वियौग श्रृंगार
सपने घड़िया झूंटणा, बिखरी धण री बात।
इसड़ा ही अफसोस में, गमगी गोरण रात॥
जमवारौ पाणी हुऔ, पिघल गयौ जिंण पाथ।
राखूं किण विध रोक नै, बिन हाथां भर बाथ॥
तो ई हूं तिरसी रही, या इचरज की बात।
बरसै बारह मास ही, हिवड़ा में बरसात॥
ढळती मांझल रात में, बादळ बीज बंधेस।
काजळ फिरोजा नैंण रो, सजल हुऔ सिंभरेस॥
ढाई आखर प्रेम रा, कांई नह कह देत।
फिरोजा अगनि बळी, रह वीरम रण खेत॥
( रचना-शुभकरण देवल कूंपावास)
अमृत महोत्सव से अमृतकाल तक की यात्रा
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*अमृत महोत्सव से अमृतकाल तक की यात्रा*
लोगों को अब दंड नहीं बल्कि उनको न्याय दिलाया जाएगा। यह अलग बात है कि दंड
दिए बिना न्याय कैसे मिलेगा? सवाल खड़ा तो ...
8 माह पहले
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