मगरा धौरा भाखरा,घलिया घण घमसांण।
साखी कोट'र कांगरा,नमै आज अणजांण॥१॥
सुरसती सदा सरसती,हाकड़ौ कैवे हाल।
माडधरा आ मुलकती,अंतस रेत उलाल॥२॥
वीरा राखी वीरता,सूरा राखी शांण।
संतां राखी सांच री,जस जौगे जैसाण॥३॥
कुल री राखण कीरती,मही रौ राखण मांण।
आलै जंज उजालियौ,भाटी कुल रौ भांण।४॥
पौड़ भून्गरे पटकता,गूंज्यौ गढ़ गौहराण।
पीर मौडिये पाड़िया,पिरथी घणा पठाण॥५॥
छत्र धारियौ सूरमा,अनमी राखण आंण।
भली'ज राखी भांणसी,ईशाल धर एहनाण॥६॥
छत्रालै छत्र धारियौ,जबर जुन्झियौ जंग।
धर ईशाली धधकती,रंग आल्हसी रंग॥७॥
हिरदै नैण समाविया,धड़ बिच करतै दौड़।
आलोजी जंग जुन्झियौ,हरावली कर हौड़ ॥८॥
मालदे मन मोदियौ,जंज दिखाई जंग ।
तूटो सर धड़ जुन्झियौ,रंग आलहसी रंग॥९॥
साको कियौ सुहावणौ,जंज जुन्झकर जंग।
भाटी कुल रै भांण नै,दीनौ रावल रंग ॥१०॥
कविवर 'मेन्दर' किरती,जस गावै जजमान ।
जुन्झिया सर बिण जगत में,रंगीलै रजथान ॥११॥
- महेन्द्रसिह सिसोदिया(छायण)
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