अग्गम बुद्धि बांणियौ, पिच्छम बुद्धि जाट।
तुरत बुद्धि तुरकड़ो, बांमण सम्पट पाट॥
बातां रीझै बांणियौ, रागां सूं रजपूत।
बांमण रीझै ळाड़वां, बाकळ रीझै भूत॥
जंगळ जाट न छोड़िये, हाटां बिचै किराड़।
रंघड़ कदैयन छोड़िये, जद तद करै बिगाड़॥
बींद मरौ बींदणी मरौ, बांमण रै टक्कौ त्यार।
ठाकर ग्या ठग रिया, रिया मुळक रा चोर॥
१-बाहड़मेरः- मुदै केराड़ू कहीजै छै। धरणीवाराह री बैसणौ छै। भाखर मांहै ऊंड़ी जायगा छै। देहुरा जिण समै रा छै। गांव ७०० जैड़ा ळागे।
डरपत पलक न खोळ ही, मत बिछोहो होय॥
जिण ने सुपने देखती, प्रगट भया पिव आय।
डरती आंख न मूंदहीं, मत सुपनो हुय जाय॥
सुपना तोहि मरावसूं, हिये दिरावूं छेक।
जद सोवूं तद दो जणां, जद जागूँ तद एक॥
हूंता सखी मौ हीवडै, सायणां हंदा हत्थ।
जो सपनो सांचौ हुवै, सपनो बड़ी वसत्त॥
सुपने प्रियतम मुझ मिल्यां, हूँ ळागी गळ रोय।
डरपत पळक न खोल ही, मत सपनो हो जाय॥
सुपनो आयो फिर गयो, मैं सर भरिया रोय।
आव सुहागण नींदड़ी, वळि पिउ देखूं सोय॥
सपना तूं सो भागियो, उत्तम थारी जात।
सो कोसां साजण वसै, आण मिलावै रात॥
आज धरां दिस ऊनम्यो, काळी धड़ सिखरांह।
च्यारुं पासै घण घणो, बिजळ खिवै अकास।हरियाळी रित तो भळी, घर संपत पिव पास॥
ळूमां झड़ नदियां ळहर, बग पगंत भर बाथ।मोरां सोर ममोळियां, सावण ळायो साथ॥
हरणो मन हरियाळियां, उर हाळियां उमंग।तीज परब रंग त्यारियां, सावण लायो संग॥
आभ गड़ै बीजां अडै़, मौरां धरै मळार।कामण धरा धपाड़वां, आयो मैह उदार॥
मोर सिखर ऊंचा मिळै, नाचै हुआ निहाळ।पिक ठहकै झरणा पड़ै, हरियै ड़ूंगर हाळ॥
धन धोरां, जोरां घटा ळोरां बरसत ळाय।बीज न मावै वादळां, रसिया तीज रमाव॥
घर घर चंगी गोरड़ी, गावै मंगळाचार।कंथा मती चुकावज्यो, तीजां तणो तिवार॥
आज ऊवैळा उनमियो, मेड़ी ऊपर मैह।जाऊं तों भींजै कांचळीं, रैवुं तो टूटै नेह॥
भड़कत तड़कत बीजळी, धड़कत गाज।कोप करयां आवे, या कुण ऊपर आज॥
भर पावस सज्जण नहीं, उल्हरियों जसराज।जाणूं छूं ले जावसी, काढ़ कळेजो आज॥
घटा बांध बरसे जसा, छांट लगै खग भाय।इण रित साजण बाहिरा, क्यूँ कर रैण बिहाय॥
घर ळीळी गिरवर धुपै, घन मधरो घहरात।निस सारी खारी ळगै, बिन प्यारी बरसात॥
परनाळा पाणी पड़ै, भींजैं गढ़ री भींत।सूता आवै औजका, राजण आवै चींत॥
अगग्गां सगग्गां नदी बहै, नदी न ळागै नावं।हिरणी हो हेळो देवूं, आवो जी प्रीतम आव॥
नैणसी री ख्यात अर विगत राजपुताना रै इतिहास री घणी चाईजती पोथियां हैं। राजस्थान साहित में ई इण दोनां पोथियां री जागा ठैट धकळी पांत में है। मुंहता नैणसी रै बडैरां मारवाड़ रै ऊंचै ऒदां माथै काम करियौ, इण सारुं आ गुवाड़ी इज मुइणोतां री गुवाड़ी बाजण लागगी। नैणसी रै बड़ैरां रौ बखांण जाळोर रै महावीर जैन मिन्दर अर नवळखा जैन मिन्दर री भींतां माथै खुदियोड़ै लेखां में करियोड़ौ है। लेखां सूं ठा पडै कै नैणसी रौ पैळड़ौ बडेरौ मोहन राठौड़ हो, जिण आपरै ढळतै बरसां में जैन धरम अंगेज लियौ, उण रै लारै उण रौ भाई सौभागसेन ई जैनी बणग्यौ।इणीज मोहन राठौड़ रौ नवमौं वंसज नैणसी रौ बाप जयमल्ल हो। मुगळ बादसाह जहांगीर जद मारवाड़ रै धणीं गजसिंघ सूं राजी हूय दएनै जाळोर इणायत कीयौ तद उणां जयमल्ल ने जाळोर री हाकमी दी। उणरी चाकरी सूं राजी व्हैय र महाराजा उणनै जौधाणै रो दीवाणं बणाय दियौ। नैणसी १६११ ईस्वी में जलम्यौ हो। मोटियार व्हैता ई उणनै मारवाड़ री फौज में ऒदौ मिलग्यौ। नैणसी सागेडौ सेना-नायक साबित हुयौ।
ठेट सूंई नैणसी इतिहास में रग्योड़ौ हो। वो जठीनै ई जावतौ उठै रा चारण-राव अर बूढै-बडैरां सूं जरुर मिळतौ, बहियां बांचतौ, बड़ैरां सूं बंतळ करतौ। उणा सागै हथाई माथै होका खुड़कावतौ, उण ठौड़ रा लेखां अर साहित सूं वाकब हूवतौ, कीं चोखी बातां हींयै उतारतौ अर कीं नीज डायरी रै पानड़ा में अटकाय लेवतौ। नैणसी राज रै ऊंचै ऒदै माथै होइज सो उणनै अठी-उठी फिर भटक अर बातां निरखण-परखण रौ मोकौ मिळियौ। घूम-फिर, जांणकारी भेळी कर उण आपरी जांणकारी रै पांण दो पोथियां लिखी-ऐक नैणसी री ख्यात अर बीजी मारवाड़ रै परगणां री विगत। महाराजा जसवंतसिंघ मुगळा री हिमायत में दिखणियां सूं जूंझतां थका नैणसी अर सुन्दरदास ने ई आप सागै बुलाय लिया। उठैई महाराजा किणी अणजाणी वजै सं रिसीजग्या अर भाई समैत नैणसी ने अपड़ कर कैद कर लियौ। जिणरी वजै कायस्थ हां, वै महाराजा नै काण भरण लागा। दोनां ने कित्ताई संताया, कूपितां करी पण तोई वै टस-सूं-मस ई को हुया नीं। इण मुजब मारवाड़ में हाळ तांई नैणसी अर सुन्दरदास बाबत कैयोड़ा ऐ दूहा-सोरठा घर-घर चावा है--लाख लखारा नीपजै, बड़ पीपळ री साख।नटियौ मूथौ नैणसी, तांबौ देण तळाक॥लेसौ पीपळ लाख, लाख लखारा लावसी।तांबौ देण तळाक, नटियौ सुन्दर नैणसी॥दोनुंई भायां माथै कानां रा कीड़ा झडै जैड़ी कुपीतां हुवण लागी जद उणां ऐड़ै जीवण सूं छुटकारौ पावण सारु आतमघात कर अर पराण तज दिया। इण मुजब मारवाड़ रै इण पैळड़ै इतिहास लिखारै री ळीळा घणी दोजखी अर दुखदायी तरै सूं खतम हुई। नैणसी री खास कारीगरी आ है कै उण आपरै बखांण ने कोरौ राजावां अर ठाकरां तांई नीं राखियौ-धोबी, चमार, सरगरा अर समाज रै ठेट नीचल्लै मिनखां ने ई को छोड़ियौ नीं। प्रसासक रै रुप में नैणसी खरौ उतरियौ। घणा नीं तोई बीस बरसां तांई उण मारवाड़ रै न्यारै-न्यारै मोटै ऒदां माथै सावळ चुतराई सूं काम करियौ।(लेख जारी है)
पग पग भम्यां पहाड़, धरा छांड़ राख्यो धरम।
'महाराणा' र 'मेवाड़', हिरदै बसिया हिंद रे॥
सकळ चढावै सीस, दान धरम जिणरो दियो।
सो खिताब बगसीस, लेवण किम लळचावसी॥
दिया सत्रुवां दाह, सांचा भड़ रखिया सदा।
लाखां सीस लियाह, वाज्या धन धन सीसवद॥
उरा थरिंदां आंपणां, सीस घुणिन्दां साह।
रुप रखिन्दा राण रा, वाह गिरिन्दां वाह॥
धर बांकी दिन पाधरा, मरद न मूकै माण।
धणा नरिन्दा घेरियो, रहै गिरंदां राण॥
अकबर जासी आप, दिल्ली पासी दूसरा।
पुनरासी परताप, सुजस न जासी सूरमा॥
गिर पुर देस गमाड़, भमिया पग पग भाखरां।
मह अंजसै मेवाड़, सह अंजसै सीसोदिया॥
समंदर पूछै सफ्फरां, आज रतंबर काह।
भारत तणै उमेदसी, खाग झकोळी आह॥
राहब उटठ कमाणगर, मूंछ मरोड़ न रोय।
मरदां मरणों हक्क है, रोणो हक्क न होय॥
सत री सहनाणी चही, समर सळूंबर घीस।
चूड़ामण मेळी सिया, इण धण मेल्यो सीस॥
सीता ना रावण सको, दोप्रद कीचक देख।
अकबर काम उमीठियो, इण सींसोदण एक॥
अकबर देख अचाणचक, भई न तिल भर जीत।
नीरोजै नर नाहरी, जबर लियो जस गीत॥
दुरगो आसावत रो, नित उठ बागां जाय।
अमळ औरंग रा ऊतरे, दिल्ली धड़का खाय॥
बीज चंद सी बकड़ी, खड़ी खड़ी भ्रह खूंच।
टणकापण री तखतसी, मारै हेळा मूंह॥
उजड़ चाळे उतावळो, रोही गिण न रन्न।
जावे धरती धूंसतो, धन्न हो घोड़ा धन्न॥
(मेवाड़ री महिमा)