हूँ बळिहारी राणियां ,
जाया वंस छतीस ।
सेर सलूणो चूण ले ,
सीस करै बगसीस ।।
हूँ बळिहारी राणियां ,
थाळ वजाणौ दीह ।
वींद जमी'रा जे जणै ,
सांकळ ढीटा सीह।।
हूँ बळिहारी राणियां ,
भ्रूण सिखावण भाव ।
नाळो वाढण री छुरी ,
झपटै जणियो साव।।
थाळ वजतां हे सखी ,
दिठो नैणा फुळाय ।
वाजां'रै सिर चेतणो ,
भ्रूणां कवण सिखाय?।
इळा न देणी आपणी ,
रण खेतां भिङ जाय ।
पूत सिखावे पालणै ,
मरण वडाई माय।।
मेघराज मुकुल
राजस्थान रजपूतां-रणबंका री खान। पण सारू रण। पण पाळै अर रण भाळै। जीत री पाळै हूंस। हूंस पण स्यो-सगत रो वरदान। इणीज कारण स्यो रा गण भैरूं अठै पूजीजै। मां सगत दुरग रूखाळी। इणीज कारण दुरगा बजै। रणबंका खुद नै सगत रा पूत बतावै। मरूधरा रै कण-कण में रण री छाप। रण री देवी रणचंडी री ध्यावना आखो राजस्थान करै। नोरतां में तो कैवणो ई काँईं।घर-घर दुरगा री पूजा हुवै। सरूपोत में गजानंद महाराज अर सुरसत सिंवरीजै। भळै मात भवानी ध्यावै।
1 चरका मरका चाबतां
फीका लागै फलकिया
अकरा सेकै आंच ।
करमां रो कीट लागै ।
2
नेता नाटक मांडिया
ले नेता री ओट ।
नेता नै नेता चुणै
जनता घालै बोट ।।
लोक सिधारो परलोक ।।
3
लोक घालै बोटड़ा
नेता भोगै राज ।
लोकराज रै आंगणै
देखो कैड़ा काज ।।
जोग संजोग री बात।।
4
हाकम रै हाकम नहीँ
चोर न जामै चोर ।
नेता तो नेता जणै
नीँ दाता रो जोर ।।
नेता जस अमीबा ।।
5
चोरी जारी स्मगलिँग
है नेता रै नाम ।
आं कामां नै टाळगै
दूजो केड़ो काम।।
आप बिकै नी बापड़ा ।।
6
जनता हाथां हार कर
हाट करावै बंद।
फेर ऐ खुल्ला सांडिया
खूब खिंडावै गंद ।।
जिताओ बाळो आगड़ा।।
7
चोळा बदळै रोज गा
चालां रो नीँ अंत ।
भाषण देवै जोर गा
वादां में नीँ तंत।।
कियां घड्या रामजी ।।
8
नेता मरियां कामणी
माता मरियां पूत।
बो इज होवै पाटवी
जो मोटो है ऊत ।
मारो साळां रै जूत ।।
9
बोट घलावै बापजी
दे कंठां मेँ हाथ
जीत बजावै ढोलड़ा
अणनाथ्या हे नाथ ।।
पोल मेँ बजावै ढोल ।।
10
बाजो बाजै जीत गो
नेता घर मेँ रोज ।
हारै जनता बापड़ी
भूखी टाबर फोज ।।
घालो ओज्यूं बोट।।
11
नेता खावै धापगै
जनता भूखी भेड़ ।
पांच साल मेँ कतरगै
पाछी चाढै गेड़ ।।
राम ई राखसी टेक ।।
12
नेता मुख है मोवणां
धोळा धारै भेस ।
जीत्यां जावै आंतरा
हार्यां करै कळेस ।।
दे बोट काटो कळेस ।।
13
पाटै बैठ्या धाड़वी
नितगा खोसै कान ।
नेता भाखै आपनै
चोखो पावै मान ।।
नमो कळजुगी औतार ।।
14
सेडो चालै नाक मेँ
मुंडै काढै गाळ ।
नेता मांगै बोटड़ा
कूकर गळसी दाळ ।।
रामजी ई रुखाळसी ।।
15
लोकराज रै गोरवैं
खूब पळै है सांड ।
चरणो बांरो धरम है,
बांध्यां राखो पांड ।।
करणी तो भरणी पड़ै।।
16
काळू ल्यायो टिगटड़ी
बणग्यो काळूराम ।
जनता टेक्या बोटड़ा
जैपर बण्यो मुकाम ।।
इयां ई तिरै ठीकरी ।।
17
धापी आई परण गै
नेता जी रै लार ।
नेता राखै चोकसी
बा टोरै सरकार ।।
पतिबरता है बापड़ी।।
18
नेता पूग्यो सुरग मेँ
धापी रै
गी लार।
ओ'दो मांग्यो लारलां,
धापी देगी धार।।
धणी री तो ही कुरसी।।
19
नेता चाबी झालगै,
दी कूए मेँ न्हाख ।
लोकराज रै बारणै,
अब तूं बैठ्यो झांख ।।
फसा ली कुतड़ी कादै।।
20
लोगां पूछी पारटी
नेता होग्यो मौन ।
नेता पूछी पारटी
कर नेता नै फोन ।।
बदळी तो कोनीँ आज।।
21
बेल्यां मांगी पारटी
नेता मारी डांट।।
पारटी म्हारी आपग,
है देवणगी आंट ।।
पारटी बदळै क देवै ।।
22
बोट घालो धपटवां,
नीँ तो करस्यूं झोड़।
नीँ छोडूंला गांव मेँ,
भाज्या फिरस्यो खोड़।।
बोट सूं कटसी पापो ।।
23
नेतावंश विशेष है,
औ’दै रो हकदार ।
नेतण जाम्यौ सेडलौ,
बणसी बो सरदार ॥
ऊंदर जामसी ऊंदर ॥
24
नेता फ़ळ तलवार रो,
बधै बुढापै धार ।
आडौ पटकै राज नै,
जे खा जावै खार ॥
और के खाडा खोदै ॥
25
नेता भासण ठोकियो,
ढीली करगै राफ़ ॥
म्हानै टेको बोटडा़,
पाणी देस्यां साफ़ ॥
जा पछै नै’र बंद है ॥
26
नेता टोरी बातडी़,
दे वादां री पांड ।
अबकै आपां जीतगै,
करस्यां खेत कमांड ॥
छावनी खोली छेकड़ ॥
मायड़ भाष्ाा को भले ही अभी तक मान्यता नहीं मिली हो, लेकिन मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियों ने इसे भाषा का दर्जा दे दिया है। यही कारण है कि गुजराती, मराठी या अन्य किसी स्थानीय भाषा की तरह राजस्थान के मोबाइल उपभोक्ताओं को राजस्थानी में संदेश मिल रहे हैं। मोबाइल की ऑटोमेटिक टेली मेन्यूलिंग सिस्टम में अब राजस्थानी को जगह मिल गई है। किसी उपभोक्ता का मोबाइल बंद हो, कवरेज क्षेत्र से बाहर या वह जवाब नहीं दे रहा है तो इसकी तमाम तरह की सूचना राजस्थानी मेे मिल रही है। हालांकि यह सेवा सुविधा अभी तक कुछ ही सेवा प्रदाता कंपनियों ने शुरू की है।
समझ बढ़ेगी
राजस्थान में राजस्थानी बोलने वाले रहते हैं ऎसे में मोबाइल कंपनियों का यह कदम सराहनीय है। इससे राजस्थानी का प्रचार तो होगा ही। गांवो में रह रहे ग्रामीणों को भी सही व सटीक जानकारी मिल पाएगी। इससे भाषा का मान बढ़ा है। भाषा की मान्यता के लिए सबको मिलकर प्रयास करने होंगे।
- लालदास राकेश, राजस्थानी साहित्यकार
भाषा का मान बढ़ा
आज का जमाना तकनीक का है। मोबाइल की यह सुविधा करोड़ों लोगों तक राजस्थानी को पहुंचा रही है। यह बहुत बड़ी बात है। इससे भाषा का तो फायदा होगा ही यहां के लोगों में अपनापन भी बढेगा। राजस्थानी बहुत ही समद्ध भाषा है।
- अर्जुनसिंह उज्जवल, व्याख्याता राजकीय महाविद्यालय जालोर
फायदा होगा
मोबाइल की दुनिया में जगह मिलने से भाषा को प्रचार-प्रसार होगा। यह बहुत ही अच्छी पहल है। इससे ग्रामीण लोगों को सूचना के समझने में काफी फायदा होगा। राजस्थानी के लिए भी गर्व की बात है। हम सभी लोगों को मिलकर इसकी मान्यता के लिए प्रयास करने होंगे।
- शैतानसिंह काबावत, जिला पाटवी, राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति चिन्तन परिषद
प्रदूशण नै रोकणो, सै सूं पैलो काम।
जे काबू ओ नीं हुयो, बचा नीं सके राम।।
रंग-बिरंगो जैर‘तो, रच रैयो पोलीथीन।
फैषन, सुविधा कारणै, जीवण मौत अधीन ।।
नई है सुद्ध खावणो, नीं है निरमल नीर।
आभै में विस घुल रयो, हवा जै‘र रा तीर।।
दिवलो एक बाट रो, जल सी आखी रात।
दियो जी चार बाट रो, बुझती आधी रात।।
इण धरा री सुदंरता, रंग-रूप-रस पाण।
जे प्रकशित मिटती गई, जगती हुसी मसाण।।
धरती सै री मात है, आभो है जी तात।
मा- जाया सा बिरछ है, मत कर इण सूं घात।
धुंआ पी-पी धुंआ हुया, तन धुंएं री लकीर ।
तन-मन धन धुंआ लगा, हुयग्यो फकीर ।।
घायल धरा टसक रयी, हुयो गगन बीमार,
सागर रो दम धुट रयो, नदियां हाहाकार
सिवजी दाई जै‘र पी, इमरत बाँटे रूख।
कामधेनु अे कलपतरू, मत काटो थे रूख।।
जांभा जी सूं सीख लो, खेजडली री आण।
हरा रूंख जे काट सो, हुय सी देस मसाण।।
धरती मा रो दूध पी, बधै अे हरिया रूंख।
मा-जाया नै बाढ थे, बालो मा री कूख।।
इकीसवीं मे रैवणिया, सुणो सदी रो ग्यान।
आज लगाओं बन हरा, भविय मिलै बरदान।।
गगन-पवन, जल अर धरा, बणिया जै‘री दंस।
मिनख जमीं जलमा रया, धश्तराश्ट्री बंस।।
जठै-जठै आदम गयो, मैल बिखरी जाण।
गंग, हिमालो, चांद ई, मैला मिनखा पाण।।
नीं मेला, ना मगरिया, नई तीज-त्योहार।
सावण नीं, फागण नई, किंया करै सिणगार।।
भोर कुंकमिया नई, केसरिया नीं सांझ।
मोती सा दिनडा कठै, नीं चांदणिया रात
लक्ष्मीनारायण रंगा
आसाढ़ री पैली बिरखा साथै धरती पर एक जीव उतरै। बेजां फूटरो, बेजां कंवळो अर बेजां नाजक। नाजक इत्तो कै घास पर पळका मारती ओस नै परस सकां पण इण नै परसतो हाथ धूजै। आ टीबां पर रमती ओस ई है। लाल ओस। जियां ओस तावड़ो नीं सैय सकै अर सूरज री किरणां रै रथ पर सवार होय'र इण लोक सूं उण लोक सिधार ज्यावै। उणी भांत ओ जिनावर भी तावडिय़ै सूं बचण सारू बूई-बांठ अर घास-पात री सरण में चल्यो जावै। कैय सकां, टीबां रै लोक सूं बांठां रै लोक सिधार ज्यावै। अर जद ठंड हुवै, पाछो ई टीबां नै मखमली करद्यै।
आपणी भाषा में आ बूढ़ी माई बजै। तीज, सावण री डोकरी, थार री बूढ़ी नानी अर ममोल इणरा ई नांव। हिंदी में इणनै वीर-बहूटी अर इंद्रवधू अनै अंग्रेजी में रेड वेलवेट माइट कैवै। जीव विज्ञान री दीठ सूं ओ संधि पाद विभाग री लूना श्रेणी में वरूथी वर्ग में द्रोम्बी डायोडी परिवार में डायनाथोम्बियम वंस रो जीव है। इणरो हाड-पांसळी बायरो डील घणो लचीलो। पैली बिरखा री टेम बूढ़ी माई जमीं में इंडा देवै। आठ पौर में बचिया बारै निकळै। ऐ जमीं रै मांय-मांय नान्हा-नान्हा जीवां नै खाय'र पळै। अर सूरज उगाळी रै साथै बारै टुरता-फिरता निगै आवै। जद सूरज छिपै, पाछा ई जमीं में बड़ ज्यावै। इणरै आठ पग। पण नखराळी चाल। संकोची सभाव। जकी छेड़्यां छापळै। डील पर रेशम सूं कंवळा लाल बाळ। इणरो गात इत्तो कंवळो कै चित्रण करतो कवि कतरावै। इत्ता कंवळा सबद कठै लाधै? अर कठै लाधै इत्तो कंवळो भाव, जिणसूं इणरो कंवळो डील अभिव्यक्त होय सकै। इणनै किणरी उपमा देवै? इसो उपमान कठै ढूंढै? मखमल? ना! कठै मखमल अर कठै बूढ़ी माई! कठै राम-राम अर कठै टैं-टैं। हां, मां रै मोम सरीखै दिल री कंवळाई सूं मींड सकां आपां इणनै। पण आ उपमा ई बेमेळ है। क्यूंकै वस्तुगत खासियत री भावगत खासियत सूं तुलना अपरोगी लागै। ईयां कै बारली विसेसता नै भीतरली विसेसता सूं तोलणो फिट कोनी बैठै। अब रैयी बात इण रै फूटरापै री। फूटरी इत्ती कै देख्यां जीवसोरो हुवै। हथाळी पर लेवण नै जी करै। पण इण रो रूप बिगड़ण रै भय सूं कदे-कदास ई अर बा ई अणूंती सावचेती सूं पकड़'र हथाळी पर धरां। आ हाथ में लेयां मैली हुवै। इण रै रूप रो पार नीं। टीबां पर हवळै-हवळै चालती बूढ़ी माई लाल जोड़ै में लाल बीनणी-सी लागै। जकी रूप रै रसियां नै आप कानी खींचै। आ टाबरां नै घणी प्यारी लागै। वै इणनै हथाळी पर राखै अर घणा लाड-कोड करै। बा पंजा भेळा कर्यां हथाळी पर पड़ी रैवै। टाबर नाचता-कूदता गावै- 'तीज-तीज थारो मामो आयो, आठूं पजां खोल दे।' आओ, आपणी भाषा रै दूहां में इणरो बिड़द बखाणां!
बूढ़ी माई बापरी, हरखी धरा समूल।
जाणै आभै फैंकिया, गठजोड़ै पर फूल॥
रज-रज टीबां में रमै, बिरखा मांय ममोल।
जाणै मरुधर ओढियो, चूंदड़ आज अमोल॥
चालै धरती सूंघती, बूढ़ी माई धीम।
आई खेत विभाग सूं, माटी परखण टीम॥
बूढ़ी माई आ नहीं, झूठो बोलै जग्ग।
इंदराणी रै नाथ रो, पड़ग्यो हूसी नग्ग॥
Ramswaroopji kisan