आज धराऊ धूंधळौ, मोटी छांटां मेह।
भगा बसन पधारजौ, जद जाणूंला नैह।।
ओढ ल्हैरियों गोरी ऊभी, मन ई मन मुसकावैं।
बागां बिच में मोर पपीहा, रूत रा गीत सुणावैं।।
होळै-होळै मन मदमाती, पवन चलै पुरवाई।
सावणियै री तीज गोरियां, तीज मनावण आई।।
हरियाळी छाई चहु दिस में, सूख गयौ मन म्हारौ।
नैणां पंथ बिछाया साजन, देखण नै उणियारौ।।
भादरवै री गाज सूं, हिवड़ौ धडका खाय।
इण बैळा म्हैं एकेळी, एकर मिळलौ आय।।
♥
आदरजोग राव गुमान सिंघ जी
घणैमान रामराम सा !
भादरवै री गाज सूं हिवड़ो धड़का खाय
ब्होत फूटरो लिख्या हो सा… घणा घणा रंग !
अठीनैं ई भादवो बरस रह्यो है अबकाळी …
आपरै ब्लॉग पर आ'र चोखो लाग्यो । आपनैं भी नूंतो है सा :)
लारला सगळा परव अर तिंवारां सागै
आवण आळा सैंग उछब-मंगळदिनां वास्तै
♥ मोकळी बधाई और शुभकामनावां !♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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बहुत बढिया
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