीख को महाप्रयाण कर गए। जीवन के 89 वर्षो में उन्होंने और कोई साधना पाली या नहीं, किन्तु उनकी एक सर्वप्रकट साधना का साक्षी तो मैं स्वयं भी हूं। वह साधना थी अपनी मातृभाषा राजस्थानी को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में ससम्मान स्थापित देखना। मात्र 29 वर्ष की आयु में ही राजस्थानी और हिन्दी के प्रख्यात कन्हैयालाल सेठिया ने यह साधना शुरू कर दी थी। देश स्वतंत्र हुआ। संविधान सभा बनी। संविधान में आठवीं अनुसूची जैसी सूची जुडी और सेठिया आल्हादित के साथ ही आनंदित भी हो उठे। यह राजस्थानी के शोधार्थियों का काम है कि वे अध्ययन करके शोध करके बताएं कि इस ने 'धरती धोरां री' गीत किस उम्र में लिखा। देश के आजाद होने से लेकर अपने महाप्रयाण तक 60-62 वर्षो का जीवन काल सेठिया ने अपनी सर्जना के साथ-साथ अपनी चिरसाधना के फलित होने की प्रतीक्षा में बिताया। उन्हें लगता था कि अब केन्द्र सरकार राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान दे देगी। किन्तु उनकी यह साध, यह साधना पूरी नहीं हुई। वे अपने जीवनकाल में यह नहीं देख सके। मुझे इस अधूरी आस पर कुछ कहना है।
पूरे 6 वर्ष, सन् 1998 से सन् 2004 तक मैं राज्यसभा का सदस्य था। संयोग यह था कि इन्हीं 6 वर्षों तक संविधानवेत्ता डॉ. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी भी राज्यसभा के सदस्य थे। मैं कांग्रेस की ओर से इस अमर सदन में था और उधर भारतीय जनता पार्टी की तरफ से लक्ष्मीमल्ल सिंघवी राज्यसभा में बैठे थे। परिस्थितियां ऎसी बनीं कि इन्हीं वर्षो में भारत के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति महामहिम कृष्णकांत का निधन हो गया और उनके स्थान पर उपराष्ट्रपति का चुनाव लडकर राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत भारत के उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति बने। इस पदारू ढता ने सेठिया को नया उल्लास और नया उत्साह दिया। मुझे उनका टेलीफोन मिला। हमेशा की तरह वे बोले-बैरागी! अब तुम लोग मिलजुल कर कोशिश करो कि राजस्थानी को न्याय मिले। मेरी मायड भाषा संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थापित हो जाए। मैंने प्रणाम करते हुए अपनी सहमति दी। वे तब भी फोन पर कहते रहे-'सीमा की सुरक्षा और देश की रक्षा में जो भाषा सबसे बडी संख्या में अपने नौजवान बेटे शहीद होने के लिए देश माता को दे, निछावर करे उन बेटों की मां, उनकी मायड भाषा इतना सा सम्मान भी नहीं पा सके यह कब तक चलेगा' जब अशोक गहलोत पहली बार राजस्थान के मुख्यमंत्री थे तब उनकी पहल पर राजस्थान विधानसभा ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पास कर केन्द्र को भेज दिया था कि राजस्थानी भाषा को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल किया जाए।
राज्यसभा की उन छह वर्षो की कार्यवाही से स्पष्ट है कि गृहमंत्री पद पर रहते हुए लालकृष्ण आडवाणी ने एक प्रश्न के उत्तर में इस मांग को स्वीकार किया था। इसके बाद सरकार बदल गई। दिल्ली में अटल बिहारी वाजपेयी की जगह मनमोहन सिंह आ गए। इस बीच सेठिया को अशोक गहलोत ने विधानसभा के सर्वसम्मत प्रस्ताव की सूचना सगर्व दे दी थी। केन्द्र की सरकार बदलते ही सेठिया का कोलकाता से फिर फोन आया- 'बैरागी! अब क्या बाधा है सब तो अनुकूल हैं। मेरी तबीयत ढीली है। बच्चे मेरी बहुत अच्छी सेवा कर रहे हैं। ये मुझे मरने नहीं दे रहे हैं और दिल्ली वाले मुझे जीने नहीं दे रहे हैं। कुछ करो भैया! और नमस्कार प्रणाम के बाद फिर फोन बंद हो गया। सन् 2004 में मनमोहन सिंह की सरकार बनने पर जब मेरा और लक्ष्मीमल्ल सिंघवी का निवृत्ति समय करीब आया तो इस दिशा में सिंघवी ने राज्यसभा में अशासकीय संकल्प प्रस्तुत करके यह मांग फिर उठाई। भारत के गृहमंत्री (तत्कालीन) शिवराज पाटिल ने उत्तर दिया। संकल्प के पक्ष में सिंघवी, प्रभा ठाकुर, मैं (बालकवि बैरागी) और डॉ. कर्णसिंह बोले। डॉ. कर्णसिंह ने राजस्थानी के साथ अपनी मातृभाषा डोगरी को भी जोडा। शिवराज पाटिल ने उत्तर दिया कि अकेली राजस्थानी ही नहीं साथ में भोजपुरी को भी संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की पूरी तैयारी है। माननीय सदस्य अपना संकल्प वापस ले लें। और सिंघवी ने संकल्प वापस ले लिया।
हम आश्वस्त होकर बैठ गए। आज न तो आडवाणी गृहमंत्री हैं, न आई.डी. स्वामी राज्यमंत्री गृह हैं और न शिवराज पाटिल गृहमंत्री के पद पर हैं। शेखावत पूर्व उपराष्ट्रपति हैं। लक्ष्मीमल्ल सिंघवी स्वर्गीय हैं और मैं एक पूर्व सांसद हूं। कन्हैयालाल सेठिया की आत्मा जहां भी है वहां से सभी को देख रही है। राजस्थानी भाषा अपने साथ होने वाले संभावित न्याय की प्रतीक्षा में दिल्ली की ओर देख रही है। और मैं कन्हैयालाल सेठिया की स्मृति में लिख रहा हूं- 'हे निर्मल मन! हे निश्छल आत्मा!! हे पुण्य पुरूष!!! हमें क्षमा करना। हम तुझे श्रद्धा देते रहे पर श्रद्धा के प्रत्येक क्षण के साथ-साथ तुझे श्रद्धांजलि देने का अधिकार खोते रहे। हमें क्षमा कर दो महाकवि!
बाल कवि बैरागी
[लेखक विख्यात कवि और पूर्व सांसद हैं]
स्कंद पुराण रा श्रीमाल महात्म्य रै ३३वें अध्याय मायने खरानना देवी री जाणकारी मिलै। इणरे मुताबिक श्रीमाल याने भीनमाल इलाकां में सरकूप नाम रो तीरथ मायै गरदभ जैडा मुंडा वाली खरानना देवी री जगै है। ऐड़ी मानता है कै इणरा दरशन सूं जीव रौ भय मिट जावै। माजीसा री पूजा करण सूं किणी भी भांत रा दुसमण नैडा नीं आवै। डरावणा सुपणा दूर जावै। ज्योतिष अर तंत्र शास्त्रां में नवग्रह अर चौषठ जोगणियां री पूजा रौ विधान है। खरानना देवी इण चौषठ जोगणियां रे मायने सूं एक है। श्रीमाली ब्राह्म्णां रे मांय दवे- गोधाआं री कुलदेवी खरानना देवी ही है। जोधपुर किलां रै लारे पुराणो अमरनाथ मंदिर, रिक्तिया भैरूजी मंदिर, दत्त समाज री समाधि अर कलजी महाराज रौ आश्रम है। पैला अठै एकलिंगजी स्थापित हा, पण कुछ बरस पैलां इण मंदिर रो जीर्णोद्वार व्हियो। पछै अठै शरद पूनम रै दिन नवग्रह अर खरनना देवी री परतिमा लगाई गी। कैवे कै इन नवग्रहों री परतिमा राजमहल ठाकर लाया हा। परतिमा फतेहसागर री शिव बावड़ी में रखी ही। इणरै बाद जिण-जिण परतिमा लगावा रो परयास करियौ वो काल रा मुंडा में गिया परा। नौ बामण मर ग्या। तब शास्त्रोक्त विधान रै मुजब शुद्र वर्ग रा आदमी सूं सूरज देव री परतिमा लगाई गी। शास्त्रीय विधान री पालणा करण सूं इण रै पछै हादसा नीं व्हियो। नवग्रह री परतिमा में सूरज देव बीच में स्थापित करिया। परतिमा नै सोना जैड़ा कपड़ा पैराया। चंद्रमा रो आसण अग्रिकोण कानी है। उननै धोला कपड़ा पैराया। आ परतिमा पचिम दिसा री कानी है। चंद्रमा धरती रै पाणी नै परभावित करै अर दरिया में आवा वाळा जवार भाटा रां नियामक है। इण कारण सूं वै मानव मन रे मायने आवा वाला जवार भाटा नै काबू करै है। कैवे है कै आदमी पूनम अर इणरै आगे अर लारे री तिथियां माथै खुदकुसी करै। मंगल ग्रह री परतिमा माथै लाल कपड़ा पैराया ग्या है। अर इणरौ मुंडो दखिन दिसा री कानी है। आगली वातां सारू बाट जोवौत्र........ साभार:- मारवाड़ री फुलवारी