राजस्थांन दिवस मनावण री मन मांय उमक जागी, अेक’र पाछौ टटोळ्यौ जकौ पोसाळां मांय बांच्यौ हौ. राजस्थांन कंया बण्यौ अर इणरौ इतिहास कांई हौ.
सब देख’र लागौ कै फक्त इणरौ नांव इज राजस्थान पड़यौ छै, राजस्थान मांय रेवणीयौ राजस्थानी कुहावै पण वौ ई फक्त नांव रौ राजस्थांनी, उणनै उणरी भासा अर संस्क्रती सूं हेत राखण रौ हक ईं नीं दियौ भारत सरकार.
सरदार पटेल राजपुतानै रै सगळा राजावां नै लाळा-लुंभा करनै अर वांनै वांरी अर वांरै रईयत (प्रजा) री भलाई बताय’र भारत मांय विलय वास्तै राजी कर दिया. इणरै साथै ईं अठा री संस्क्रती, अठा री सभ्यता, रीति रिवाज सैं कीं खतम कर दियौ. भारत मांय विलय रै साथै ईं आपां आपणी हजारूं बरसां री परंपरा, भासा अर संस्क्रती रौ राष्ट्रीय अेकता अर अखंडता रै नांव पर आपां समर्पण कर दियौ.
राजस्थांनी भारत मांय सबसूं विशाळ भाग मांय बोली जावण वाळी भासा छै. आ भासा आखै राजस्थांन, मध्य प्रदेश रै माळवै, उत्तर गुजरात, पाकिस्तान रै सिंध, थारपारकर अर पंजाब रा घणकरा इलाकां, हरियाणा अर इणरी अेक बोली गुजरी तौ कश्मिर, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, चेकोस्लाविया अर सोवियत रुस रा घणकरा देसां मांय बोलीजे.
भारत सरकार राजपुतानै नै राजस्थांन नांव तौ दे दियौ, पण राजस्थांन रा प्राण अठा री भासा नै मानता नीं दी. राजस्थांन री सगळी बोलियां सूं मिळ’र जै भासा बणै वा अेक राजस्थांनी नै इण री बोलीयां रै हिसाब सूं तोड दी अर इणनै हिंदी भासा री अेक बोली बताय दि.
भारत सरकार नै औ डर ई सतावै कै जिण हिंदी भासा नै राष्ट्रभासा बणावण रौ वा सुपणां देखै छै, अर बोलै छै कै आ भासा दुनीया री तीजी सबसूं ज्यादा बोली जावण वाळी भासा छै. राजस्थानी भासा नै मान्यता मिळ जावै तौ इण भारत सरकार री आ बात झुठी हु जावै, क्युं कै राजस्थांनी अेक स्वतंत्र भासा रै रुप मांय भारत री सबसूं ज्यादा बोली जावण वाळी भासा छै.
राजस्थान रै भारत मांय विलय सूं राजस्थांन नै अेक हिसाब सूं गुलामी इज हाथ लागी है. भारत मांय रेवता राजस्थांनीयां नै आपरी भासा वापरवा रौ इधकार कोनीं, जिणसूं वांनै वांरै राज्य मांय भासा रै आधार पर मिलण वाळा सगळा हकां सूं हाथ धोवणा पडे छै. राजथांनीयां नै वांरै खुद रै राज्य मांय नौकरी नीं मिळै. दूजा राज्यां रा हिंदी भासी आय’र अठै नौकरी करै अर आपणा राजस्थांनी भाई प्रदेसा कांनी न्हावै.
दूजी कांनी पोसाळां मांय शिक्षा हिंदी भासा मांय हुवण सूं टाबरां नै भणाई मांय तकलिफ आवै. टाबर डाफाचुक व्है जावै कै, घरै तौ वौ दूजी भासा बोलै अर पोसाळां मांय दूजी भासा छै. वौ खुद री भासा नै हिनता री निजर सूं देखण लागै. अेड़ौ टाबर ना तौ हिंदी बराबर सिखै ना ई राजस्थांनी रौ ग्यान हुवै. सेवट ૪-૫ पास करनै वौ पोसाळां (स्कुलां) छोड’र प्रदेशां कांनी मुंडो करै.
राजस्थांन रै भारत मांय विलय सूं अठा रै मानखां नै बेरोजगारी मिळी, लोगां नै आपणी भासा-संस्क्रती रै प्रती हिन भावना मिळी. पछै बतावौ कैड़ौ राजस्थांन दिवस. हकिकत मांय तौ ૩૦ मार्च नै राजस्थांन वासियां नै काळा दिन रै रुप मांय मनावणौ चाईजै. लोग केह्वै इण दिन राजपुतानै री सगळी रियासतां आपस रौ बैर भुलाय’र अेक हूगी, ना आ बात नीं है, राजस्थान सूं पैली जद राजपुतानौ हौ उण समै अेकता अबार रै राजस्थान करता वधारै ही, हर रियासत री राजभासा राजस्थानी ही. लोगां रै कन्नै रुजगार हौ अर आपसरी मांय घणौ भाईपौ हौ.
रहसी राजस्थान, राजस्थानी राखिया ।
Posted by हनवंतसिंघ at 2:00 AM
साथियो,
राम-राम। आज मैं आपसे राजभाषा हिन्दी में मुखातिब हूं, इसका मतलब यह नहीं कि मैं अपनी मातृभाषा राजस्थानी का सम्मान नहीं करता। हकीकत तो यह है कि जो व्यक्ति अपनी मां का सम्मान करता है, वही अन्य की मांओं का सम्मान करना जानता है। हमारे दिल की बात अन्य भाषा-भाषियों तक भी पहुंचे, इसलिए आज हिन्दी में।
मां हमें जिस भाषा में दुलारती है, लोरियां सुनाती है, जिस भाषा के संस्कार पाकर हम पलते-बढ़ते हैं, वही होती है हमारी मातृभाषा। जनगणना के वक्त भी मातृभाषा के कॉलम में हमें उसी मां-भाषा का नाम लिखना-लिखवाना चाहिए। अक्सर देखा गया है कि राजस्थान में बसने वाले राजस्थानी, पंजाबी, सिंधी आदि भाषी लोगों की मातृभाषा अनभिज्ञतावश हिन्दी लिख दी जाती है। हमें इस मामले में सावचेती बरतनी चाहिए। सही आंकड़े प्रस्तुत कर हम हिन्दी के सम्मान को कम नहीं कर रहे, बल्कि अपनी मां-भाषा का सच्चा सम्मान कर रहे होते हैं और अपने राष्ट्र की एक सही-सही तस्वीर भी दुनिया के समक्ष रख रहे होते हैं। असल में भाषाओं की विविधता हमारे राष्ट्र की खूबी है और यह खूबी बरकरार रहनी चाहिए। राजस्थानियों को भी जनकवि कन्हैयालाल सेठिया का यह दूहा याद रखना चाहिए-
खाली धड़ री कद हुवै, चैरै बिन्यां पिछाण?
मायड़ भासा रै बिन्यां, क्यां रो राजस्थान?
सही कहा सेठियाजी ने कि जिस भाषा के नाम पर राजस्थान नाम पड़ा इस प्रांत का। वह भाषा ही नहीं रही तो राजस्थान काहे का? इसलिए राजस्थानी का सवाल राजस्थान की पहचान का सवाल है।
देश के लगभग हर प्रांत में वहां की प्रमुख भाषा को प्रथम भाषा के रूप में स्वीकार किया जाता है और सारा राजकाज उसी भाषा में चलता है। वही भाषा शिक्षा के माध्यम के रूप में प्रचलित है। मसलन पंजाब में पंजाबी, गुजरात में गुजराती, महाराष्ट्र में मराठी, आंध्र प्रदेश में तेलुगु, अरुणाचल प्रदेश में असमिया, बिहार में मैथिली और हिन्दी, गोआ में कोंकणी, जम्मू-कश्मीर में उर्दू, झारखंड में संथाली, कर्नाटका में कन्नड़, केरला में मलयालम, मणिपुर में मणिपुरी, उड़ीसा में उडिय़ा, सिक्किम में नेपाली, तमिलनाडु में तमिल, प. बंगाल में बंगाली आदि। इन प्रांतों में हिन्दी, अंग्रेजी आदि को प्रांत की द्वितीय राजभाषा के रूप में अंगीकार किया गया है। यहां तक कि दिल्ली और हरियाणा राज्यों में तो पंजाबी को द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिया गया है। दूसरी और राजस्थान राज्य का हाल यह है कि यहां की प्रमुख भाषा राजस्थानी राज्य की प्रथम राजभाषा बनने की अधिकारिणी है, मगर उसे द्वितीय तो दूर तृतीय भाषा के रूप में भी स्वीकार नहीं किया जाता। राजस्थान के स्कूलों में संस्कृत, उर्दू, गुजराती, सिंधी, पंजाबी, मलयालम, तमिल आदि भाषाएं तो तृतीय भाषा के रूप में पढ़ाई जाती है, मगर अपने ही प्रांत की राजस्थानी नहीं। राजस्थान की विधानसभा में राजस्थानी भाषा के संस्कारों से ही पला-बढ़ा और राजस्थानी में ही वोट मांग-मांग कर विधानसभा तक पहुंचा एक विधायक 22 भारतीय भाषाओं में भाषण देने का अधिकार तो रखता है, मगर अपनी मातृभाषा राजस्थानी में शपथ तक नहीं ले सकता। राजस्थान की जनता पर अपमान का यह काला टीका आखिर कब तक लगा रहेगा? बातें तो बहुत हैं दोस्तो! मगर अगले खत में। आज तो रामस्वरूप किसान का यह दूहा सुनलो-
भासा अपणी बोलियो, जे चावो थे मान।
राजस्थानी कम नहीं, कम नहीं राजस्थान॥
आपरो
-सत्यनारायण सोनी, व्याख्याता (हिन्दी)
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, परलीका।
aapnibhasha@gmail.com
बोलो-बोलो रे भायला, अठै की नीं आणी-जाणी छै।
व्है छै कीं उठै, जठै खीरा भळ-भळता व्है।
भर काळजे बारूद, घूमतो हरेक जोध व्है।
बात साटै सिर देवण नैं तातो कुंचो-कुंचो व्है।
जठै अन्याव रै सांमी लड़-भिड़णो ही धर्म व्है।
इसड़ै जोधां रै सांमी लुळ्यो, जमानो छै।
पण तूं बोलो-बोलो रे भायला, अठै की नीं आणी-जाणी छै।
विनोद सारस्वत